पर्यावरण दिवस प्रतियोगिता साहित्‍य सरोज

बिखरी राहें -मिनाक्षी

राहें बिखरी हुई थी 
फूल और कांटे सजे हुए थे 
किसीने राहों मैं फिर 
कांटे ही कांटे बिछा दिए
पैर हुए लहू लुहान 
दिल को किया कठोर
जिंदगी बनी कारावास
सजा जो मुक्कमल की गयी 
वो यह थी
उनकी हंसी की पात्र बनी
अपनी बेबसी की गुलाम हुई
चुप चाप एक तमाशबीन की तरह
हर पल अपने खोजती रही
उदासी मेरी जीवन की साथी बनी
जो मुझे सबसे ज्यादा प्यारी लगी
जब हंसती हुन तो अपनी
उन पलों की वेदना पर हंसती हुन
जो धुंध के कारण मेरे
आस पास सांप की केचुली सी
 साया बन कर घूमती रहती है 
में अपने उन पलों के 
साये के साथ जीती रहती हुन
क्योंकि इस धुंध को 
कोई हटाना नहीं चाहता
मुझे मरते देख कर वो हंसता है
मुस्कराता है
क्योंकि वो आज भी मुझे
 पराया समझता है,
पराया समझता है,
पराया समझता है

मीनाक्षी सांगानेरिया

8296808103

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