वह छात्रावास में रहती थी। बहुत समझाने पर भी उसकी उदासीनता का कारण पता नहीं चल रहा था।अंत में वार्डन ने उसके पालकों को विद्यालय में बुलाया ।वह रो रही थी। बीच-बीच में आक्रोश भरी निगाहों से माँ को देख रही थी।”मेडम, ये मेरी माँ नहीं ,दुश्मन है।” सामने बैठी माँ फूट-फूट कर रोते हुए प्राचार्या से गुहार लगा रही …
Read More »Monthly Archives: April 2024
अभिभावक की महत्वाकांक्षा में खोता बचपन-सृष्टि
बच्चों का संसार जितना सहज है, उतना ही सरल भी। आज बच्चों की दुनिया पूरी तरह से बदली दिखती है। आज के युग के बच्चों का बचपन दादी-नानी की कहानी सुनकर नही, टीवी और मोबाइल के सामने गुज़रता है। बच्चों के लिए बनाए गए पार्क सूने पड़े हैं, आज कल के बच्चों की खासियत यह है कि उनका हर चीज़ …
Read More »अर्चना त्यागी की कहानी रिसर्च पेपर
अपनी नई पोस्टिंग से सुजीत बहुत ही खुश थे। शहर का नाम सुनते ही उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। सोने पर सुहागा हो गया जब उन्होंने जाकर देखा कि पुलिस स्टेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट के बगल में ही था। नौकरी लग जाने के कारण वह अधिक पढ़ाई नहीं कर पाए थे लेकिन हमेशा से ही उनका सपना रहा था रिसर्च …
Read More »मेरा गांव और बचपन-मुकेश
“याद आता है वो बचपन वो खिलखिलाते हुए मासूम चेहरे, वो एक साइकिल पर दोस्तों के साथ लगते गलियों के फेरे।वो गांव का दृश्य हमें अब भी याद आता है और याद आते ही शहर की भागादौड़ी से दूर फिर से गांव चले जाने का मन बना जाता है।” राघव अपने ऑफिस से अभी अभी आया था और घर पर …
Read More »बच्चों का खोते बचपन और स्वास्थ्य का दुश्मन निजी स्कूल
बचपन के दिन भी क्या दिन थे, उड़ते फिरते तितली बन”… यह गीत तो हम सबने सुना ही है और खूब मन लगा कर गाते भी होंगे। कभी हमने सोचा है कि बचपन आखिर क्यों सबको इतना प्यारा होता है? हम क्यों अपने बचपन को छोड़ नहीं पाते? इसका जवाब होगा…..स्वतंत्रता, निश्चिंतता व अल्हड़पन, इन स्वभाव के साथ हम अपने …
Read More »मुझे भी घर बसाना है-रोहित
भारतीय समाज में विवाह अत्यंत ही पवित्र रिश्ता माना जाता है, विवाह मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसके बिना मनुष्य आधा अधूरा ही रहता है। कर्ई लोगो के सुखी दाम्पत्य जीवन को देख कर लगा कि अब मुझे भी विवाह के बंधन में बंध जाना चाहिए। पर मुझसे विवाह करेगा कौन ? एक तो उम्र 38 के पड़ाव पर …
Read More »अभिभावक की महत्वाकांक्षा में खोता बचपन
बचपन मानव जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय है। बचपन हर प्रकार की चिंता से कोसों दूर होता है। यह वह समय है, जब एक बालक या बालिका अपना जीवन बिना किसी छल-कपट, राग-द्वेष, ऊंच-नीच, बड़ा-छोटा सहित अन्य विरोधी भावनाओं से परे रहकर व्यतीत करता या करती है। बचपन एक व्यक्ति के समाजीकरण की शुरुआत का समय भी होता है। बच्चा अपने …
Read More »बेदर्द दिल-सोनू कुमारी टेलर
जेठ की ढलती दुपहरी में , सूर्य देवता रौद्र रूप धारण किए , आग उगलने का प्रचंड रूप से कार्य कर रहे । हवा का एक झोंका भी तन को सुकून पहुंचा दे । लेकिन पेड़ों के पत्ते भी इस आग में झुलसते प्रतीत हो रहे । पसीने से तर सांवली दिलकश आंखों वाली , तीखे नाक नक्श से अपनी …
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