कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -01
मन ऊपर प्रतिबन्ध लगाना,
मेरे मन की बात नहींं।
कुछ कहने से मन मे सकुचाना,
मेरे मन की बात नहीं ।
जिस दिन तेरा मन मेरे मन से,
हटा आवरण अपने ऊपर से,
सहज भाव बिन सकुचाने
मन की बात करेगा मुझ से,
उस दिन मैं अपने मन से,
प्रीत लगा तेरे तन- मन से,
जब रात चांदनी आएगी तब
मिलेगा मेरा मन तेरे मन से,
मन को मन भर देखेंगे,
मन को मन भर सेकेंगे,
जस का तस सब रुकजायेगा
जब मन को मन मे भर लेंगे,
उस दिन अपने मन मे,
तेरा मन मैं पाऊंगा,
तन-मन तुझको अर्पण कर
मैं तेरा हो जाऊंगा,
फिर तेरे बिन मेरी होगी,
कोई दिन या रात नहीं।
मन ऊपर प्रतिबन्ध लगाना,
मेरे मन की बात नहींं।
श्री कांत शुक्ल (मोनू)
हरदोई।