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अलविदा कुंती-कमल चंद्रा

“कुंती! ये कॉफ़ी दीदी को रूम में दे आना”।

“कुंती! ये फाइल जरा टेबिल पर रखदो न”।

“कुंती! जरा एक ग्लास पानी तो पिला दे यार”।

घर में सभी से चर्चा कर उसे बुलाने का कह दिया। अगले दिन शाम को ही चौकीदार दादा अपने साथ 13-14 साल की गोरी चिट्टी, तीखे नयन नक्श की, तेल लगे लम्बे बालों की दो चोटी में सलवार कुरता पहने लड़की के साथ दरवाज़े पर हाजिर थे । यही था कुंती से हमारा पहला परिचय। अगले ही दिन कुंती अपनी ड्यूटी पर मुस्तैदी से हाजिर। एक दो दिन काम समझने में लगना स्वभाविक ही था, फिर तो वह ऐसी रच बस गईं घर में पता ही नहीं चला कब वह हमारे दिलो दिमाग़ पर छा गईं। हँसमुख स्वभाव, काम में ईमानदारी उसे हमारे और भी करीब ले आया।

            सुबह से ही घर में कुंती, कुंती और सिर्फ कुंती ही गूँजता रहता। कुंती भी  दौड़ कर सभी काम करती रहतीं, उसके चेहरे की हँसी हम सभी को बहुत अच्छी लगती थी। कभी – कभी मैं बेटियों से पूछती कि, यदि ये कुंती नहीं  होंगी तो तुम्हारा क्या होगा? बेटियाँ हँस कर मेरी ओर देख कर बोलती कि, ये तो आपको भी सोचना चाहिए। बात सही थी, और हम ये सोचने भी लगते। हमारी चिंता देख कर कुंती हँसती, कहती – अरे भई!  “आप क्योँ ये सब सोच रही हों, मैं कहाँ जा रही हूँ। मैं यहीं आपके साथ ही हूँ।” पति का भोपाल से पंचमढी ट्रांसफर होने से हम चारईमली सरकारी आवास छोड़कर निजी निवास में शिफ्ट हुऐ थे। अभी सैटल होते जा रहे थे, गाड़ी पटरी पर आ रही थी कि, बिल्डिंग के चौकीदार ने पूछा कि, आपको काम के लिए किसी की जरूरत तो नहीं मेरी नातिन हैं। आप कहेंगी तो मैं उसे गाँव से ले आऊंगा।

बेटियों की किताबें, न्यूज़ पेपर्स, मेरे पेपर्स पढ़ने से हमको उसकी पढ़ने में रूचि का अंदाज़ लगा, पूछने पर बताया कि, पढना तो चाहती थी पर माँ ने भाइयों को ही आगे पढ़ाया, इसे घर के काम में व्यस्त कर दिया। उसका रुझान देखकर उसके घरवालों को समझा बुझा कर पास के ही स्कूल में प्रायवेट 8th में बिठाने के लिए मैं तत्पर हो गईं। एडमिशन, कॉपी किताब पेन पेन्सिल के साथ प्राइवेट फार्म भरवाने की कवायद शुरू हुईं।   सभी तैयारी के बाद कुंती की पाठशाला शुरू हुई।

स्कूल के बाद जैसे ही काम पर आती बिजली सी फुर्ती से काम निपटा कर कभी बेटियों से कभी मुझसे पढ़ती। उसकी ललक देखकर हमको भी खुशी मिलती। परीक्षा हुई उसकी मेहनत रंग लाई, वह अच्छे नंबरों से पास हुई। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, वह उन्मुक्त पंछी की तरह अपनी राह चुनने का सपना देखने लगी। पर आगे के लिए उसकी माँ तैयार नहीं हुई, कहने लगी कि, ” दीदी! अधिक पढ़ने से हमारी जाति में शादी नहीं कर पाएंगे। ज्यादा पढ़ी लिखी लड़कियों को लोग पसंद नहीं करते हैं”। खैर… यह उनका निजी व पारिवारिक मामला था।

कुंती 4 साल हमारे यहाँ काम की, वह घर में पूरी तरह घुलमिल गईं, अनजान लोग उसे मेरी बच्ची ही समझते थे। एक दिन अचानक उसकी माँ हमारे घर आई कहने लगी – “दीदी! अब कुंती आपके यहाँ अब काम नहीं कर सकेगी, हम इसकी शादी कर रहे हैं, मैं लेने आईं हूँ।”  पर कुंती नाखुश थी, वह बार बार यही रट लगाई थी कि, “मुझे नहीं जाना है”। मैंने भी उसकी माँ को समझाया कि, कुंती से तो पूछ लो, इसकी मर्जी से ही शादी करो। उसकी माँ ने कहा – “दीदी हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता हैं। हमने तय करदी हैं शादी।”  मेरी बेटियाँ उसको छेड़ रहीं थीं कि, अरे कुंती! तेरी तो बड़ी ऐश होंगी गहने, सड़ियाँ मिलेंगें, पर न जाने क्योँ कुंती खुश नहीं दिखी। जाते समय जब मैंने उसे शगुन दिया, गले लग कर रो पडी।  बार बार यही कहे जा रही मुझे नहीं जाना हैं। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में थी क्या करूँ समझ नहींपा रही थी? । बहुत भारी मन से हमने कुंती को विदा किया, और कुंती चली गईं……….

           समय गुजरता गया इसी बीच हमारे जीवन में भी परिवर्तन हुआ। बेटियाँ पढ़ाई पूरी कर जॉब को चलीं गईं, मैं भी पति के पास इंदौर आ गईं पर कुंती हमारे ज़हन में मौज़ूद थी। यदा कदा पडौसियों से फोन पर बात होती तो कुछ हाल चाल पता चल जाते थे। धीरे धीरे नज़र से दूर दिमाग़ से दूर होता चला गया सब कुंती के नाना भी दूसरी जगह चौकीदारी करने लगे, फिर तो कोई भी खबर नहीं मिल सकी। लगभग 8 सालों बाद वापिस आना हुआ कि, कुंती यादों में फिर ताज़ा हो उठी। हमने भी हलांकि मोहल्ला बदल लिया, पर एरिया वही। एक दिन सब्जी मंडी में अचानक चौकीदार दादा को देख दौड़ कर कुंती कैसी हैं? सबसे पहले सवाल किया। उनका जबाब सुनकर कानों पर विश्वास नहीं हुआ, फिर जो सुना वह पचा नहीं पाई। अपने पति और भाभी से नाजायज संबंधों की भेंट चढ़ गईं कुंती। अपने कलुषित रिश्ते को जिन्दा रखने के लिए दोनों ने मिल कर कुंती को ही रास्ते से हटा दिया।

 घर आकर जिसे भी बताया कोई विश्वास नहीं किया। इतनी जीवट, हँस मुख, ज़िन्दगी भरपूर जीने वाली बच्ची का ऐसा अन्त? कुंती वापिस हमारे ज़ेहन में समा गईं। महीनों हम उसका चेहरा, हँसी, बातें भूल न पाए। एकबार फिर मस्तिष्क ने स्मृतियों – विस्मृतियों ने अहम रोल निभाया। कहा भी जाता हैं कि,

  *SHOW MUST GO ON*

दुनियाँ यूँ ही चलती हैं, और चलती रहेगी। भीगी पलकों से विदा…..

         *अलविदा कुंती*

*कमल चंद्रा*

277, रोहित नगर फेज 1

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