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कई न्यूज चैनल में 15 से 16 वर्ष की आयु से लेकर 18 से 20 वर्ष की आयु तक के कुछ लड़के वॉट्सऐप वगैरह के ग्रुप में नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार करने जैसी बातें, नाबालिग लड़कियों के आपत्तिजनक फोटो और नाबालिग लड़कियों के आपत्तिजनक वीडियो शेयर करने के आरोप में पकड़े गए हैं। नाबालिग लड़कों के विरुद्ध नाबालिग कानून के अनुसार कार्यवाही की जाएँगी और बालिग लड़कों के विरुद्ध बालिग कानून के अनुसार कार्यवाही की जाएँगी। भारत में अपराध बढ़ने का सबसे बड़ा कारण अधिकांश भारतीयों का अपराध को पसन्द करना और अपराधियों पर गर्व करना।
ये 20 से 22 वर्ष से कम आयु के लड़के बलात्कार करने की बातें खुलेआम इसलिए कर रहे हैं। क्योंकि अभी इनमें समाज में इज्ज़त के भाव जागृत नहीं हुए है। इन 20 से 22 वर्ष से कम आयु के लड़कों की तरह बड़ी आयु के लोग और यहाँ तक की बुजुर्ग भी बलात्कार करने की बातें करते रहते हैं। अन्तर केवल इतना है कि बड़ी आयु के लोग सोच-समझकर केवल विश्वासपात्र मित्र समूह में ऐसी बातें करते हैं। जिससे उनकी घृणित सोच उजागर नहीं होती। सार्वजनिक रूप से उनकी छवि साफ़-सुथरी साधारण आदमी की बनी रहती है। वास्तविकता यह है कि भारत में किशोर आयु के बाद से ही अधिकांश लड़के बलात्कार करने जैसी सोच की ओर अग्रसर हो रहे हैं। बलात्कार का लड़कियों के पहनावे, लड़कियों के नौकरी करने, लड़कियों के रात को घूमने, लड़कियों की जीवनशैली, पश्चिमी संस्कृति या पोर्न वीडियो से कोई लेना-देना नहीं है। बलात्कार के दो कारण होते हैं। पहला कारण लड़की या महिला को सबक सिखाना या महिला से बदला लेना। दूसरा कारण यौन संबंधों को लेकर फैली गलतफ़हमियों और गलत भ्रांतियों के कारण है। भारत में 80% बलात्कार का प्रमुख कारण यह दूसरा कारण ही है। इस तरह के बलात्कार रोकने के लिए 10 वर्ष की आयु से ही लड़के-लड़कियों को सही यौन शिक्षा सही तरीके से देना आवश्यक है। बच्चे बड़े होते हुए अपने आस-पास के लड़कों और पुरुषों को लड़कियों और महिलाओं के बारे में गाली-गलौच वाले गन्दे शब्दों में बातें करते देखकर, अपने आस-पास के लड़के और पुरुषों को प्यार के नाम पर यौन संबंधों के लिए लड़कियाँ और महिलाएँ फँसाते देखकर, स्कूल में पुरुष टीचर्स को महिला टीचर्स के साथ प्यार के जाल फेंकते देखकर यौन संबंधों के बारे में बहुत कुछ समझ तो जाते हैं, लेकिन आधा-अधूरा और वो भी गलत और घटिया शब्दों में गलत तरीके से। परिणामस्वरूप बच्चे बचपन से लड़कियों और महिलाओं को भोग का सामान समझने लगते हैं।
हमारे आस-पास हम आसानी से लड़कियों और महिलाओं के लिए “सामान, माल, पीस, चीज़” इत्यादि संबोधन सुन सकते हैं। ये शब्द माता-पिता या भाई-बहन तो सिखाते नहीं है और ना ये स्कूल की पुस्तकों में लड़कियों और महिलाओं के लिए ऐसे संबोधन लिखे होते है! आप विचार कीजिए कि ये गाली-गलौच और महिलाओं को “सामान, माल, पीस, चीज़” समझने वाला ज्ञान बच्चों को कहाँ से प्राप्त होता है ? फेसबुक में बच्चे गंदे वीडियो देखकर दिमाग में छेड़छाड़, बदतमीजी, जोर-जबरदस्ती, प्यार के नाम पर धोखा करने या बलात्कार जैसे विचारों को अपने मन लाते हैं। बच्चों को गंदे वीडियो देखने के लिए लत जाती है जिसके कारण अपराध बढ़ने लगते हैं यह बच्चे बड़े होते होते गलत क्रियाओं को जन्म देने लगते हैं इसकी लत केवल लड़के ही नहीं लड़कियां भी लगा बैठी हैं लेकिन लड़कियों में गलत और अनुचित बात करते नहीं देखी नहीं जाती क्योंकि उन्हें यौन शिक्षा सही से प्राप्त होती हैं। यदि उनके घर का माहौल अच्छा है और वो अच्छे लोगों की संगत में रही हैं। तो एक सही माहौल में यौन शिक्षा सही रूप से परिवार के लोग बता देते हैं जिनमे माँ की अहम भूमिका होती है क्युकी सही संस्कार माँ द्वारा बच्चों में परिलक्षित होते हैं। हम छोटी आयु से ही यह सीखते हैं कि माँ और माँ समान महिलाओं जैसे दादी, नानी, ताई, चाची, मामी, बुआ, मौसी या जिनके साथ इनमें से कोई एक मुँहबोला रिश्ता बना लिया हो, उनके साथ यौन संबंध बनाना घृणित और नीच कृत्य है। बहन और बहन समान लड़कियों जैसे चचेरी बहन, ममेरी बहन, फूफेरी बहन, मौसेरी बहन या जिसको मुँहबोली बहन बना लिया हो, उसके साथ यौन संबंध बनाना घृणित और नीच कृत्य है। बेटी या बेटी समान भतीजी, भांजी या जिसको मुँहबोली बेटी बना लिया हो, उसके साथ यौन संबंध बनाना घृणित और नीच कृत्य है। इसलिए ऐसे रिश्ते में किसी भी तरह का यौन संबंधी विचार आते ही अधिकांश लोगों को घिन आने लगती है। लोग ऐसी बातें किसी से कहते नहीं है, लेकिन अन्दर ही अन्दर आत्मग्लानि महसूस करते हैं। अब तो विज्ञान ने भी यह प्रमाणित कर दिया है कि नजदीकी रिश्तों में यौन संबंध बनाने से समानांतर जीन के कारण कई तरह के विकार उत्पन्न होते हैं।
हमारे आस-पास बचपन से माँ, बहन और बेटी के साथ यौन संबंध को घृणित और नीच कृत्य मानने का वातावरण होता है, लेकिन पत्नी, भाभी और साली के प्रति अपमानजनक मज़ाक, अश्लील और आपत्तिजनक बातों का वातावरण होता है। हमारे घर में ऐसा ना हो, लेकिन आस-पड़ोस या किसी रिश्तेदार के यहाँ अधिकांश जगह पत्नी, भाभी और साली के लिए अपमानजनक माहौल ही होता है। यहाँ तक कि “साला-साली” शब्दों का उपयोग गाली के तौर पर किया जाता है। कोई सार्वजनिक रूप से स्वीकार करें या ना करें ? लेकिन ये भी भारत की वास्तविकता है। इसीलिए भारतीय पुरुषों के मन में पत्नी के लिए सम्मान नहीं होता। भाभी और साली के प्रति यौन भावनाएँ उत्पन्न हो जाती है। परिणामस्वरूप देवर-भाभी और जीजा-साली के यौन संबंधों के मामले बड़ी संख्या में आते हैं। भारतीय पुरुष महिलाओं के बॉयफ्रैंड, देवर और जीजा बनने के लिए तो हरदम लालायित रहते हैं, लेकिन साला बनने की बात आते ही आगबबूला होकर भड़क जाते हैं। आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है ? क्योंकि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारे दिमाग को यह एहसास करवा दिया जाता है कि किसके साथ बनाने चाहिए और किसके साथ नहीं बनाने चाहिए ? और फिर उसी के अनुसार हमारा दिमाग हमारी भावनाओं को नियंत्रित करता है। हमारा दिमाग उचित यौन भावनाओं को उभरने देता है और अनुचित यौन भावनाओं के आने पर आत्मग्लानि महसूस करता है। यहीं आत्मग्लानि बलात्कार की खबरें सुनकर महसूस होनी चाहिए, लेकिन क्यों महसूस नहीं होती?
अगर आप केवल लड़की के पहनावे, लड़कियों के नौकरी करने, लड़कियों के रात को घूमने-फिरने, पश्चिमी जीवनशैली पर अपनी सोच गंदी रख कर चर्चा करते रहें, तो आगे चलकर घर-घर से बलात्कारी निकलेगा। क्योंकि इन बातों का बलात्कार सहित अन्य यौन अपराधों से कोई संबंध नहीं है। आप यह देखिए कि आपके आस-पास गाली-गलौच और गन्दे शब्दों का उपयोग कैसे रोका जा सकता है ? आपके आस-पास प्यार के नाम पर धोखे, झूठ, धमकी, ब्लैकमेलिंग, जोर-जबरदस्ती जैसे अपनाएं जाने वाले घटिया तरीकों को कैसे रोका जाए ?
हम टीवी सीरियल और फिल्मों में गलत चीज़े दिखाने का आरोप लगाते हैं, लेकिन हम गलत चीज़े देखते हैं, तभी तो टीवी सीरियल और फिल्मों में गलत चीज़े दिखाई जाती है। अगर हम खराब टीवी सीरियल और खराब फिल्मों को देखेंगे ही नहीं, तो खराब टीवी सीरियल और खराब फिल्में क्यों बनेगी ? टीवी सीरियल और फिल्मों में गर्लफ्रैंड बनने के लिए जबरदस्ती, शादी करने के लिए जबरदस्ती जैसी घटिया बातों के बारे में बच्चों को कैसे समझाया जाएँ ?
बच्चों को यौन संबंधों के बारे में सही जानकारी सही तरीके से कैसे दी जाएँ ?
जैसे माँ, बहन, बेटी के बारे में यौन विचार आते ही घिन आती है, आत्मग्लानि महसूस होती है, उसी प्रकार बलात्कार और यौन अपराधों के विचार आते ही घिन कैसे आएँ ? आत्मग्लानि कैसे महसूस करवाई जाएँ ? यदि हम बलात्कार सहित सभी तरह के यौन अपराधों को रोकना चाहते हैं, तो इन बातों पर ध्यान देना अतिआवश्यक है। यह नारी-पुरुष, अमीरी-गरीबी, धर्म-मज़हब, जाँत-पाँत और राजनीतिक दलों की समस्या नहीं है। इनका निवारण साधारण लोग ही कर सकते हैं। अपने बच्चों को यौन अपराधी या बलात्कारी बनने से रोकने के लिए हर माता-पिता को यह प्रण लेना होगा कि वो दस वर्ष की आयु होने के बाद अपने बच्चों के मानसिक स्तर का विशेष ध्यान रखते हुए बच्चों को हर एक बात समझाए।
हमें लड़कियों पर अनावश्यक रोक-टोक लगाने की बजाय लड़कियों को केवल अपनी सुरक्षा हेतु जागरूक करना है। लड़कियों और लड़कियों के घरवालों को लापरवाही से बचना चाहिए। अगर लड़की और लड़की के घरवाले कोई लापरवाही किये बिना हर इन्सान से सावधान रहें, तो काफ़ी हद तक यौन अपराधों का शिकार होने से बचा जा सकता है। यहीं बात कम आयु के लड़कों पर लागू होती है। कम आयु के लड़कों और लड़कों के घरवालों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके संपर्क में विकृत मानसिकता के लोग तो नहीं है ? माता-पिता अक्सर अपने बच्चों को समझाते तो है। जब माता-पिता को लगता है कि उनके बच्चे खराब लोगों की संगत में हैं। तब माता-पिता अपने बच्चों से कहते हैं कि इनसे दूर रहो। ये खराब लोग है। लेकिन माता-पिता अपने बच्चों को यह नहीं समझाते कि वो खराब लोग खराब क्यों है और उनसे दूर क्यों रहना चाहिए ? जबकि बच्चों को यहीं समझाना आवश्यक होता है। क्योंकि जब तक बच्चे को समझ नहीं आएँगा, तब तक बच्चे के दिमाग में कौतूहल बना रहेगा। बच्चों को यह समझाना आवश्यक है कि किसी का बुरा करना घृणित और नीच कृत्य है। जो लोग ऐसा करते हैं, उनका बहिष्कार करना चाहिए। हर माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों(लड़का-लड़की) यह विश्वास दिलाए कि किसी भी तरह की कोई असामान्य बात होने पर तुरन्त घर में बताए। और जब बच्चे कुछ भी पूछते या बताते हैं, तो बच्चों की बात सुनकर बच्चों की हर जिज्ञासा को शांत किया जाएँ। बच्चों के मन में यह डर नहीं होना चाहिए कि घरवाले उनकी बात सुनकर नाराज़ हो जाएँगे। अगर समय रहते बच्चों के दिमाग में ये बातें बिठा दी जाएँ, तो बच्चे स्वयं निर्णय कर लेंगे कि कौन खराब है और कौन सही है ? किससे दूर रहना चाहिए और किनसे संपर्क रखना चाहिए ? यह केवल तभी संभव है, जब माता-पिता इस जिम्मेदारी को समझेंगे और इसके निवारण हेतु प्रयास करेंगे।
पूजा गुप्ता
मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)