कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -02 कहानी शीर्षक – बनारसी साड़ी। शब्द सीमा – 500 शब्द
पहली तनख्वाह मिलते ही रमेश सीधा जा पहुँचा उस कस्बेनुमा एक छोटे से शहर रायपुर के स्टेशन रोड पर स्थित अपने पिता जी की छोटी – सी चाय – नास्ते की दुकान पर। रुपयों से भरा हुआ एक लिफाफा अपने पिता जी को थमाकर उनके चरण स्पर्श करते हुए उसने कहा, “बापू, ये रही मेरी पहली सेलरी के पैसे। इस लिफाफे में कुल पैंतालीस हजार पांच सौ सत्तर रुपए रखे हुए हैं। लगभग छह-सात हजार रुपए जी. पी. एफ., ग्रूप इंस्योरेंस और वेलफेयर फंड के नाम से सरकार काट लेती है, जो कि वह कर्मचारियों को उनके रिटायरमेंट के समय लौटाती है।” “पर बेटा ? सेलरी के पैसे तो एकाउंट में जमा हुए होंगे ना, फिर ये कैश ?” पिता जी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा। “हां बापू, आप एकदम सही कह रहे हैं। मेरी सेलरी के पैसे तो एकाउंट में ही जमा हुए थे, पर मैंने बैंक से नगद निकाल लिए।” रमेश ने बताया। “पर क्यों बेटा ? क्या अपना वह सपना भूल गए कि अपनी पहली सेलरी से तुम मेरे लिए सफ़ारी सूट, अपनी मम्मी के लिए बनारसी साड़ी और गुड़िया के लिए नई ड्रेस और नई साइकिल लाने वाले थे ?” पिता जी ने याद दिलाई।
“नहीं बापू, मैं कुछ भी नहीं भूला हूं। मुझे वो सब बातें याद हैं, पर मेरे सपने से ज्यादा महत्वपूर्ण और पुराना सपना तो आपका और मम्मी का था, मुझे इस मुकाम तक पहुंचाने का। इसके लिए आप लोगों ने क्या कुछ नहीं किया ? कितने समझौते किए। मुझे वो सब याद है, जो कि बचपन से लेकर आज तक देखता आ रहा हूं मैं। कड़ाके की ठंड हो या भारी बरसात या फिर प्रचंड गर्मी, रोज सुबह पांच बजे से ही आप अपनी दुकान खोलते और देर रात तक इसलिए बैठे रहते हैं कि कुछ ज्यादा पैसे मिले, जिससे कि मुझे और गुड़िया को अच्छी शिक्षा दिला सकें। उधर मां अगले दिन की तैयारी के लिए दिनभर काम में लगी रहतीं। कई बार तो हमारी स्कूल फीस पटाने के लिए आपने लोगों से ब्याज पर उधार भी लिए। सो, मेरी सेलरी पर पहला अधिकार आपका और मम्मी का है बापू। अब हम लोग मिलकर सबसे पहले अपने सभी उधार चुकाएंगे और गुड़िया को मुझसे भी बड़ा अफसर बनाएंगे। मेरे सपने पूरे करने के लिए तो पूरी उमर पड़ी है।”
आँखें भर आईं श्याम लाल की। इसी दिन के लिए पिछले पच्चीस साल से उसने अपनी पत्नी के साथ मिलकर क्या कुछ नहीं किए थे। छलकने को आतुर आँसुओं को रोकते हुए वह बोला, “बेटा, अधिकार की कोई बात नहीं है। तुम्हें इसे अपने पास ही रखने चाहिए। तुम्हारी मम्मी के लिए बनारसी और गुड़िया के लिए नई साइकिल…।””बापू, पैसे तो आपको ही रखने होंगे। इस बार ही नहीं, हर बार। मैंने आपका सपना पूरा कर दिया है। अब मेरा सपना पूरा करने की जिम्मेदारी आपकी है।” पिता जी की बात काटते हुए रमेश ने कहा।गले से लगा लिया श्याम लाल ने अपने बेटे रमेश कुमार को। आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी थीं। दुकान पर बैठे ग्राहक भी पिता-पुत्र की बातें सुनकर भावुक हो उठे थे।
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
विद्योचित ग्रंथालायाध्यक्ष
छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम,
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जिला – रायपुर, छत्तीसगढ़
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