कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -02 कहानी शीर्षक – बनारसी साड़ी। शब्द सीमा – 500 शब्द
“अलका तुमने सारी पैकिंग कर ली? परसों सुबह की ट्रेन से हमें लखनऊ निकलना है।” रवि ने ऑफिस जाते हुए पूछा।अलका ने बुझे मन से ‘हां’ कह दिया। रवि ऑफिस के लिए निकल गया। रवि बैंक में एक मामूली क्लर्क था। किसी तरह घर का खर्चा और बच्चों की पढ़ाई – लिखाई चल रही थी। रवि और अलका का बस एक ही सपना था कि उनके बच्चे पढ़ – लिखकर काबिल बन जाए और उन्हें कभी भी ऐसी परिस्थिति का सामना ना करना पड़े इसलिए दोनों अपने ऊपर बहुत कम खर्चते थे। इधर चाचा जी के दोनों बेटे अशोक और मनोज साॅफ्टवेयर इंजीनियर थे। मनोज ने छह महीने पहले ही पुणे में एक साॅफ्टवेयर कंपनी ज्वाइन की था और उसके छह महीने बाद ही, चाचीजी ने अच्छी लड़की और दहेज मिलते ही शादी तय कर दी थी। इस बार भी अलका चाची जी के घर जाने से घबरा रही थी, क्योंकि पिछली बार उन्होंने हर फंक्शन में एक ही बनारसी साड़ी को बार – बार पहनने पर उसका मजाक उड़ाया था। वो सोच रही थी कि चाची जी उसे इस बार भी नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगी।अलका ने अपनी समस्या अपनी दोस्त माला को बताई। माला ने कहा कि उसकी साड़ी ले जाए लेकिन अलका बहुत स्वाभिमानी थी वो राजी नहीं हुई। तभी माला के दिमाग में एक बड़ा ही शानदार आईडिया आया। उसने कहा, “देख अलका अभी फिर से बनारसी साड़ियों का फैशन चला है तो तेरे पास कुल दो बनारसी साड़ी है तो हम उसे लाल से नीली और पीली से हरी कर देते है।””क्या? मैं कुछ समझी नहीं।” अलका ने कहा। “अरे.. मैं तेरी दोनों बनारसी साड़ियों को रंगवाने की बात कर रही हूं।””ऐसा भी होता है क्या? मुझे तो पता ही नहीं था।” अलका ने चौंकते हुए कहा।
“अरे मेरी जान.. दुनिया में हर चीज का इलाज है।” माला ने हंसते हुए कहा।
“माला… लेकिन मेरे पास समय नहीं है। चौथे दिन सुबह ही हमें निकलना है। इतनी जल्दी साड़ी की रंगाई कैसे हो पाएगी? उसमें भी तो समय लगता है ना!” दुखी मन से अलका ने कहा।
“हां समय तो लगता हो लेकिन तेरा काम तीन दिनों में ही हो जाएगा। क्योंकि वो दुकानदार मेरे जान – पहचान का है।” माला ने कहा।
अलका का मुरझाया हुआ चेहरा खिल गया। माला ने उसकी दोनों साड़ी रंगवाकर उसे दे दी और साथ में अपनी भी एक साड़ी दे दी। माला नियत समय पर चाची जी के घर पहुंची। चाची जी के घर शादी की चहल-पहल थी। शादी की सारी रस्में बहुत अच्छी तरह से बीती और साथ ही साथ अलका की बनारसी साड़ी की सबने बहुत प्रसंशा की। चाचीजी को अलका को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं मिला बल्कि चाची जी की बड़ी बहू ने तो अलका को यहां तक कह दिया कि ऐसी ही साड़ी उसके लिए भी मंगवा दे। बनारसी साड़ी का राज, राज ही रह गया। अलका खुशी-खुशी शादी से वापस घर आई और सबसे पहले अपनी सहेली माला को गले लगाकर बहुत धन्यवाद दिया।
प्रगति त्रिपाठी
बैंगलुरू
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