झूठ मक्कारों का बेड़ा पार है।
सत्यवादी का ही बंटाधार है।
कंटकों का है बिगड़ता कुछ नहीं
पुष्प पर मौसम की पड़ती मार है।
धनी – निर्धन के नियम होते अलग
पक्षपाती न्याय को धिक्कार है।
मिलन स्त्री – पुरुष का फैशन बना
हो रहा अब प्यार का व्यापार है।
भावना – संवेदना का मूल्य क्या
व्यक्ति का अति स्वार्थी व्यवहार है।
कभी सुख – दुख में न होता सम्मिलित
मित्र का दूरस्थ शिष्टाचार है।
भरा बटुआ हो, खरीदो शान से
नई दुनिया का सजा बाजार है।
खा रहा स्वादिष्ट व्यंजन रात – दिन
हर कोई फिर भी बहुत बीमार है।
फेसबुक पर साथियों की भीड़ है
शाब्दिक संदेश की भरमार है।
गौरीशंकर वैश्य विनम्र
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