मुझे जैसे ही 10 वें गोपालराम गहमरी साहित्य और कला महोत्सव की जानकारी मिली मैंने तभी तय कर लिया की मुझे गहमर आना है। बीते वर्ष मेरे साथ लखनऊ की कुछ महिलाएं और भी गयी थी जिनका सम्मान भी हुआ ।उनके गाये गीत सबकी जुबान पर चढ़ गये । इसलिए मैंने फिर उनसे गहमर चलने के लिए पूछा तो ,कोई बाहर था, किसी के पति, सास बीमार थे तो किसी के पैरों की समस्या। आने वालों में चार लोग तैयार हुए जिसमें दो का पक्का नहीं था । लेकिन मैंने अपूर्वा अवस्थी सहित चारों के रिजर्वेशन करा लिया।जिसमें कार्यक्रम सहभागिता के आमंत्रण पत्र जमा ना करने पर अपूर्वा अवस्थी की ड्यूटी परीक्षा में लग गयी । मै रह गयी अकेले लखनऊ से आने वालों में। अंत तक प्रयास किया कि रिज़र्वेशन कैंसल ना हो लेकिन आने से छः घंटे पहले रिजर्वेशन कैंसिल ही कराना पड़ा। लोक साहित्यकार उमा त्रिगुणायत दीदी जिनकी पुस्तकें मैंने गहमर में दी थी आना चाहती थी। लेकिन उनकी बहू का का सख्त आदेश हुआ मम्मी कहीं नहीं जायेगी ।ठंड में उनका खाना पीना बिगड़ेगा ठंड लग गयी तो क्या होगा। अच्छा लगा सास के लिए बहू का प्रेम 76 वर्ष में उनका अस्पताल से आने के बाद सफर ठीक भी नहीं था। तो बस मैं चल पड़ी अकेले ही । 19 दिसंबर को सब पैकिंग कर ली थी क्योंकि 20 की सुबह सुबह 3:30 बजे उठकर खाना नाश्ता बना कर 125 किलोमीटर का सफर रायबरेली स्कूल का भी करना था । वापस शाम 4:00 बजे की घर वापसी हुई ,थोड़ा आराम करके फिर से बच्चों के लिए रात का खाना बनाने के साथ सुबह के टिफिन को भी बनाकर निकली । अब यात्रा से पहले सोशल मीडिया का लाभ लेते हुए ट्रेन का समय देखा कब आ रही तो दिखाया ,एक घंटे देरी से आयेगी । सोचा अब आराम से चला जायेगा। बेटियो ईशा रतन मीशा रतन ने कहा था हम चलेंगे स्टेशन छोड़ने तो उनका इंतजार करने लगी । छोटे बच्चों की जैसे बार बार टायलेट देखी जाती है वहीं आदत मोबाइल की हो गयी है। वह भी जब ट्रेन का पता करना हो, तो और भी ज्यादा।फिर से फोन देखा अरे बाप रे। ट्रेन तो सही समय पर आ रही है। तुरन्त एक घुंट चाय पिया । बाकी थरमस में रखी बेटे को स्कूटी पर पीछे बैठाकर चल दिए चारबाग रेलवे स्टेशन। रेलवे स्टेशन पर पता किया की श्रमजीवी 12392 किस प्लेटफार्म पर आयेगी तो लिखा दिखा 4 नंबर पर, लेकिन रेलवे के अनाउंसमेंट की आवाज आयी प्लेटफार्म नंबर 5 पर आने की सूचना दी गई।
बस यही से गड़बड़ शुरू हुई। एक्सलेटर से चढ़कर जब प्लेटफार्म उतरी तो देखा श्रमजीवी 12391–12392 प्लेटफार्म पर खड़ी है। जो पटना से दिल्ली जा रही थी यह पढ़ा नही। बेटे के साथ दौड़कर S2 मे चढ़कर सीट के पास पहुंच गयी लेटी महिला को उठने के लिए कहा ।उसने कहा यह हमारी सीट है। मैने अपना टिकट दिखाया सबने कहा की टी टी को आने देते हैं । मैंने कहा ठीक है । तभी ट्रेन ने सीटी बजा दी ।बेटे को कहा जाओ कहकर,उसे वापस भेज दिया था।जब ट्रेन चली तो देखा यह तो उल्टी दिशा में जा रही तुरंत पूछा कहां जा रही सबने कहा दिल्ली।मैंने कहा नहींईईईईईई रोको इसे, मुझे गहमर जाना है । सबने कहा आगे रुकेगी हरदोई में। मैंने तुरंत ट्रेन से कूदने का फैसला किया।पहले पीठ का बैग प्लेटफार्म पर फेंका ।जब मैं कूदने लगी तो लोगो ने मुझे पकड़ लिया की ट्रेन की स्पीड बढ गयी है । मैंने कहा मेरा बैग फेंक देना उनको धक्का देकर कूद गयी संकटमोचन का नाम लेकर। सबने कहा औरत ट्रेन के नीचे आ गयी क्योंकि मैं कूदने पर प्लेटफार्म पर लेट गयी थी ।अपने मरने का सुनकर तुरंत खड़ी हो गयी तो देखा मेरा ट्राली बैग भी कूदकर पीछे-पीछे आ रहा है । प्लेटफार्म पर सब लोगो ने मेरे पीछे आकर मुझे घेर लिए ।मै सबसे कह रही हटो मेरी ट्रेन आ रही है छूट जायेगी । 12391–12392 पटना से दिल्ली,श्रमजीवी ट्रेन के जाने के — पांच मिनट बाद मेरी ट्रेन 12392–12391 श्रमजीवी दिल्ली से पटना आ गयी जहां मैं कूदी थी ठीक उसी जगह मेरा S2 कोच का डिब्बा आकर लगा मैने ट्रेन में चढ़कर चैन की सांस ली। थकान हो गयी थी ,दिनभर की तो सुबह गहमरी पहुंचने का समय देखकर पैंतालीस मिनट देरी का अलार्म लगा कर आंख बंद कर ली । पर हाय री — किस्मत मेरी नींद और आराम का छत्तीस का आंकड़ा है मुझसे लेटते ही शोर होने लगा। कुछ लड़के बैठने के लिए इधर-उधर बैठने की जगह मांग कर शोरकर रहे थे। मेरे आस-पास के दानदाताओं ने उनको बैठा लिया। बैठकर वह शान्त तो हो गये लेकिन फिर उनकी बाते शुरू हो गयी जिसको आधा घंटा सुनने के बाद मुझे फर्जी फोन मिलाना पड़ा रेलवे पुलिस को कुछ लोग मेरी सीट पर शोर कर रहे हैं ।तब वह सब शांत हुए ।अब नया शोर मोबाइल पर गाने शुरू कर दिया फिर थोड़ी देर बाद मैंने दो ईयर फोन निकाले और उनको कहा की भाई सौ– सौ रुपये दे ,दो यह लेकर कान में लगाओ रात भर कया ज़िन्दगी भर गाने सुनो तब जाकर फोन बंद हुआ। रात में कंबल निकालने लेटने के लिए बाकी ऊपर की बर्थ के लोग उतरते चढ़ते रहे । जिसके कारण रात 1:00 बजे के बाद सो सकी। बीच में सुल्तानपुर और बनारस मे शोर से उठना पड़ा । जैसा सोचा था एक घंटा लेट ट्रेन गहमर पहुंची । S4 में हरदोई राम बोला शर्मा ,पागल जी के साथ चार लोग गहमर के लिए बैठे थे बात हुई थी उनसे। गहमर पहुंच कर सभी प्लेटफार्म पर मिले। प्लेटफार्म पर एक बच्चे के साथ महिला को दरवाजे के उल्टा जाते देखा तो उसे बताया रास्ता उधर है। वाट्स एप पर मैसेज देखा माधुरी मधु कुशीनगर का की वह गहमर प्लेटफार्म पर है कोई है साथ का तो हमें भी ले ले ।उनको स्टेशन के बाहर बुलाया क्योंकि मैं हरदोई के चारों लोगों के साथ चाय के लिए पहुंच गयी थी । सभी लोग चाय पीकर चला पडे 10 वें गोपालराम गहमरी साहित्य और कला महोत्सव आयोजन स्थल की तरफ। पुरुष लोग पुरुषों के कमरों मे । मै और माधुरी महिलाओं के कमरे में पहुंच गए। वहां सभी नये लोग दिखे मैंने सोचा सबसे बाद में परिचय तो हो , ही जाएगा । इसलिए आराम करना ठीक लगा । लेकिन नहीं मैंने बताया है ना कि मेरा आराम और नींद का छत्तीस का आंकड़ा बताया है ना यहां भी वही हुआ । महिलाओं की सुबह – सुबह लाईन लगी थी टायलेट और नहाने के लिए जिसके लिए ना खत्म होने वाली लम्बी बातचीत चलने लगी ।
सबकी सुन कर मेरा पेट बोला समझ नहीं आता क्या तुम कब खाली होंगे। फिर क्या रजाई लपेट किनारे किया। चल दिए अखंड गहमर आवास पर। ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी । बाहर ही व्यवस्था के चलते आराम दायक स्थिति में आ गयी। पुनः महिलाओं के कमरे में आयी तो पानी ना होने का दुःख बांटा जा रहा था। फिर मैंने अखंड गहमरी जी को फोन लगाकर स्थिति से अवगत कराया। लाईट ना होने के कारण आधा घंटे बाद पानी उपलब्ध हो गया जो रात को किसी के द्वारा नल खुला छोड़ देने के कारण टंकी खाली होने का कारण बना। हमेशा की तरह सर्दी में नहाने के लिए गर्म पानी भगोनै में गर्म हो रहा था । घुमाते टहलते वहां संतोष शर्मा शान हाथरस से आकर मुझे मिली। अपने साथ अखंड गहमर आवास ले आयी, मै भी अपने कपड़े लेकर चल पड़ी गंगा नहाने। फिर वही तो गहमर आवास के नल से निकलते ठंडे गंगा जल से स्नान ध्यान करा। पिताजी का आशीर्वाद लेकर लगे पेड़ों के हरसिंगार गुड़हल तुलसी के पत्तों का पानी बनाकर पिया। कुछ देर बाद चाय चाय की आवाज आयी ।चल पड़े नाश्ते की मेज पर। चाय, चना, हलुआ से तृप्त होकर आयोजन स्थल पर सभी आ जमे। कार्यक्रम का उद्घाटन होने के पश्चात मेरे मंच संचालक पर संस्मरण लेखन पर कार्यशाला प्रारम्भ हुई ।। कार्यशाला के पश्चात वरिष्ठ जनो का उद्बोधन हुआ।
दोपहर भोजन में दाल — चावल,दो तरह की सब्जी ,सलाद ,अचार के खाने के बाद , दूसरे सत्र में मेरी लोकनृत्य पर कार्यशाला आयोजित हुई। मेरे बाद आये साहित्यकारो में क्रमशः डा ऊषा किरण के उद्बोधन के साथ लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए। । शाम हेल्थ ममता सिंह के सौजन्य से स्वास्थ्य और हेल्थ का कार्यक्रम आयोजित किया गया। रात्रि भोजन के बाद मेरा लोक नृत्य, महिलाओं का रैम्प वॉक, गायन,भजन , काव्य पाठ आदि की संध्या सजी जो देर रात तक चलती रही। । दूसरे दिन के आयोजन में मां गंगा के घाट पर जाकर स्नान करने का था जो अपने समय से दो घंटे की देरी से शुरू हुआ। वहां स्नान ध्यान करके सभी ने प्रस्थान किया मां कामाख्या दर्शन के लिए मंदिर की तरफ । मां कामाख्या के दर्शन के पश्चात मंदिर परिसर में ही सबने अपने-अपने उद्गार व्यक्त किये गीत भजन और कविता से। सभी का सम्मान मंदिर के महंत ने मां कामाख्या की चुनरी उढ़ाकर किया । कामाख्या मंदिर परिसर में ही चाट का आनन्द लेकर वापस आकर बैठ गये , मां कामाख्या महाविद्यालय परिसर आयोजन स्थल पर । जहां नवंबर में गहमर मे आयोजित शार्ट फिल्म कार्यशाला में बनी शार्ट फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। जिसमें ब्लड डोनेशन को खजुराहो फिल्म उत्सव में अवार्ड भी मिला। इस फिल्म में लखनऊ के तीन कलाकारो ने काम किया है। मैंने इस कार्यशाला में प्रशिक्षण प्रदान किया था। फिल्म प्रदर्शन के बाद कलाकारो ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। अखंड गहमरी जी का धन्यवाद किया की मात्र ढाई हजार में एक सप्ताह तक रहने और खाने के साथ छोटी-छोटी बातों को बारीकी से सिखाना बहुत ही अच्छा रहा ।बड़े शहरों में मोटी फीस लेकर भी वह नहीं सिखाते तो अखंड गहमरी जी ने सिखाया।। दोपहर के सत्र के बाद मैंने वापसी की तैयारी करली क्योंकि मुझे छुट्टी नहीं मिली थी। रात्रि भोजन करने का समय नहीं था । इसलिए रात के खाने में चोखा बाटी बन रहा था जो मैंने अपने लिए पैक कर लिया।गहमर की ट्रेन छोड़कर,करहिया से जनशताब्दी ट्रेन लेना पड़ा। वहां से दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन पर आकर एकात्मता ट्रेन पर बैठ गयी जिसमे बैठकर लाया हुआ चोखा बाटी खाया क्योंकि भाग भागकर भूख भी तेज लगने लगी थी।
मुझे रायबरेली स्कूल भी पहुंचना था। आधा घंटा देर से रायबरेली पहुंचीं। स्कूल का समय 7:20 था । तो स्टेशन पर ही लेटने का फैसला कर लिया। 6:30 बजे थोड़ा उजाला होने पर स्टेशन पर ही ब्रश करके बाहर आयी । स्टेशन से बाहर आकर चाय पीकर आटो में बैठी तो आटो वाले ने कहा अभी ट्रेन आ रही है सवारी लेकर जायेंगे। जल्दी नहीं करियेगा ।मैंने उसको तुरंत किराया पकड़ा दिया, क्योंकि मुझे भी जल्दी नहीं थी। पन्द्रह मिनट बाद स्कूल के पास पहुंच गयी । गार्ड से जिस बिल्डिंग में मेरा कमरा था उस बिल्डिंग का ताला खोलने को कहा तो ना-नुकुर करके उसने ताला खोला यह कहकर इतना जल्दी ताला खोलने का आदेश नहीं है। बच्चे ना जाये अंदर ध्यान रखिएगा। मैंने कहा ठीक है। वही ख़ुद बाथरूम में स्नान ध्यान करके स्कूल के लिए तैयार होकर पहुंच गयी अपने ड्यूटी स्थल पर दूसरे दिन से जाड़े की छुट्टी होनी थी इसलिए बच्चों की आधे दिन की छुट्टी हो गयी । शिक्षकों की मीटिंग शुरू हो गयी। हिन्दी टीचर ने चाय भिजवा दी। पास में रखी पूडिया खाकर बैठे रहे। शाम को प्राइवेट वैन से लखनऊ तेलीबाग वहां आटो से चारबाग जहां भूख बढ़ चुकी थी ।तो पानी बतासे खाये। फिर दूसरा आटो से हनुमान सेतु पुल पहुंची । संकटमोचन हनुमान जी को सही सलामत वापस घर लाने का धन्यवाद किया। बेटी मीशा को फोन किया लेने आओ तो उसके समय का ध्यान करके चाय और पकौड़ी ले ली । आश्चर्यजनक रूप से मीशा समय से पहले आ गयी जल्दी जल्दी चाय पी कर स्कूटी थाम ली ।और इस प्रकार मेरी 20 दिसंबर से 23 दिसम्बर तक आयोजित 10 वे गोपालराम गहमरी साहित्य और कला महोत्सव 2024 की यात्रा संपन्न हुई। जय श्री राम संकटमोचन हनुमान जी ने जैसे मेरे कष्ट दूर करे वैसे सबके दूर करें।
ज्योति किरण रतन
अध्यापिका/साहित्यकार/कलाकार
रायबरेली
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