शिक्षक दिवस पर विशेष लेख
परिचय-शिक्षण को अक्सर एक उत्तम कार्य माना जाता है, और शिक्षकों को समाज में ज्ञान और प्रगति का पथप्रदर्शक माना जाता है। भारत में, जहां शिक्षा को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, शिक्षक देश के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, भारतीय विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में शिक्षकों को आज के तेजी से बदलते शैक्षिक परिदृश्य में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस लेख में उच्च शिक्षा के शिक्षकों के सम्मुख आ रही कुछ सर्वाधिक गंभीर चुनौतियों और उनके संभावित समाधानों पर चर्चा की गई है।
भारतीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के सम्मुख चुनौतियां– बुनियादी ढांचे और संसाधनों की कमी भारतीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और संसाधन है। कई संस्थान, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, पुराने शिक्षणउपकरण, कम पुस्तकें और अपर्याप्त प्रयोगशाला सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं। इससे शिक्षा की गुणवत्ता बाधित होती है और शिक्षकों की अपने विद्यार्थियों को सर्वांगीण शिक्षण अनुभव प्रदान करने की क्षमता सीमित हो जाती है। समाधान: शिक्षा के बुनियादी ढांचे और प्रौद्योगिकी में निवेश बढ़ाना आवश्यक है। सरकारों और विश्वविद्यालयों को शिक्षण-सीखने की प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए सुविधाओं, पुस्तकालयों और प्रयोगशालाओं के आधुनिकीकरण को प्राथमिकता देनी चाहिए। कक्षाओं में विद्यार्थियों की अधिक संख्या – भारतीय विश्वविद्यालयों में कक्षा में अधिक विद्यार्थियों का होना एक आम समस्या है। इससे विद्यार्थियों पर व्यक्तिगत ध्यान देना मुश्किल हो जाता है और विद्यार्थियों में आलोचनात्मक सोच और विश्लेषणात्मक कौशल के विकास में बाधा आती है। समाधान: कक्षा का आकार कम करने और अधिक संकाय सदस्यों को नियुक्त करने से इस समस्या को कम करने में मदद मिल सकती है। प्रौद्योगिकी का उपयोग भी विद्यार्थियों के लिए व्यक्तिगत सीखने के अनुभवों को सुविधाजनक बनाने के लिए भी किया जा सकता है। विविध क्षमताओं वाले विद्यार्थी- भारतीय विश्वविद्यालय विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से विद्यार्थियों को प्रवेश देते हैं, जिससे शैक्षणिक तैयारियों और सीखने की क्षमताओं के मामले में विविधता होती है।शिक्षकों को अक्सर इन कमियों को पाटना पड़ता है, जो एक कठिन कार्य हो सकता है। समाधान: ज़रूरतमंद विद्यार्थियों के लिए प्रारंभिक पाठ्यक्रम और सहायता प्रणाली लागू करने से सभी को एक समान शैक्षिक आधार रेखा पर लाने में मदद मिल सकती है। इसके अतिरिक्त, शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम शिक्षकों को विविध शिक्षण आवश्यकताओं को संबोधित करने के लिए रणनीतियों से लैस करने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
अनुसंधान हेतु समय व धन की कमी और प्रशासनिक बोझ
भारतीय विश्वविद्यालयों में शिक्षक अक्सर कार्यों के भारी बोझ तले दबे रहते हैं, जिसमें न केवल शिक्षण बल्कि प्रशासनिक कर्तव्य और अनुसंधान अपेक्षाएँ भी शामिल होती हैं। इन ज़िम्मेदारियों को संतुलित करने से थकावट हो सकती है और शिक्षण और अनुसंधान दोनों की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है। समाधान: विश्वविद्यालयों को गैर-शैक्षणिक कार्यों को संभालने के लिए प्रशासनिक कर्मचारियों को नियुक्त करके शिक्षकों पर प्रशासनिक बोझ कम करने पर विचार करना चाहिए। स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन को प्रोत्साहित करना और अनुसंधान के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना भी शिक्षकों को दोनों क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है। तकनीकी चुनौतियाँ – जबकि प्रौद्योगिकी में शिक्षा को रूपांतरित करने की क्षमता है, भारतीय विश्वविद्यालयों में कई शिक्षक प्रौद्योगिकी तक पहुंच के लिए या तो संघर्ष करते हैं या फिर इसे प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण नहीं पाते। डिजिटल विभाजन इस समस्या को और बढ़ा देता है। समाधान: व्यापक प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण कार्यक्रम और डिजिटल संसाधनों की कमी न रख कर शिक्षकों को उनकी शिक्षण विधियों में प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने में मदद कर सकती है। इंटरनेट प्रदान करने की सरकारी पहल भी डिजिटल विभाजन को पाट सकती है।मूल्यांकन दबाव-शिक्षकों को अक्सर विद्यार्थियों के उत्तीर्ण होने के उच्च प्रतिशत को बनाए रखने के लिए भारी दबाव का सामना करना पड़ता है, जिससे महत्वपूर्ण सोच और व्यावहारिक कौशल विकास के बजाय रटने और याद रखने पर ध्यान केंद्रित होता है। इससे शिक्षा की समग्र गुणवत्ता बाधित होती है। समाधान: मूल्यांकन प्रक्रिया में रटने की बजाय कौशल विकास और आलोचनात्मक सोच पर ध्यान केंद्रित करने से शिक्षा के प्रति अधिक समग्र दृष्टिकोण को बढ़ावा मिल सकता है। सतत मूल्यांकन विधियों और नवीन मूल्यांकन तकनीकों का पता लगाया जा सकता है।
निष्कर्ष-चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, भारतीय विश्वविद्यालयों में शिक्षक अगली पीढ़ी को शिक्षित और प्रेरित करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी तंत्र और समग्र रूप से समाज के लिए इन चुनौतियों को समझकर उनसे निपटने के लिए सहयोग प्रदान करना आवश्यक है। बुनियादी ढांचे में निवेश करके, प्रशासनिक बोझ को कम करके, अनुसंधान को बढ़ावा देकर और प्रौद्योगिकी को अपनाकर, हम एक ऐसा वातावरण बना सकते हैं जिसमें उच्च शिक्षा के शिक्षक आगे बढ़ सकें और भारत के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर सकें जिसके वे अधिकारी हैं। अंततः, शिक्षा प्रणाली की सफलता शिक्षकों के सशक्तिकरण पर निर्भर करती है। वर्तमान समय में उच्च शिक्षा के शिक्षकों के समक्ष चुनौतियाँ।
डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
सहायक आचार्य, जनार्दन राय नागर
राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर