कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -02 कहानी शीर्षक – बनारसी साड़ी। शब्द सीमा – 500 शब्द
यूं तो विवाह वर्षगांठ तारीख के अनुसार मनाना चाहिए ,परंतु करवा चौथ के दिन ही इस घर में ब्याह के आई थी तो भला इस दिन से शुभ कौन सी तिथि होगी परिणय दिवस मनाने की। बड़ी ही मुश्किल परिस्थितियों में हुआ था हमारा विवाह …दरअसल मेरी सगाई तो ठाकुर विश्वनाथ जी के बेटे अविनाश सिंह से एक साल पहले ही हो गई थी और शादी नए साल की चौदह फरवरी को तय थी लेकिन नियति को शायद कुछ और मंजूर था ,एक दिन रातोरात मेरी होने वाली सासुअम्मा की तबियत बिगड़ गई, अस्पताल ले जाने पर पता चला कि पेट में कोई ट्यूमर फैल गया है । ऑपरेशन नहीं कर सकते ,दो दिन भी काट ले तो बहुत है। मेरे ससुर सासु अम्मा से बहुत प्रेम करते थे,वो जानते थे कि ‘ जानकी देवी’ मेरी सासू अम्मा अपनी बहु को देखे बगैर इस दुनिया से नहीं जा सकेगी ,इसलिए ससुर जी के आदेश पर मेरे पापा ने मुझे और भावी दामाद अविनाश जी को मंदिर में सात फेरे दिलवाए और अस्पताल भेज दिया। मुझे देख सासू अम्मा हल्का सा मुस्कुराई, उन्होंने मेरे हाथों को छुआ और ठीक दो दिन बाद वो ससुराल की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर छोड़ चल बसी।
आज मेरी शादी की पहली सालगिरह है और पहला करवाचौथ भी ! जानें कितने अरमान थे मेरे अपनी शादी को लेकर… लहंगा पहनूंगी , चूड़ा खरीदूंगी! कुछ भी तो नहीं हो पाया, आनन- फानन में बस एक लाल चुनरिया ओढ़ मैं आ गई इस घर में सासू अम्मा के सपनों को सच करने…परंतु आज पहली सरगी भी मेरे नसीब में नहीं। सासू मां होती तो हम दोनों धूमधाम से ये व्रत करते परंतु इस मर्दाना घर में जहां एक ससुर,एक देवर और पति है भला इनसे क्या उम्मीद करूं, ये कैसे पढ़ – पाएंगे एक स्त्री का मन । ख्यालों की इसी उधेड़ बुन में खोई रमा को अचानक ही ससुर जी की पुकार सुनाई दी। “रमा बिटिया ज़रा मेरे कमरे में आना” ससुर जी ने कहा। रमा कमरे में पहुंची तो ससुर जी ने चाबियों का गुच्छा उसके हाथों में देते हुए कहां, “ये तुम्हारी सासु अम्मा की अलमारी की चाबी है, इस दुनिया से विदा लेते वक्त उसने मुझसे कहा था कि ये चाबियों का गुच्छा तुम्हें करवा चौथ पर दे देना , अब ये अलमारी तुम्हारी हुई.. खोलकर देखोगी नहीं।”
ससुर जी के कहने पर रमा ने अलमारी खोली, देखा तो पूरी अलमारी बनारसी साड़ियों से भरी हुई थी और ताज्जुब की बात की हर साड़ी कोरी थी और इससे भी अधिक आश्चर्य कि हर साड़ी पर कागज़ की एक पर्ची लगी थी और उस पर कुछ लिखा हुआ था । जब रमा सब साड़ियों को अपने हाथों से स्पर्श कर रही थी तभी उसकी नज़र एक सिंदूरी रंग की बनारसी साड़ी पर ठहर गई… साड़ी बेहद ही सुंदर थी और उससे ज्यादा अनमोल उस पर लगी वो कागज़ की पर्ची थी जिस पर लिखा था ” प्रिय रमा तुम्हारी पहली सरगी।” पर्ची को पढ़ रमा अंतस तक भीग गई वो कुछ कहती इससे पहले ही ससुर जी ने आशीर्वाद का हाथ उसके सर पर रख दिया। आज रमा सचमुच सासु अम्मा की बहुरानी बन गई थी उसे अपने पहले करवा चौथ की सरगी जो मिल गई थी।
डॉ. वर्षा महेश
आईआईटी बॉम्बे, पवई
महाराष्ट्र
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