कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता-1
रचना शीर्षक: मेरा मन
विधा गीत और अतुकांत
चाहता है मेरा मन हर बार अम्बर सी उड़ान ,
पर है व्यथित समाज की जिद्दी संकीर्णताओं से।
बाधाओं से यहाँ हर दिन लड़ना पड़ता है,
तब मिलते हैं मन को मन के स्वीकृत पंख।
मन से मन हो नित मानवता के पथ पर ,
पर मन का मान बना रहे हर पल नीलगगन तक।
चिंतन की लगाम से हो नियंत्रित मन की कठपुतली,
फिर मन की भी सुनो मन से मन मन भर कर।
तेरे मेरे मन का भी हो संवाद सामंजस्य सेतु पर,
पर न काटे कोई किसी के मन की पतंग को।
सबके मन का भी अपना अस्तित्व है,
मेरा मन भी सर्वश्रेष्ठ है कहो किसने रोका है ।
रचनाकार: विष्णु शंकर लाल निगम
ए-18,एच ए एल कोरवा, अमेठी
( उ प्र) पिन 227412
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