कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -02 कहानी शीर्षक – बनारसी साड़ी। शब्द सीमा – 500 शब्द
एक बार की बात है, बनारस की गलियों एक छोटे से दुकान में अनुपमा काम करती थी । वह बड़े साधारण दिखने वाली हिला थी, वह अपने मीठी जबान से और बनारसी साड़ियों की काफी जानकारी होने से वह लोगों को अपनी दुकान की तरफ आकर्षित कर ही लेती थी,जिसके कारण वहां पर आस – पास सभी व्यापारी उसे जलते थे।उसके बनारसी साड़ियों के बचने के हुनर को देखकर एक आदमी अनुपमा से मिलने आया उसका नाम विक्रम था। विक्रम ने उसे बताया कि वह बड़ा साड़ी व्यापारी है और बड़ी डील्स करने के लिए आया है। उसने अनुपमा को अपनी मीठी बातों से उसे आकर्षित किया और उसने अपने साथ काम करने का प्रस्ताव उसके समक्ष रखा ।
विक्रम की बातों पर अनुपमा ने विश्वास किया और उसने उसके साथ मिलकर काम करने की मान्यता दी। विक्रम ने धीरे-धीरे उसे विशेष आदमियों से मिलवाया और बड़े-बड़े आदमियों के साथ मिलकर डील्स करने के बहाने उसे धोखा देना शुरू किया।धीरे-धीरे अनुपमा को यह अनुभव हुआ कि उसकी संघर्षों और मेहनत का विक्रम ने विश्वासघात किया और धीरे-धीरे अनुपमा को धोखा देकर उसके साथ खेल खेला है। उसने उसकी साड़ियों की महत्वपूर्ण डिज़ाइन्स को चुराने की कोशिश की थी।अनुपमा ने उसके धोखे के खिलाफ आवाज उठाई और उसने उस व्यापारी को सबक सिखाने का निश्चय किया उसने उसके साथ व्यापार करना छोड़ दिया और उसने अपने जमा किए गए पूंजी से एक ठेला खरीद ली जितना उसे अनुभव अपने बाबा से मिला था वह बनारसी साड़ी को बनाने में लगा दी। उसके बाबा एक बहुत अच्छे कारीगर थे उसने अनुपमा को सब कुछ सिखा दिया था और अनुपमा पूरी तरह से उसमें निपुण भी थी ।
आज के व्यापारियों की क्या मांग है वह भलीभांति जानती थीं,धीरे-धीरे उन्हीं साड़ियों की डिज़ाइनिंग में भी माहिर हो गई। और उसने विक्रम के दुकान के सामने ही अपने ठेले को लगाना शुरू कर दिया फिर क्या था ? उसने अपनी मीठी आवाज से लोगों को अपनी साड़ियों की तरफ आकर्षित करती गई और लोग उसकी बनाई अद्भुत साड़ियों की कारीगरी को देखकर खरीदने लगे धीरे-धीरे वह काफी पैसे जमा कर चुकी थी और अब उसने विक्रम के सामने ही अपनी दुकान को खोल ली। अब वह विभिन्न व्यापारियों को अपनी बनाई गई बनारसी साड़ी डील करके बचने लगी और वह एक छोटे से कंपनी की मालकिन भी बन गई और यहां विक्रम की दुकान जो है बंद हो गई।अनुपमा द्वारा बने साड़ियों की प्रसिद्ध दूर-दूर तक फैल गई। वह एक सफल व्यापारी बन गई।
डॉ. निशा सतीश चंद्र मिश्रा ‘ यामिनी ‘
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