lबात 1981 की है । विदाई का वक्त था।घर का माहौल बहुत भावुक था।सब की आँखें भरी हुई थी। पापा से गले लग कर मैं रो रही थी। पापा ने गले लगाते हुए भरे गले से कहा। ” बेटा सदा खुश रहना ” चिर चिर नूतन होए ” हमेशा इसे याद ही नही रखना बल्कि अपने जीवन मे उतारने की …
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कोकराझार असम का प्रवेश द्वार-राजसश्री
असम का कोकराझार जिला अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत (विशेष रूप से बोडो संस्कृति), प्राकृतिक सुंदरता और वन्य जीवन के लिए जाना जाता है। यह बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) का मुख्यालय भी है और इसे अक्सर “पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार” कहा जाता है। कोकराझार जिले की प्रमुख विशेषताएँ और खासियतें इस प्रकार हैं:मुख्य विशेषताएँ-बोडो संस्कृति का केंद्र: कोकराझार बोडो समुदाय …
Read More »“रिश्ते-शीला श्रीवास्तव
कहानी रंजना बालकनी में खड़ी ठंडी हवा के झोंकों से आत्म विभोर हो रही है ,मन अतीत के गलियारों से गुजरने लगा!आज राकेश से शादी किए हुए एक वर्ष बीत गया, रंजना ने राकेश से पुनर्विवाह किया है।राकेश और रंजना एक ही आफिस में कार्यरत थे! रंजना के पति को ब्लड कैंसर था और 1 साल पहले उनकी मृत्यु हो …
Read More »बेचेहरा स्त्रीयां-शैली
आज डॉक्टर के पास अपनी रिपोर्ट्स दिखाने गई थी, मेरा नंबर थोड़ी देर बाद आना था तो चुपचाप प्रतीक्षा कर रही थी। इयर फोन नहीं ले गयी थी तो मोबाइल को बन्द कर के नियमों का पालन कर रही थी। यूँ कुछ लोग बेशर्मी से स्पीकर पर आराम से कुछ विडिओ और समाचार देख रहे थे, जो मुझे और अन्य …
Read More »अतिरिक्त प्रेम-उर्मिल अग्रवाल
( कहानी) मेरे फ्लैट के पास ही पांडे परिवार रहता है। अच्छा मध्यम वर्गीय, परिवार है। बेटे बहू दोनों बहुत सुंदर है। बेटा क्रिकेट खिलाड़ी है और देखने में मॉडल सा है। वह पत्नी को बहुत प्रेम करता है। घर में किसी की मजाल नहीं कि उसकी प्राण प्यारी को कुछ कह सकता। लड़का क्रिकेट का कोच है और अच्छा …
Read More »संस्मरण-रमेश तोरावत
संस्मरण फावडी एक गरीब परिवार की बेटी थी.. उस के माता पिता दोनों मजदूरी करते थे और वह अकेली दिन भर इधर उधर भटका करती थी.. उन दिनों मेरा रहना गरीब और कामगारों की बस्ती में था.. कुछ अमिर थे मगर बस्ती गरीबो की ही थी और आज भी गरीब तबका वहा रहता है.. वहा मेरी किराणा दुकान थी और …
Read More »संघर्ष सरोवर का कमल-डॉ. धर्मेन्द्र सिंह
भूमिका- यह केवल एक कथा नहीं, बल्कि जीवन की उस यात्रा की गाथा है जिसमें कठिनाइयों, अभावों और चुनौतियों के बीच भी शिक्षा, संस्कार और परिश्रम से सफलता की नई राहें खुलती हैं। मजदूर का शिक्षित पुत्र और शिक्षक परिवार की बेटी—दोनों ही अलग सामाजिक धरातल से आए, लेकिन उनका मिलन केवल विवाह का बंधन नहीं था, बल्कि यह दो …
Read More »पापा के नाम दिव्यांशी की चिट्ठी
दिव्यांशी के पापा परदेश गए थे. घर पर मां अकेली कमाने वाली थी. घर खर्च के अलावा स्कूल में भी पैसे देने की तंगी थी. दिव्यांशी ने पापा को कई चिट्ठियां लिखीं. उसमें से भी कुछ आपको पोस्ट कर रहा हूँ।.प्यारे पापा, नमस्ते।सभी बच्चों की वर्दियां बन गई हैं, पर मेरी अभी तक नहीं बनी है। मैडम रोज डांटती हैं। …
Read More »कान बिगारो आपनो, कछु सुना न जाय-शर्मिला चौहान
(व्यंग्य) बहरापन इतना भयानक होगा, कल्पना से बाहर था बिल्लू के। बस गलती यही थी कि वह मनुष्य सामाजिक प्राणी को चरितार्थ करने में लगा रहा। समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक आयोजनों का एक अहम् हिस्सा बनने की भूल का परिणाम उसका हरापन है। कभी दोस्ती का रिश्ता तो कभी रिश्तों से दोस्ती निभाते बिल्लू ने अपने एक प्रिय अंग से …
Read More »भगवान महावीर-प्रदीप छाजेड
प्रसिद्ध दार्शनिक देकार्ट ने कहा – मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ । मेरे अस्तित्व का प्रमाण हैं कि मैं सोचता हूं और सोचता हूं इसलिए मैं हूं । यदि मुझे कहना पड़े तो मैं इस तर्क की भाषा में कहूँगा- मैं हूं और विकसित मस्तिष्क वाला प्राणी हूँ इसलिए सोचता हूँ । सोचना मस्तिष्क का लक्षण नहीं हैं । …
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