रिया को किशोरावस्था से ही बनारसी साड़ी पहनने की बहुत इच्छा थी। जब वह अपनी माँ की मालकिन को किसी भी आयोजन में बनारसी साड़ी पहनकर जाते देखती तो उसके अंदर की इच्छा ओर भी प्रबल हो जाती परंतु माता-पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण वह अपनी यह इच्छा मन में ही दबा कर रह जाती। धीरे-धीरे उसकी यह इच्छा उसका सपना बन गई थी। वह सोचने लगी जब मेरा विवाह होगा तो ससुराल से मुझे बनारसी साड़ी आएगी और वह बनारसी साड़ी में ही विदा होकर ससुराल जाएगी परंतु गरीब परिवार में विवाह होने के कारण उसका यह सपना, सपना ही रह गया। अब रिया परिस्थितियों से समझौता करके जीवन में आगे बढ़ने लगी। विवाह के दो वर्ष बाद उसने बेटे को जन्म दिया और उसके पालन-पोषण में लग गई। जब भी वह नई साड़ी खरीदने जाती तो बनारसी साड़ी एक बार अवश्य उसकी आँखों के सामने झूल जाती लेकिन अब बेटे को अच्छी शिक्षा देना उसका सबसे बड़ा सपना बन गया था। उसका बेटा भी बहुत होनहार था, वह हर कक्षा में वह प्रथम श्रेणी लाता। बड़ा होकर वह यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बन गया। नौकरी लगते ही उसके विवाह के लिए रिश्ते आने लगे और एक अच्छी लड़की देखकर रिया ने अपने बेटे का रिश्ता तय कर दिया। रिश्ता तय करते ही वह विवाह की तैयारियों में जुट गई। जब बहू के लिए साड़ी लेने की बात आई तब एक से बढ़कर एक बनारसी साड़ी उसकी आँखों के सामने से गुजरने लगी। वर्षों से छुपी इच्छा आज मन में हिल्लोरें मारने लगी। उसने निश्चय किया कि वह अपनी बहू को बनारसी साड़ी में ही विदा करके लाएगी। उसने अपनी इच्छा बेटे के सामने प्रकट की। बेटे ने भी माँ की इच्छा को सहर्ष ही स्वीकार कर लिया और कहा- ’माँ आप अपनी बहू के लिए जो चाहो, जैसा चाहो, खरीद सकती हो।’ यह सुनकर रिया की खुशी का ठिकाना न रहा। आज रिया के चेहरे की चमक देखने लायक थी। इस उम्र में भी बिना मेकअप के उसका चेहरा चमक रहा था। वह अपने अंदर किशोरावस्था-सी स्फूर्ति महसूस कर रही थी। रिया मन ही मन मुस्कुराए जा रही थी, उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह अपनी बहू के लिए बनारसी साड़ी लेने बनारस जा रही है।
डाॅ. राधा दुबे, जबलपुर, मध्य प्रदेश –