हम ऐसे क्यों हैं-नरेन्द्र कुमार

इस सृष्टि को सुचारु रूप से चलाने के लिए विभिन्नता अतिआवश्यक है। आप अपनी तलहथी को देखें अगर आपका सभी अंगुलियाँ बराबर हो जाये तो क्या ए सभी कार्य अभी जितना कुशलता से करता है , कर सकेगा , जबाब है नहीं। पहला अंतर रंग और आकृति से है , जो वंश (जनरेशन) से नियंत्रित होता है। जो जिस प्रकार के कुल, परिवार में जन्म लेता है उसका रंग और आकृति उस कुल और परिवार से सम्बंधित होता है और उसी से नियंत्रित होता है।अगर हम स्मृति की बात करें तो यह कुछ वंशानुगत (जनेटिक) तो कुछ हमारे कर्म से नियंत्रित होता है। हमें कैसा माता-पिता मिला ए हमारे कर्म पर निर्भर करता है। जो जैसा कर्म करता है उसे उसी प्रकार का तन और माता-पिता प्राप्त होता है। संतान अपने कर्म से ऊँचाई को प्राप्त करता है, पर जो सत्य कर्म उनके माता-पिता करते हैं उसका फल भी संतान को प्राप्त होता है। एक लोकोक्ति है ‘पुत्र बढ़े पिता के धर्मे खेती उपजे अपना कर्म’ ।

विलगेट्स ने कहा है:- ‘हम अगर गरीबी में जन्म लेते हैं तो उस में हमारा कसूर नहीं है , पर अगर हम गरीबी में मरते हैं तो ए हमारा कसूर है ‘। पर हमारे विचार से दोनों अवस्था में हम ही दोषी हैं जो जैसा कर्म करेगा वैसा ही पाएगा।  धर्म शास्त्र और यहाँ तक की विज्ञान भी सिद्ध करता है की जो जैसा करेगा वैसा पाएगा। आप देख सकते हैं , जब दो व्यक्ति में एक प्रातः काल में जग कर भ्रमण पर जाता है और निश्चित समय पर सभी कामों (कार्यों) को करता है और दूसरा जो देर से जगता है और व्यसन का आदि है। दोनों के आर्थिक समाजीक एवं शारीरिक स्तर में कितना अंतर है। पहला आदर का पात्र है तो दूसरा नफरत का।इस धरातल पर मनुष्य आया हुआ है चाहे वो जिस भूमिका में हो यथा माता-पिता , भाई-बहन, पति-पत्नी , गुरु-शिष्य , सगे-सम्बन्धी आदि अगर सभी अपनी भूमिका कर्तव्य का सही पालन कर रहें तो अच्छी बात है , वे इस जन्म से दूसरे जन्म तक सफल रहते हैं। अगर कोई दम्पति संतति पैदा कर उसका अपने सामर्थ्य के अनुसार सही देख-भाल नहीं करता है तो उसे उसका भरपाई इस जन्म से उस जन्म तक करना ही होगा। अगर कोई संतान अपना कर्तव्य सही से नहीं निभाया है , तो उसे भी अपना कर्म भोगना होगा। यह सिद्धांत हर मनुष्य पर हर रिश्ता पर यहाँ तक की जीव-जंतु पर भी लागू होता है। यहाँ कोई इंसान बड़ा या छोटा नहीं होता उसे बड़ा या छोटा उसका कर्म बनता है। आप देख सकते हैं घर , गाँव , देश , विदेश (विश्व) सभी लोगों को यह दुनिया नहीं जानती और नहीं मानती जो अपना कर्तव्य अपना धर्म सही तरीके से निभाते हैं, उन्हें ही लोग जानते और मानते हैं। गोस्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है :-

                                               “कर्म प्रधान विश्व करी राखा ,

                                               जो जस करनी तासु फल चाखा “।

अतः जो जिस स्तर पर है उसे अपना कर्तव्य सही और उचित तरीके से निभाना चाहिए। अगर हम गरीब हैं तो उसका जिम्मेवार हम हैं क्यों की या तो हम अपना श्रम का उचित इस्तेमाल नहीं कर रहे या अपना श्रम शक्ति के लिए उचित पारिश्रमिक नहीं ले रहे या उन्हें उचित पारिश्रमिक नहीं मिल रहा , अगर दोनों कर भी रहे हैं या हो भी रहा है तो भी गरीब बने हुए हैं तो इसका मतलब हम अपने धन का गलत इस्तेमाल कर रहें हैं। अगर हम ज्यादातर अस्वस्थ रहते हैं तो उसके लिए भी हम खुद जिम्मेवार हैं। या तो हमारा आहार-व्यवहार ठीक नहीं हैं या हम अपना नित्य कर्म सही नहीं करते हैं या हमारे पास स्वास्थ्य सम्बन्धी सही जानकारी नहीं हैं। हमारी समझ से सारी समस्या का समाधान जानकारी (ज्ञान) है और सही तथा उचित जानकारी हासिल या प्राप्त करना हमारी खुद की जिम्मेवारी है।

अतः हम जैसा भी हैं जिस स्थिति में हैं उस स्थिति के लिए सिर्फ दूसरे को दोष नहीं दे सकते। आप खुद एक बार देखिएगा। हम ऐसा क्यों हैं। उसका उत्तर खुद व खुद मिल जाएगा।उत्तर मिल जाता है तो अवश्य बताइएगा तब तक के लिए नरेन्द्र को इजाजत दीजिए । धन्यवाद ।

श्री नरेन्द्र कुमार

ग्राम – बचरी ,जिला – भोजपुर (आरा) बिहार – 802352

ईमेल –  nka35333@gmail.com

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