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दोस्‍ती न हो-संदीप

दोस्ती न हो
कृष्ण सुदामा सी,
जहां सदा रहे एक याचक
न हो दोस्ती
कर्ण दुर्योधन सी जो खड़े रहे
अन्याय के पक्ष में दोस्ती
कभी नही होती
पति पत्नी में भी जान


एक दूसरे के अवगुणों
को कभी न करते लिहाज ,
बस वार पर वार दोस्ती
न हो कभी हाकिम से क्योंकि
खा जाएगी आपका सुखी संसार
दोस्ती हो तो ऐसी जहां
मिले मुस्कान जब दुखों का
हो पहाड़ सामने दोस्ती


हो ऐसी जैसे सूरज और चांद
मिले भोर और गोधूली में
बस उसके बाद अपना अपना काम
और दोस्ती हो
बस ड्राइवर और कंडक्टर सी ,
नाविक और यात्री सी साथ सफर है


तो हर दुख सुख साझा उसके बाद
अपना जीवन अपनी कहानी
दोस्ती मुझे दें तो ऐसी दे
जहां दोस्त बताए मुझे राह
और कभी मैं बन जाऊं
उसकी आंख का उजाला
संदीप अवस्थी,
अजमेर, राजस्‍थान मो 7737407061

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