हिन्दी दिवस प्रतियोगिता 2023
मेरा देश मेरा गाँव चलचित्र की शूटिंग चीरवा गाँव में हुई। जिससे यह गाँव प्रसिद्ध हो गया। चीरवा गाँव उदयपुर से। 8 किमी. की दूरी पर स्थित है। राजस्थान के इतिहास में सबसे पुराना अभिलेख है। इस शिलालेख के समय मेवाड़ का शासक समर सिंह था । भुवनसिंह सूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरी ने चित्तौड़ में रहते हुए चीरवा शिलालेख की रचना की और उनके मुख्य शिष्य पार्श्वचन्द्र ने जो बड़े विद्वान थे, उनको सुन्दर लिपि में लिखा। श्री चारभुजा नाथ मंदिर की बाहरी दीवार पर यह लेख : लगा हुआ है। चीरवा शिलालेख में संस्कृत में श्लोकों का वर्णन मिलता है। शिलालेख में मेवाड़ी गोचरमि, सती प्रथा, शेव धर्म आदि पर प्रकाश पड़ता है। गाँव की विशेषता→ चीरवा की प्रमुख विशेषता यह है कि यह प्रकृति की गोद में बसा है। चारों तरफ पहाडियों से घिरा होने से इसकी सुन्दरता देखते ही बनती है। कालान्तर में चीरवा मीणा जाति का था। परन्तु करमाजी के अच्छी कार्यशैली को देखकर राजा ने उन्हें एक दिन भ्रमण करने जितनी जगह उनके नाम कर दी एवं यह गाँव मेनारिया ब्राह्मण जाति बाहुल्य से प्रसिद्ध हो गया। यहाँ दो पहाड़ों को चीरती हुई नागदा नदी प्रवाहित होती थी। इसी कारण गाँव का नाम चीरवा प्रसिद्ध हुआ। गाँव में मेनारिया के अलावा मेघवाल, सुथार, बैष्णव, कुम्हार, नाई आदि जातियों के लोग बड़े हर्ष के रहते हैं।
महत्वपूर्ण स्थान → चारभुजा नाथ मंदिर गाँव का सबसे प्राचीन मंदिर है। संस्कृत शिलालेख सन् 1273 ई. में इसी मंदिर में लिखवाया गया जो कि राजस्थान भर में प्रसिद्ध है। मन्दिर की मूर्तिगढ़बोर के बाद दुसरे नम्बर पर है। चार भुजा मंदिर में पूजा पूर्व में भारती परिवार किया करते थे। वर्तमान में यहाँ बैण्णव पूजा कार्य सम्पन्न करते हैं।
चारभुजा राठासेन माता मंदिर गाँव के उत्तर दिशा की तरफ पहाड़ी पर स्थित है। एकलिंग नाथ ट्रस्ट द्वारा मंदिर, कार्य सम्पन्न किया जाता है। माँ राठासेन एवं उनकी बहन का यानक स्थित है। ऐसी मान्यता है कि दोनों बहनों को युवावस्था के दौरान सतीत्व चढ़ा एवं वे पहाड़ पर चढ़े। मगर छोटी बहन चढ़ न सकी और राठासेन माँ पूरे पहाड़ पर चढ़ गए। और माँ देवी रूप को प्राप्त हुए। इसी प्रकार एक बार राजा द्वारा घोषणा की गई कि जो व्यक्ति हाथी को पहाड़ पर चढ़ाएगा उसे आधा राज्य दे दिया जाएगा। महावत द्वारा हाथी पहाड़ी पर चढ़ा दिया गया। मगर राज्य जाने के डर से पीछे की तरफ से हाथी को नीचे गिरवा दिया गया। इसी क्रम में श्रृंग ऋषि आश्रम् प्रसिद्ध है। जो कि चीरवा के पूर्व में प्रकृति की गोद में बसा है। रामायण काल में श्रृंग ऋषि का तपकाबहुत महत्व था। उनके तप का प्रभाव ऐसा हुआ कि उनके सिर पर सिंग निकल आए एवं उन सिंगों में अमृत भर गया। राजा दशरथ के कोई सन्तान नहीं थी। तब गुरु वशिष्ठ ने राजा को श्रृंग ऋषि के सिंग से अमृत श्र तीनों रानियों को पिलाने की बात कही। तब ऋषिवर को बुलाया गया एवं उनके सिंग को तोड़कर रानियों को अमृत पिलाया गया। सिंग के टूटने का असरनीय दर्द लेकर ऋषि दौड़े और दौड़कर चीरवा में आकर गुफा में बैठ गए। कालान्तर में शंकर पुरी के स्वप्न में श्रृंग ऋषि ने आकर उस स्थान को खुदवाने के लिए कहा खोदने पर मूर्तियाँ निकली जिसमें एक तरफ रक्त प्रवाह एवं एक तरफ दुग्ध धारा बढ़ने लगी। तत्पश्चात् वहां मन्दिर निर्माण हुआ एवं श्रृंग ऋषि मठ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। एक बार भण्डारा का ! आयोजन हुआ जिसमें घी की कमी हो गई। शंकर जी महाराज ने वहां बने कुण्ड से पानी भर कर लाने की बात कही। भक्त जन पानी लाए मगर वह पानी घी में रूपान्तरित हो गया। ऐसा चमत्कार होते रहते हैं मठ में ।
भूतागिरी आश्रम्-चीरवा गांव से दो किमी. पूर्व राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर है। भूतगिरी जी स्वतंत्रता सेनानी थे।. देश आजाद होने पर सन्यास ले लिया। ये कई आश्रमों . में रहे। मगर राजसमन्द के सोनियाणा आश्रम में काफी. समय तक रहें| देवलोक गमन होने के बाद चीरवा में उनका आश्रम बना। जो कि भूतेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि इनका. तप इतना अच्छा था कि ये स्वयं शेर रूप में आजाते थे और फिर इंसान बन जाया करते थे। इसी प्रकार चीरवा एक प्रसिद्ध स्थान बन गया।
रीति रिवाज → भारतु गाँवों का एक प्रसिद्ध मेला है।. शहरों के मुकाबले गाँव के लोग अपनत्व अधिक रखते हैं। एक- दूसरे के सुख-दुःख में काम आन गाँव के लोगों की खासियत है। गाँव के रीति रिवाज अपनत्व लिए रहते है। इसी प्रकार चीरवा भी है। ढूंढोत्सव हो या श्रावण उद्यापन, करवा चौथ या नवरात्रा भोज पूरा गाँव एकजूट हो मनाता है, और सामुहिक भोज का आयोजन किया जाता है। आज भी औरतें घूंघट में सूर्योदय सूर्यास्त से पहले खाना लेकर या जाती हैं तत्पश्चात् पुरुष वर्ग प्रसादी का, आनन्द लेते हैं। पूरे गाँव में प्रत्येक त्यौहार आनन्द और हर्षोल्लास से मनाया जाता है। जिस प्रकार मेवाड़ में शीतला सप्तमी मनाई जाती है उसी प्रकार चीरवा में रंग तेरस बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है। होली के दिनों में गैर नृत्य का आयोजन होता है जो कि तलवार से भी खेला जाता है।
बरसात एवं ठंड के दिनों की धुंध देखने का आनन्द ही कुछ और है। घरों की छत से जब पहाड़ों को देखते है मानो बादल आकाश से उतर आए हों। शिमला और मनाली को पीछे छोड़ दे ऐसा मनोरम दृश्य प्रकृति दिखाती है चीरवा की। पूर्व में चीरवा घाटा था जहां अब फूलों की घाटी से प्रसिद्ध हो गई है। यहां रोप वे भी है जो पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है। मुख्य पहनावा आज भी धोती कुर्ता एवं लाल पगड़ी बर्ष कुर्ता पुरुषों में पहनी जाती हैं। वहीं स्त्रियां गागरा और ओदनी पहन अपने गाँव का प्रतीक बतानी है।
यज्ञा पालीवाल पता – चारभुजा मंदिर के पास, चीरखा, उदयपुर 7597 824648