कमलेश द्विवेदी काव्य प्रतियोगिता -02 रचना शीर्षक – दिल की बात।
किसी को आदत बनाने से डरते हैं।
देखा है हाल इश्क वालों का,
इसीलिए इस गली से बचकर गुज़रते हैं ।
किसी को अपना बनाने से डरते हैं।।
देखा है हाल……..
है फ़रेब ये दुनियां, फ़रेबी लोग यहाँ,
सजा कर सपना,बनाकर अपना,
फिर देखो कैसे वो मुकरते हैं ।
इसीलिए किसी को अपना बनाने से डरते हैं।।
देखा है हाल…..
हैं तमाम उलझनें यहाँ इक दिल के सिवा,
उलझ गए गर दिल की उलझनों में,
फिर ओर मसले फिर कहां सुलझते हैं।
इसीलिए किसी को अपना बनाने से डरते हैं।।
देखा है हाल…
सजाकर फूल अलकों में और नूर पलकों में,
मौसम बहारा बदलते ही ,इन फूलों को
देखो किस कदर कैसे वो कुचलते हैं।
इसीलिए किसी को अपना बनाने से डरते हैं।
देखा है हाल……
अलका गुप्ता (नई दिल्ली)
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