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ऑनलाइन हैं बच्चे-डॉ राकेश चक्र

यत्र – तत्र – सर्वत्र बच्चों को ऑनलाइन देखा जा सकता है। बच्चों का जीवन और उनकी दिनचर्या पूरी तरह बदली – बदली नजर आ रही है । पहले माता – पिता ने बच्चों को खेल – खेल में मोबाइल पकड़ाया और कंप्यूटर पर बैठाया तथा अब बिना मोबाइल बच्चों का जीवन उसी प्रकार हो गया है , जैसे पानी बिना मछली का। जिस प्रकार बिना पानी के मछली तड़पती है , ठीक उसी प्रकार बच्चों का जीवन भी दृष्टिगोचर हो रहा है। मोबाइल के आदी बच्चे हिंसात्मक प्रवृत्ति अपना रहे हैं। देखादेखी बच्चों में ऐसी होड़ लगी है कि जिन बच्चों के पास स्मार्ट फोन नहीं था , तब उन्होंने अपने माता -पिता से जिद करके मोबाइल क्रय करवाया तथा जिनके पास सस्ता स्मार्टफोन था उन्होंने ब्रांडेड कंपनी का मोबाइल क्रय करवाया। कुछ बच्चों के माता – पिताओं की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी , उन्होंने भी लोन आदि क्रय कर स्मार्टफोन दिलवाया। तथा जिनके परिजन किसी भी कारणवश नहीं दिलवा सके , तब कुछ बच्चों ने आत्महत्या तक कर ली। जब सिर से पानी उतर गया है तो बच्चों के माता – पिता बहुत हैरान और परेशान हैं। अधिकांश बच्चे पढ़ाई कम मोबाइल पर गेम खेल रहे हैं। क्योंकि गेम ऐसा शब्द जिसको सुनकर बच्चों में काफी दिलचस्पी पैदा हो रही है और आज का समय ऐसा है कि सिर्फ बच्चे ही नहीं , बल्कि बड़े भी ऑनलाइन गेम्स को खेल रहे हैं और केवल और केवल खेल कर अपना स्वास्थ्य और समय ही बर्बाद नहीं कर रहे हैं , बल्कि जीवन को निरर्थक कर रहे हैं। बच्चों का भविष्य दाँव पर लग गया है। इसका सबसे नकारात्मक बिंदु यही है कि इसकी लत ने अनेकानेक बच्चों और बड़ों का जीवन नारकीय बना दिया है। कितने ही किशोर ऐसे भयंकर गेम खेलकर नए – नए स्टंट कर हाथ पैर तोड़ रहे हैं और कुछ आत्महत्या तक कर रहे हैं।
कोरोना काल में छोटे और बड़े बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई हुई। जिसे बच्चों ने स्मार्टफोन , लेपटॉप या कंप्यूटर पर पढ़ा। कुछ महीनों में ही बच्चे स्मार्टफोन , लेपटॉप या कंप्यूटर के आदी हो गए।अधिकांश बच्चे स्मार्टफोन की तरह ही बड़े स्मार्ट हो गए। बल्कि ये कहूँ कि उन्होंने उसमें विशेषज्ञता हासिल कर ली। पढ़ाई का बहाना बनाकर उसमें अनेकों प्रकार के गेम्स खेलने लगे। यहाँ तक की ब्लू फिल्म देखने लगे। किशोर और किशोरियों की फ्रेंड्सशिप बढ़ने लगी। बल्कि कम उम्र के बच्चों में भी इसका क्रेज ,चलन बढ़ने लगा।
ऑनलाइन की उपयोगिता आज ऑनलाइन की उपयोगिता सर्वविदित है। हम सभी उसका उपयोग कर लाभान्वित हो रहे हैं। घंटों का काम मिनटों में हो जाता है। पेट्रोल , डीजल , धन और समय की बचत होती है। हम कुछ भी ऑनलाइन क्रय विक्रय कर सकते हैं। बैंक अकाउंट के माध्यम से रुपये ट्रांसफर कर सकते हैं। टिकट बुक करा सकते हैं आदि आदि।ऑनलाइन के नुकसान – ऑनलाइन के जितने लाभ हैं उससे अधिक नुकसान बहुत हैं। मिनटों में ही ऑनलाइन सन्देशों से लाखों रुपए खाते से उड़ जाते है। पीड़ित हाथ पैर मारता रह जाता है, तड़फड़ाता है। उसकी मेहनत की कमाई पूंजी यूँ ही चली जाती है।
ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के नुकसान ऑनलाइन पढाई या मोबाइल पर ऑनलाइन गेम आदि खेलने से सबसे अधिक बच्चों के स्वास्थ्य और अनमोल आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही यह उनके सामाजिक अलगाव का कारण बन रहा है। ऑनलाइन पढ़ाई समय प्रबंधन कौशल में बाधक हो रही है। ऑनलाइन पढ़ाई में संचार कौशल विकास का अभाव है। ऑनलाइन पढ़ाई या गेम्स में धोखाधड़ी जैसी घटनाएं अधिक हो रही हैं। ऑनलाइन पढ़ाई में अभ्यास कम हो पाता है। ऑनलाइन पढ़ाई में आमने-सामने संचार का अभाव है। ऑनलाइन पढ़ाई कुछ विषयों तक ही सीमित होती है।ऑनलाइन पढ़ाई में शिक्षा की गुणवत्ता का अभाव है। ऑनलाइन पढ़ाई का एक बड़ा नुकसान यह है कि बच्चे को बाहरी परिवेश में ज्यादा वक्त बिताने का मौका नहीं मिलता ।बच्चे के मानसिक विकास के लिए सामाजिक परस्परता भी बहुत जरूरी है। सहपाठियों का ग्रुप बच्चे को बाहरी परिवेश में घुलने-मिलने में मदद कर सकता है और इससे बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ता है।

ऑनलाइन गेम का एक उदाहरण- ऑनलाइन गेम्स के हैरान करने वाले परिणाम सामने आ रहे हैं। सुनकर चकित रह जाएंगे। आज के अमर उजाला का समाचार कुछ इस तरह है – ऑनलाइन गेमिंग एप फोर्टनाईट के जरिए धर्मांतरण कराने का मुख्य आरोपी शाहनवाज मकसूद खान उर्फ बददौ बेहद शातिर तरीके से किशोर और युवाओं को फंसाता था।पहले उन्हें ऑनलाइन गेम में हरवा देता था , फिर कहता था कि कुरान की आयत पढ़ने के बाद खेलो तो जीत जाओगे। जो किशोर उसके प्रभाव में आ जाते थे , उनका धर्मांतरण करवा देता था। राजनगर के किशोर के साथ भी ऐसा हुआ। वह किशोर घर से जिम जाने की कहकर घर से निकलता था और नमाज पढ़ने पहुँचता था मस्जिद में।पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर आरोपी ने बताया कि फोर्टनाईट एप के जरिए 2021 में राजनगर के पीड़ित किशोर से जान पहचान हुई। उसके बाद दोनों डिकोड प्रणाली का प्रयोग कर फोन पर बात करने लगे। वोलोरेंट के जरिए गेम खेलने की शुरुआत हुई। गेम खेलते खेलते आइस बॉक्स के टारगेट पर पहुँचे। यहीं पर धर्मांतरण को लेकर बात हुई। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि ऑनलाइन गेम बड़े पैमाने पर बच्चों का किस प्रकार धर्मांतरण करा सकते हैं।
ऑनलाइन ने छीना बचपन -ऑनलाइन ने बच्चों का बचपन छीन लिया है। आज के बच्चे बचपन में किशोर और युवा हो गए हैं। उनकी बाल क्रीड़ाएँ , लीलाएँ कुंद पड़ गई हैं। मोबाइल पर ऑनलाइन गेम्स एवं अन्य एप्स ने बचपन को अपने में कैद कर लिया है। बचपन में जरूरत से अधिक तकनीकी विकास उन्हें जरूरत से अधिक जिद्दी और हिंसक बना रही है।
ऑनलाइन कार्यक्रम करना भी अत्यधिक ठीक नहीं-ऑनलाइन कार्यक्रम करना भी बच्चों को मोबाइल और ऑनलाइन का आदी बना रहा है। कुछ संस्थाओं को मैं देख रहा हूँ कि वह बच्चों के ऑनलाइन कार्यक्रम रोज ही आयोजित कर रही हैं, शायद गिनीज बुक में नाम दर्ज कराने के लिए ऐसा कर रही हों या अपने प्रचार – प्रसार के लिए , जो बच्चों के हित में बिल्कुल नहीं है। बच्चे ऑनलाइन के आदी तो हो ही रहे हैं , उनके स्वास्थ्य और आँखों पर बुरा असर पड़ रहा है और आयोजित करने वाले या भाग लेने वालों पर भी। ऐसी संस्थाओं और ऐसी विचार धारा रखने वालों को चिंतन मनन करना होगा। तत्काल रोकना होगा।
ऑनलाइन की कुछ सावधानियां – ऑनलाइन में कुछ सुविधाओं को हम स्वीकार करते हैं। कुछ काम आसान हुए हैं लेकिन सावधानी यह बरतनी चाहिए कि कोई भी अनजानी एप्स या लिंक बिना जानकारी के बिल्कुल नहीं खोलें। इनमें कितनी ही फर्जी लिंक और एप्स होती हैं , जो मिनटों में आपके बैंक खाते को खाली कर देती हैं। इसलिए बिना जाने और समझे कोई लिंक या एप्स न खोलें।
परिवारों की वर्तमान स्थिति– हमारे देश में पूर्व में संयुक्त परिवार थे। बच्चों को दादी , ताई, चाची, पड़ोसी सब संभाल लेते थे। माँ काम में व्यस्त रहती थी , तो बच्चे पढ़ाई और खेल में मस्त रहते थे। अधिकांश माताएँ गृहिणी ही होती थीं । अब अधिक कमाई की चाह में सभी पैसे की तरफ भाग रहे हैं। पत्नी भी नौकरी करना चाहती हैं तथा पति भी। यदि दोनों करें तो एकल परिवार में बच्चों को कौन संभाले? वर्तमान स्थिति में परिवारों में सहनशीलता में बहुत कमी आई है , इसलिए परिवार टूट रहे हैं । तलाकों में वृद्धि हुई है , साथ ही घरेलू हिंसा के केशों में अत्यधिक वृद्धि हुई है । ऐसे परिवार का बच्चा माता और पिता के झगड़े से हैरान व परेशान है। वह संस्कार हीन बन रहा है। वह विद्यालय में उपेक्षा का अनुभव कर रहा है या तो वह अपनी माता से अलग या अपने पिता से।
सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी की चाह, आपाधापी, प्रतिद्वंदिता (मेरी कार तेरी कार से अधिक मूल्य वाली क्यों? मैं और कीमती लूँगा) पैसे का महत्व, इन सब का प्रभाव परिवार के सदस्यों के साथ – साथ बच्चों पर भी पड़ रहा है। अब एकल परिवार में एकमात्र लड़का या लड़की ही है तब माता – पिता उसकी जायज नाजायज सब इच्छाएं पूरी करने में सुख महसूस कर रहे हैं। बच्चे पर ध्यान देने और अच्छी आदतें सिखाने तथा बच्चे के साथ खेलने की बजाय उसे मंहगे खिलौने और फोन दिलवा कर वह अपना धर्म निभा रहे हैं।
क्या करें ? आज माता – पिता के पास समय ही नहीं है बच्चों को देने के लिए । यथार्थ में बच्चों को खेलने के लिए पार्क और मैदान भी कम रह गये हैं। फ्लैट सिस्टम के बढ़ते चलन से भी बच्चे घरों के अंदर कैद हो गए हैं। पुराने खेल छुपन छुपाई, लूडो, गिल्ली – डंडा , कंचों का खेल आदि शहरों में तो सब बंद ही हो गए हैं। आजकल बच्चों के पास मनोरंजन के दो ही साधन हैं टीवी और मोबाइल। साहित्य तो आजकल कोई पढ़ना ही नहीं चाहता , ना ही बच्चे और ना बच्चों के मां-बाप। राजबाला जी ने बताया कि उनके पड़ोस में एक साढे 4 साल की बच्ची शानू से जब उन्होंने कहा कि मैं कहानी सुनाऊँ बंदर और मगरमच्छ की तो वह कहने लगी कि यह तो मेरे मोबाइल में है। यह सुना तो आश्चर्य चकित। अर्थात मोबाइल ही उनका सबसे प्रिय मित्र बन गया है। छोटे छोटे बच्चे ऑनलाइन हो रहे हैं।
बच्चों की जरा – सी बात नहीं मानो तो वह हिंसक हो रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे घर छोड़ने की धमकी दे देते हैं। यहाँ तक कि आत्महत्या जैसा प्राणघातक कदम उठा लेते हैं। राजबाला जी के पड़ोस में एक दादी रहती हैं उनकी एक पोती है , दादी उसके साथ खेलने या बात करने की बजाय वह अपनी पोती को मोबाइल पकड़ा कर पड़ोसियों से बातें करती रहती हैं। पोती मोबाइल में व्यस्त, दादी बातों में मस्त। सारी नगरी ही पाताल लोक में जा रही है। सत्यता तो यही है कि आजकल के बच्चों की जीवनशैली मोबाइलमय हो गई है एवं इसके दोषी , आधुनिकता का चोला ओढ़े उनके पालक हैं।
हम सभी देख रहे हैं कि आजकल प्री नर्सरी स्कूलों की बाढ़ सी आ गई है , 3 वर्षीय बच्चों को प्रवेश दे रहे हैं तथा उनकी भी ऑनलाइन कक्षाएँ चला रहे हैं । माता पिता को अवकाश हो तो स्वतः गोद में लेकर लैपटॉप अथवा मोबाइल पर कक्षा शिक्षक की गतिविधियां दिखा रहे हैं अन्यथा ,आया तो है ही । यही है आज की सच्चाई । शैशवावस्था से वृद्धावस्था तक का मानव मोबाइल का दास बन कर रह गया है । संपूर्ण जीवन मोबाइल में उलझ कर रह गया है।
ऑनलाइन गेम्स या मोबाइल के आदी बच्चों का जीवन सुधारने के कुछ उपाय- आज आवश्यकता इस बात है कि ऐसे लती बच्चों , किशोरों का जीवन कैसे बचाकर सन्मार्ग पर कैसे लाया जाय। काम कठिन है लेकिन असम्भव नहीं है ।बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं।

  1. सबसे पहले इससे पीड़ित बच्चों की मनोवैज्ञानिकों , शिक्षकों , चिकित्सकों , समाजसेवियों या बुद्धजीवियों आदि से काउंसिलिंग कराई जाय।
  2. माता पिता बच्चों को अधिक से अधिक समय दें। उनके मन की बातें पूछें। उनके मित्र बनें। उनके साथ कुछ इंडोर गेम जैसे लूडो, कैरम आदि खेलें।
  3. उनके सामने योग करें , उन्हें मोटिवेट करें। जल्दी जगें और रात्रि में जल्दी सोएँ।
  4. टीवी चैनलों पर न चिपकें। बच्चों और किशोरों पर इसका बुरा असर पड़ता है। बच्चे भी बड़ों से सीखते हैं।
  5. माता पिता , परिजन बाल साहित्य की पुस्तकें , बाल पत्रिकाओं को क्रय कर पढ़ें। खाली समय में बच्चों को बोरियत नहीं होगी।
  6. पार्क में घूमने के लिए बच्चों के साथ परिजन आदत डालें। बच्चों को क्रिकेट , बॉलीबॉल , फुटबॉल या अन्य खेलों की ओर रुझान उत्पन्न करें , उन्हें प्रेरित करें। उन्हें बताएँ कि खेलने से प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। शरीर मजबूत बनता है।
  7. मोबाइल का प्रयोग न के बराबर कराएं , उन पर शतत दृष्टि रखें।
  8. अभिभावक बच्चों और किशोरों को प्यार से समझाएं। उन्हें डाँटें या पीटें नहीं।
  9. अभिभावक स्वयं अनुशाषित रहें और बच्चों को भी अनुशासन का महत्व बतलाएँ।

डॉ राकेश चक्र ,90 बी,शिवपुरी
मुरादाबाद 244001,उ.प्र .

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