1. सर्वप्रथम प्रयाग राज की सड़कों पर अपने अभिन्न मित्र बाबू गंगा प्रसाद वर्मा और सुंदरलाल के साथ घूमते हुए मालवीय जी ने हिन्दू विश्वविद्यालय की रूपरेखा पर विचार किया।
2. 1904 ई में जब विश्वविद्यालय निर्माण के लिए चर्चा चल रही थी तब कइयों ने इसकी सफलता पर गहरा शक भी प्रगट किया था। कइयों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा भी विश्वविद्यालय वाराणसी की धरती पर निर्मित किया जा सकता है।
3. नवंबर 1905 में महामना मदन मोहन मालवीय ने हिन्दू विश्वविद्यालय निर्माण के लिए अपना घर त्याग दिया।
4. तत्कालीन काशीनरेश महाराजा प्रभुनारायण सिंह की अध्यक्षता में बनारस के मिंट हाउस में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए पहली बैठक बुलाई गई।
5. जुलाई 1905 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का प्रस्ताव पहली बार सार्वजनिक रूप से प्रकाशित किया गया।
6. दिसम्बर 1905 ई. में वाराणसी में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया गया। ठीक एक जनवरी 1906 ई. को कांग्रेस अधिवेशन के मंच से ही काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा की गई।
7. जनवरी 1905 ई. में प्रयाग में साधु-संतों ने भी काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए स्वीकृति दे दी।
8. उस वक्त दरभंगा महाराज सर रामेश्वर बहादुर सिंह भी वाराणसी में ‘शारदा विश्वविद्यालय’ की स्थापना करना चाहते थे, लेकिन मालवीय जी कि योजना को सुनकर उन्होंने भी ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ निर्माण के लिए अपनी सहमति दे दी।
9. दरभंगा नरेश को बाद में हिन्दू युनिवर्सिटी सोसाइटी का प्रमुख बनाया गया।
10. पं. मदन मोहन मालीवय ने 15 जुलाई 1911 को हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए एक करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा था।
11. बीएचयू पूरी दुनिया में अकेला ऐसा विश्वविद्यालय है जिसका निर्माण भिक्षा मांगकर मिली राशि से किया गया है।
12. महामना मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में 20 लोगों को पूरे देश में घूम-घूमकर भिक्षा मांगने के लिए नियुक्त किया गया।
13. विश्वविद्यालय निर्माण के लिए नियुक्त हुए प्रबुद्ध भिक्षार्थियों में राजाराम पाल सिंह, पं. दीन दयाल शर्मा, बाबू गंगा प्रसाद वर्मा, बाबू ईश्वर शरन, पं. गोकर्ण नाथ मिश्रा, पं. इकबाल नारायण गुर्टू, राय रामनुज दयाल बहादुर, राय सदानंद पांडेय बहादुर, लाला सुखबरी सिन्हा, बाबू वृजनंदन प्रसाद, राव वैजनाथ दास, बाबू शिव प्रसाद गुप्त, बाबू मंगला प्रसाद, बाबू राम चंद्र, बाबू ज्वाला प्रसाद निगम, ठाकुर महादेव सिंह, पं. परमेश्वर नाथ सप्रू, पं. विशंभर नाथ वाजपेयी, पं. रमाकांत मालवीय तथा बाबू त्रिलोकी नाथ कपूर शामिल थे।
14. 28 जुलाई 1911 को मालवीय जी ने अयोध्या नगरी से भिक्षाटन की शुरुआत की। इससे पूर्व उन्होंने सरयू नदी में स्नान किया और श्रीरामलला के दर्शन भी किए।
15. सन 1911 में ही मालवीय जी ने लाहौर और रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में भी भिक्षाटन किया। इस दौरान उनके साथ लाला लाजपत राय भी मौजूद रहे।
16. मुजफ्फरनगर में भिक्षाटन के दौरान अजीब वाकया हुआ जब सड़क पर एक गरीब भिखारिन ने अपनी दिनभर की कमाई मालवीय जी को काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय निर्माण के लिए समर्पित कर दिया।
17. मालवीय जी प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की तर्ज पर आवासीय विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते थे।
18. शुरू-शुरू में विश्वविद्यालय में सात कॉलेजों की स्थापना का प्रस्ताव पारित हुआ। इनमें, संस्कृत कॉलेज, कला एवं साहित्य कॉलेज, विज्ञान एवं तकनीकि कॉलेज, कृषि कॉलेज, वाणिज्य (कॉमर्स) कॉलेज, मेडिसिन कॉलेज और म्यूजिक एवं फाइन आर्ट्स कॉलेज शामिल थे।
19. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रस्ताव के समय देश में कुल पांच विश्वविद्यालय मौजूद थे – कलकत्ता, बम्बई, मद्रास, लाहौर और इलाहाबाद में।
20. मालवीय जी का यह स्पष्ट मत था कि विश्वविद्यालय में धार्मिक शिक्षा को अनिवार्य किया जाए।
21. विश्वविद्यालय के नाम में ‘हिन्दू’ शब्द को लेकर भी मालवीय जी को कइयों से तिरस्कार भी झेलना पड़ा। उस वक्त मालवीय जी ने हिन्दुत्व को समावेशी बताते हुए इसे अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण का आधार माना।
22. अक्टूबर सन 1915 ईस्वीं में बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी बिल पारित हुआ। इसके बाद इस विश्वविद्यालय के निर्माण की मंजूरी ब्रिटिश हुकूमत ने दे दी थी।
23. ८ फरवरी 1916 ई के दिन बसंत पंचमी के पावन अवसर पर दोपहर 12 बजे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिलान्यास का कार्यक्रम शुरू हुआ।
24. इस मौके पर वायसरॉय लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे।
25. उस वक्त बनारस के कलेक्टर थे मिस्टर लेम्बर्ट जिन्होंने इंजीनियर राय छोटेलाल साहब के साथ मिलकर पूरी व्यवस्था का खाका तैयार किया था।
26. बीएचयू के शिलान्यास स्थल पर मदनवेदी का निर्माण किया गया था।
27. पुष्पवर्षा के बीच वायसराय लार्ड चार्ल्स हार्डिंग ने विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया।
28. काशी के संस्कृत विद्वानों ने हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण में कोई रुचि नहीं दिखाई थी।
29. यही नहीं शिलान्यास समारोह को लेकर काशी में विशेष उत्साह भी नहीं दिखा।
30. दो मुद्दों पर काशी की जनता ने शिलान्यास का विरोध भी किया था।
31. पहला – शिलापट्ट पर सम्राट शब्द का संस्कृत में उल्लेख।
32. दूसरा – शिलापट्ट पर काशी के धर्माचार्यों या शंकराचार्य का नाम ना उल्लिखित होना।
33. विवाद इतना गहरा गया कि विश्वविद्यालय के शिलान्यास समारोह के बहिष्कार की घोषणा काशी की जनता ने कर दिया।
34. शिलान्यास समारोह में अंग्रेजों के शामिल होन पर नगवां इलाके के संभ्रांत व्यक्ति खरपत्तू सरदार ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी।
35. बाद में मालवीय जी को खरपत्तू को वचन देना पड़ा किया शिलान्यास के बाद विश्वविद्यालय के किसी भी कार्यक्रम में अंग्रेज शिरकत नहीं करेंगे।
36. जबतक मालवीय जी जीवित रहे तबतक कोई भी अंग्रेज अधिकारी विश्वविद्यालय के किसी भी आधिकारिक कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सका।
37. विश्वविद्यालय स्थापना के ताम्रपत्र में कुल तीन जगह ‘ॐ’ लिखा हुआ है। भारतीय परंपरा में तीन बार ॐ का जाप करना अत्यंत ही शुभ और पुण्यकारी माना गया है।
38. विश्वविद्यालय के ताम्रपत्र के अनुसार ‘मनु की संतानों को अनुशासन और न्याय की शिक्षा देने के लिए ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है।’
39. विश्वविद्यालय की स्थापना में महामना मदन मोहन मालवीय जी की क्या भूमिका है इसका ताम्रपत्र में कहीं भी उल्लेख नहीं है।
40. कुछ लोगों का मानना है कि ऐनिबेसेंट के नाम का उल्लेख भी इस ताम्रपत्र में नहीं है। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि ताम्रपत्र में ऐनिबेसेंट के नाम का उल्लेख मालवीय जी ने ‘वासन्ति वाग्मिता’ के रूप में कराया था।
41. ताम्रपत्र में विश्वविद्यालय के लिए दान देने वाले राजाओं के नाम नहीं हैं बल्कि उनके राज्यों के नाम लिखे गए हैं। जैसे – मेवाड़, काशी, कपूर्थला आदि।
42. ताम्रपत्र में विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय ‘परमात्मा’ को दिया गया है।
43. ताम्रपत्र में लॉर्ड हार्डिंग को ‘धीर-वीर प्रजाबंधु’ लिखा गया है। इसे लेकर वाराणसी की जनता ने मालवीय जी का उपहास भी उड़ाया और व्यंग चित्र भी बनाये।
44. सबसे पहले विश्वविद्यालय निर्माण के लिए वाराणसी के हरहुआ इलाके में भूमि उपलब्ध कराने का विचार महाराज प्रभुनारायण को आया था। बाद में इसे मालवीय जी ने खारिज कर दिया।
45. वाराणसी के दक्षिण में 1300 एकड़ भूमि (5.3किमी) को तत्कालीन काशीनरेश महाराज प्रभुनारायण सिंह ने महामना को विश्वविद्यालय निर्माण के लिए दान में दे दिया।
46. शिलान्यास के वर्ष 1916 ई को गंगा में भयानक बाढ़ आई और विश्वविद्यालय की भूमि पूरी तरह से जलमग्न हो गई। पहले विश्वविद्यालय को गंगा के बिल्कुल किनारे बसाने का विचार था।
47. इसके बाद मां गंगा को प्रणाम करते हुए विश्वविद्यालय परिसर को गंगा नदी से थोड़ी दूर बसाने का निर्णय लिया गया।
48. कुल 12 गांवों को खाली कराकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है।
49. इन 12 गावों में भोगावीर, नरियां, आदित्यपुर, करमजीतपुर, सुसुवाही, नासीपुर, नुवांव, डाफी, सीर, छित्तुपुर, भगवानपुर और गरिवानपुर शामिल हैं।
50. बिजनौर के धर्मनगरी निवासी राजा ज्वाला प्रसाद ने काशी हिन्दू विश्वविद्याल का नक्शा तैयार किया तथा अपने दिशानिर्देश में ईमारतों को मूर्त रूप दिया।
51. विश्वविद्यालय को प्राप्त पूरी जमीन अर्द्धचंद्राकार है।
52. विश्वविद्यालय के अर्द्धचंद्राकार डिजाइन और इसके बीचो-बीच स्थित विश्वनाथ मंदिर को देखकर काशी नरेश विभूति नारायण सिंह ने इसे शिव का त्रिपुंड और बीच में स्थित शिव की तीसरी आंख बताया था।
53. यहां निर्मित भवन इण्डो-गोथिक स्थापत्य कला के भव्य नमूने हैं।
54. शुरुआत में विश्वविद्यालय की भाषा को अंग्रेजी रखा गया हालांकि मालवीय जी ने इसे हिन्दी में किए जाने का विश्वास महात्मा गांधी को दिलाया था।
55. युवाओं को तकनीकि ज्ञान देने के लिए आजादी से पहले ही विश्वविद्यालय में बनारस इंजीनियरिंग कॉलेज (BENCO) 1919 ई, कॉलेज ऑफ माइनिंग एंड मेटलॉजी 1923 ई और कॉलेज ऑफ टेक्नॉलॉजी 1932 ई की शुरुआत कर दी गई थी।
56. विश्वविद्यालय में तीन संस्थान हैं : चिकित्सा (इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज), तकनीक (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी) और कृषि (इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रिकल्चर साइंसेज)।
57. विश्वविद्यालय में 11 संकाय है : चिकित्सा, कला, वाणिज्य, शिक्षा विधि, प्रबंधतंत्र, दृश्यकला, संस्कृति विद्याधर्म, विज्ञान, समाज विज्ञान, संगीत, महिला महाविद्यालय।
58. वाराणसी में बीएचयू से संबद्ध चार महाविद्यालय मौजूद हैं : डीएवी पीजी कॉलेज, बसंता कॉलेज फॉर वुमेन, आर्य महिला कॉलेज, बसंता कॉलेज कमक्षा।
59. विश्वविद्यालय से 70 किमी दक्षिण में मीरजापुर जनपद में बरकछा नामक स्थान पर ‘राजीव गांधी दक्षिणी परिसर’ स्थित है।
60. विश्वविद्यालय के भीतर प्रेस, हवाई अड्डा (रन-वे), पोस्ट ऑफिस, केंद्रीय विद्यालय और प्रमुख बैंकों के कार्यालय मौजूद हैं।
61. महिला शिक्षा : आजादी से पूर्व 1936-37 ई. में विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय में 100 लड़कियां स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण कर रही थीं।
62. मालवीय जी का स्वप्न था कि गंगा को नहर के माध्यम से विश्वविद्यालय के अंदर लाया जाए लेकिन एक दुर्घटना की वजह से यह कार्य रोक दिया गया।
63. हिन्दू विश्वविद्यालय का कार्य सर्वप्रथम काशी में सेंट्रल हिन्दू कॉलेज के एक भवन में शुरू हुआ।
64. विश्वविद्यालय के लिए आचार्यों का चयन बिना किसी कमेटी, रेज्यूमे या सिफारिश के किया गया।
65. कुछ विद्वानों को निमंत्रण देकर, कुछ स्वयं की प्रेरणा से विश्वविद्यालय में पढ़ाने पहुंचे।
66. यहां पढ़ाने वाले कुछ विद्वान तो ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी धन-सम्पत्ति तक विश्वविद्यालय के नाम कर दी।
67. बीएचयू के आजीवन रजिस्ट्रार और चीफ वार्डन रहे श्यामाचरण डे ने अपनी पूरी सम्पत्ति विश्वविद्यालय के नाम कर दी।
68. श्यामाचरण डे आजीवन एक रुपया की तनख्वाह पर विश्वविद्यालय की ओर से मिली जिम्मेदारियों का निर्वहन करते रहे।
69. सभी प्रोफेसर, वो चाहे जिस भी विषय के विद्वान रहे हों कुर्ता-धोती और कंधे पर रखने वाला दुपट्टा पहनकर ही विश्वविद्यालय में पढ़ाने आते थे।
70. अंग्रेजी भाषा के प्रोफेसर निक्सन भी कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर धोती-कुर्ता पहनकर कृष्ण मंदिर का घंटा बजाया करते थे।
71. 1930 में जब महामना को बंबई में गिरफ्तार किया गया तो बीएचयू से 24 छात्रों के एक दल के साथ एक छात्रा कुमारी शकुंतला भार्गव भी बंबई में धरना देने के लिए पहुंची थी।
72. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान चंद्रशेखर आजाद, राजगुरू, रामप्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल आदि क्रांतिकारियों की गतिविधियों का केंद्र काशी और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ही था।
73. महाराज प्रभुनारायण सिंह के पौत्र और बाद में काशी नरेश बने महाराजा विभूति नारायण सिंह आजीवन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति रहे।
74. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक माधवराव सदाशिव गोलवलकर ‘गुरू जी’ ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ही जूलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएशन तक की शिक्षा ग्रहण की और बाद में यहां अध्यापन का कार्य भी किया।
75. मालवीय जी के निमंत्रण पर आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आए थे।
76. बीएचयू परिसर में ही हेडगेवार और गोलवलकर के बीच मुलाकात हुई। बाद में गोलवलकर आरएसएस के सरसंघचालक बने।
77. आरएसएस और मालवीय जी के बीच मधुर संबंधों का ही नतीजा रहा कि विश्वविद्यालय परिसर में ही संघ के नाम दो कमरों का प्लॉट अलॉट हुआ।
78. 1929 से 1942 के बीच संघ की कई शाखाएं विश्वविद्यालय परिसर में खुल चुकी थीं।
79. 1948 ई. में महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन कुलपति गोविन्द मालवीय ने संघ के भवन को अपने कब्जे में ले लिया। संघ पर से प्रतिबंध हटने के बाद भवन दुबारा आरएसएस को सौंप दिया गया।
80. 8 अप्रैल 1938 ईस्वी को रामनवमी के दिन विश्वविद्यालय परिसर में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पेवेलियन’ का शिलान्यास मालवीय मदन मोहन मालवीय, हेडगेवार और गोलवलकर की अगुवाई में हुआ।
81. अपनी भुजाओं के बल पर शेर को मारने वाले बचाऊ पहलवान महामना मदन मोहन मालवीय के अभिन्न मित्र थे। बचाऊ पहलवान ने मालवीय जी के प्राणों की रक्षा के लिए खुद के प्राणों की बलि दे दी थी।
82. विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति होने का गौरव राय बहादुर सर सुंदरलाल को प्राप्त हुआ।
83. इनके बाद सर पीएस शिवस्वामी अय्यर ने इस पद को सुशोभित किया।
84. कालांतर में वर्ष 1919 से लेकर 1939 तक पं. मदन मोहन मालवीय ने विश्वविद्यालय के कुलपति पद की शोभा को बढ़ाई।
85. 24 सितम्बर 1939 को सर्वपल्ली राधाकृष्णन विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति के रुप में इस अति पावन पद पर काबिज हुए।
86. राधाकृष्णन आठ वर्षों तक विश्वविद्यालय के कुलपति बने रहे।
87. राधाकृष्णन के बाद अमरनाथ झा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति बने।
88. अमरनाथ झा के बाद क्रमश: पं. गोविन्द मालवीय, आचार्य नरेन्द्र देव, सीपी रामास्वामी अैय्यर, वीएस झा, एनएच भगवती, त्रिगुण सेन, एसी जोशी, कालू लाल श्रीमाली आदि ने विश्वविद्यालय के कुलपति पद को सुशोभित किया।
90. प्रख्यात वैज्ञानिक शांति स्वरूप भटनागर ने विश्वविद्यालय के अतिलोकप्रिय कुलगीत की रचना की।
91. पुरावनस्पति वैज्ञानिक बीरबल साहनी, भौतिक वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लीकर, भूपेन हजारिका, अशोक सिंहल, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हरिवंश राय बच्चन जैसी महान विभूतियों ने इस विश्वविद्यालय की कीर्ति में चार चांद लगाया।
92. विश्वविद्यालय परिसर के भीतर ही विशाल विश्वनाथ मंदिर स्थित है।
93. इस मंदिर का शिलान्यास 11 मार्च 1931 में कृष्णास्वामी ने किया।
94. मालवीय जी चाहते थे कि भव्य विश्वनाथ मंदिर उनके जीवन काल में ही बन जाए लेकिन ऐसा शायद विधि को मंजूर नहीं था।
95. मालवीय जी के अंतिम समय में उद्योगपति जुगलकिशोर बिरला ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह बीएचयू परिसर में नियत स्थान पर ही भव्य विश्वनाथ मंदिर का निर्माण जल्द से जल्द कराएंगे।
96. 17 फरवरी 1958 को महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान विश्वनाथ की स्थापना इस मंदिर में हुई।
97. बीएचयू स्थित विश्वनाथ मंदिर पूरे भारत में सबसे ऊंचा शिवमंदिर है। मंदिर के शिखर की ऊंचाई 76 मीटर (250 फीट) है। यह मंदिर विश्वविद्यालय के केंद्र में स्थित है।
98. 60 से भी ज्यादा देशों के विद्यार्थी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों, संकायों और संस्थानों में पढ़ाई कर रहे हैं।
99. महामना मदन मोहन मालवीय का आदर्श वाक्य था, ‘उत्साहो बलवान राजन्”। अर्थात, उत्साह पूर्वक कर्म में लगो तभी शक्तिशाली बन सकते हो।
100. बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी के निर्माण में अपना सबकुछ न्यौछावर करने वाले महामना मदन मोहन मालवीय जी को स्वतंत्रता के 67 वर्ष बाद देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
(इन रोचक तथ्यों को किसने बटोरा और ये तस्वीर किस महानुभाव ने बनाई है इन दोनों की जानकारी हमे नही है।)