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डिमरी दरवाजे में बैठे सूनी आंखों से आंगन में खेलते बच्चे को देख रही थी, देखकर कभी-कभी वह विचलित हो जाती तथा चीखने लगती और आंखों से आंसू बहने लगते उसकी आंखें उन बच्चों में कुछ तलाशते रहती थी,तीजन बाई से अपनी बेटी की यह हालत नहीं देखी जाती, डिमरी का मन बहलाने के लिए कई प्रयास करती परंतु डिमरी थोड़ी ही देर में फिर पूर्ववत हो जाती
तीजन को दो साल पहले की वह स्याह रात अभी भी याद थी सोच रही थी काश! उस दिन डिमरी मायके नहीं आयी होती तो शायद उसकी यह हालत ना होती,आज वह डिमरी की हालत का जिम्मेदार स्वयं को भी मानती थी उसी ने डिमरी को आग्रह करके बुलाया था उस दिन रात के समय सभीने खुशी से खाना खाया और खाना खाकर जब गहरी नींद सो रहे थे तो मध्य रात्रि के समय पिछे के बाडे में हलचल की आवाजे आने लगी थी,ऐसे लग रहा था जैसे कोई चहल कदमी कर रहा है तीजन ने सोचा कोई कुत्ता, या बिल्ली होगी उसे यह सामान्य बात लगी थी , वह फिर आंख बंद किए पूर्ववत लेटी रही तभी उसे लगा कोई दरवाजे को धकेल रहा है । दरवाजा भी तो टूटी फूटी लकड़ी के फर्रो से बना था अचानक धड़ाम की आवाज आई और दरवाजा गिर पड़ा , घर के लोग उठी ही रहे थे कि एक बड़ा सा साया घर में प्रवेश करते नजर आया, अब सब समझ गए थे क्या माजरा है और चारो ओर अफरा- तफरी चीख-पुकार घर में मच गई परिवार के सभी लोग खुले जंगल की ओर भागे थोड़ी मे गांव में भी चारों ओर अफरा तफरी का माहौल बन गया था.
रात का समय होने से कोई किसी को नजर नहीं आ रहा था गांव में लाइट नहीं थी इस वजह से घुप अंधेरा छाया था,सब लोग दम साधे एक दूसरे का हाथ पकड़ कर दुबक कर बैठ गये कुछ लोगों ने मशालें जला ली थी,मशालों की रोशनी में अब सारा दृश्य साफ नजर आ रहा था, वह काला साया हाथियों का था , हाथियों का झुंड गांव में घुस आया था और घरों में घुसकर सब तहस-नहस कर रहा था, गांव में रहने वाले आदिवासियों की घास फूस से बनी झोपड़ींयां हाथियों के सामने ज्यादा टिक नहीं पायी और धक्के मात्र से बिखर गई थी, हाथियों का यह तांडव लगभग दो घंटे चला, फिर अचानक चारों तरफ शांति छा गई, तभी सभी लोगों ने घर की ओर जाने का फैसला किया, डिमरी तो पागलों की तरह घर की ओर भागी, घर जाकर वह अपने बच्चे मकरु को ढूंढने लगी, परिवार के सभी लोगों को घर की हालत देखकर बहुत दुख हो रहा था,और मकरू के दिखाई नहीं देने से सब लोग चिंतित हो गए थे, मकरू कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था तभी घर से थोड़ी ही दूरी पर झाड़ियों में डिमरी की नजर पड़ी तो वह चिखकर बेहोश हो गई सब उसी दिशा में दौड़ पड़े देखा तो सबकी चीखें निकल गई, डिमरी के बेटे मकरु को हाथियों ने बेरहमी से रौंद डाला था, खून से लथपथ मकरु का शव़ झाड़ियों में पड़ा था, किसी ने बच्चे के शव को उठाया तो किसी ने डिमरी को उठाकर घर लाया, डिमरी को घर होश आते ही वह फिर बिलख बिलख कर रोने लगी जैसे-तैसे बच्चे का अंतिम संस्कार किया और डिमरी को सांत्वना देते रहे.कुछ दिनों पश्चात घर का माहौल धीरे-धीरे सामान्य होते चला गया, परंतु डिमरी के लिए सामान्य होना अब असंभव था.वह गहरे सदमें में थी,चुप्पी साधे टकटकी लगाए घंटों बैठी रहती ।
कभी अचानक रोने लगती, वह होशो हवास में नहीं थी, उसकी इस हालत पर परिवार के सभी लोग दु:खी थे, सभी सभंलने का प्रयास कर रहे थे।हाथियों ने घर में रखा अनाज ज्वार, मक्का, मटकों में भरा महुआं,साल भर का जमा राशन एवं आंगन में लगे कादल से लदे पेड़ पौधे सब ही तो चट कर लिया था, शायद अधिकार हनन के परिणाम से अवगत कराना चाह रहे हो हमें,परंतु हम इंसान भी कुछ कम नहीं है,तीजन सोच रही थी इन हाथियों का भी क्या दोष ! हम इंसानों ने इनकी जमीन पर अपने घर बना लिए हैं तथा इनके खाने पीने की चीजें फुल, पत्ते, लकड़ी, सब पर अपने अधिकार जमा कर हम अपने स्वार्थ साध रहे है, वृक्षों के कटने से वन संरचना को हम असंतुलित कर रहे हैं,वनों को नष्ट करने से इनके खाने पीने रहने के सभी साधनों को तो प्रभावित कर रहे हैं,तभी यह जंगली जानवर गुस्से में आकर इंसानों के प्रति अपनी नफरत जाहिर करने लगे हैं घरों में घुसकर लोगों को कुचल रहे हैं। भला इन का क्या दोष आखिर यह तो बेचारे जानवर ही है, ईश्वर ने हमें बुद्धिमान बनाया है फिर भी हम मूर्खतापूर्ण कार्य कर रहे हैं तथा पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं । यह तो बेचारे जानवर है जंगलों पर ही निर्भर है ईश्वर ने हमारे जीवन यापन के कई संसाधन बना रखे हैं परंतु फिर भी हम जानवरों, पशु ,पक्षियों के अधिकार पर अपना वर्चस्व रखना चाह रहे हैं अगर हमने समय रहते पर्यावरण का संरक्षण नहीं किया तो शायद आने वाले समय में अपने जीवन की रक्षा करना भी असंभव हो सकता है। उदाहरण स्वरुप हम डिमरी के दर्द से यह अंदाजा लगा सकते है,पर्यावरण हमें कुछ दे सकता है तो उसके प्रति की अती करने पर वह हमसे सब वापस भी ले सकता है,यह प्रकृति का नीयम है।
लघुकथा:- (मौलिक) एड.डि.चित्रा
(म.प्र. ) भोपाल