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मेरा गाँव मेरा नाज-छगन लाल व्यास

हिन्‍दी दिवस लेखन प्रतियोगिता 2023

विक्रम संवत 1515(सन 1458) में अक्षय तृतीया, सोमवार को पांच परिवार से बसे इस ग्राम में आज करीब एक हजार से ज्यादा घर आबाद हैं।जनसंख्या का यह आंकड़ा जहाँ मन प्रफुल्लित करता है वहीं कुछ प्रश्न भी छोड़ता है कि आखिर यह आज तक शहर की श्रेणी में क्यों न आया!इसके कई कारण रहे ।यथा मौसमी बीमारियों की भरमार से यहाँ मृत्यु दर अधिक रही।जहां यह ग्राम आबाद है उसके चारों तरफ अतिवृष्टि में पानी भर जाता है जिससे चार माह तक आवागमन कठिन हो जाता हैं।इसके साथ लवणीय भूमि के कारण पेयजल की विकट समस्या रहती हैं।इसीलिए कहा गया-   खांडप मोटी खोट,प्रथम तो पाणी नहीं…। वैसे पानी के बंदोबस्त हेतु यहाँ दो तालाब हैं जो एक पेयजल के लिए काम में लिया जाता है और एक नहाने -धोने के लिए।अकाल की स्थिति में ये दोनों जवा देने लगते हैं तब इन्हीं में कुइयां खोद कर उस पर खाट बिछाकर/ताला लगाकर पहरा देने देखकर जल की महत्ता जानी जा सकती है।लेकिन सन 1964-65 इस ग्राम को बामसीन(समदड़ी)जल प्रदाय योजना से जोड़कर पहली बार नलों से पानी टपका तो ग्रामीणों को लगा मानो गंगा ही आ पहुँची। वैसे यह ग्राम शुरू से ही किसी राजा,महाराजा  या जागीरी के अधीन नहीं रहा।यह खाळसा का गांव रहा इससे यहाँ आतंक ,भय का तनिक भी वातावरण नहीं रहा।जनता पूरी तरह स्वतंत्र रही लेकिन इसके धनाढ्य की खबर से इसे दो बार लूटा गया।

दूसरी बार सन 1921 में धनतेरस के दिन लूट को देखते हुए यहाँ के अजीत सिंह जी सोलंकी का खून खोल उठा और उन्होंने डाकूओं को ललकारा।इसमें सोलंकी वीरगति को प्राप्त हुए ।उन्होंने गाँव को लूटने से बचाकर सदैव के लिए अजर अमर हो गए।आज भी धनतेरस के दिन उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर याद किया जाता हैं।सन 1923 का वर्ष इस गाँव के लिए अपार खुशियां लेकर आया जब यहाँ दरबार विद्यालय खुला इसी के साथ खुला -आयुर्वेदिक अस्पताल व डाकघर।तीनों एक ही छत के नीचे बनाकर सुपुर्द किये ,यहाँ के लूंकड़ परिवार ने।इससे स्पष्ट होता हैं कि यहाँ के जैन परिवार धनाढ्य थे जो बम्बई, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा तक में व्यापार कर नाम करते।इन्हीं में सीताराम जी लूंकड़ हुए जिहोंने उड़ीसा के खुर्द रोड़ में व्यापार के साथ साथ ‘सदाव्रत’ चला कर खांडप का नाम अजर अमर कर दिया।आज उनके पोते वहां रहते हैं लेकिन जहां उनकी दुकान थी वह स्थान आज भी सीताराम चौक खांडप के नाम से जाना जाता हैं।

 शान्ति के प्रतीक इस ग्राम में कभी लड़ाई-झगड़ा नहीं हुआ यही कारण है कि यहाँ आज तक पुलिस चौकी नहीं!इस वर्ष यह स्वीकृत हुई है। तत्कालीन समय में विद्यालय बनाओ,विद्यालय पाओ के सिद्धांत पर लूंकड़ परिवार के साथ छतीस कौम ने यथाशक्ति सहयोग देकर विशाल भवन बनाकर 1962 में ग्राम में माध्यमिक विद्यालय क्रमोन्नत करवा कर करीब पचास किलोमीटर की परिधि में एक उपलब्धि हासिल की।इसी का परिणाम रहा कि दूर दूर से विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते ।यही कारण रहा इस क्षेत्र में पटवारी, अध्यापक व ग्राम सेवको की कोई कमी नहीं।समय समय पर कुछ उच्चतर पदों पर, धनीमानी होने पर भी इस विद्यालय का उपकार मानते हैं।

        संवत 1995 में यहाँ दशनाम अखाड़ा के नागा साधु दशरथ गिरी जी घूमते फिरते यहाँ आये और पीने के तालाब के समीप धूणी तपाने लगे।इसके पीछे लोगों को भूत का डर लगता लेकिन साधु न डरा इससे लोग उन्हें ‘सिद्ध’ जान छोटी मोटी बीमारी पर उनके पास पहुँचते तब वे चुटकी में दर्द से राहत दिलाते।उन्होंने ही गांव में एक बार(माघ मास शुक्ल पक्ष में)प्रमुख मार्गों को बंद कर जागण का कहा ताकि पूरे गांव में सुख शांति रहेगी, इसी के साथ शीतला सप्तमी का मेला व श्रावण मास में सामूहिक यज्ञ का भी कहा।सम्पूर्ण ग्राम कोरोना काल में नागाजी की बात -“कितनी सार्थक थी” सोचकर प्रसन्न होते वहीं उन्होंने 1996 के दुष्काल में भी यहाँ वचनसिद्धि से बरसात करवायी व प्लेग रोग में भी राहत दिलवायी।इन्हीं कारणों से आज यह विशाल मठ बना जो आसपास में चमत्कारिक रूप में जाना जाता हैं।यहाँ दिनोंदिन दानदाता दान देते हैं इसी से वर्तमान में यहाँ कई कमरे,हॉल, ए सी रूम और हजारों की संख्या में ठहरने का स्थान उपलब्ध है।

       इसी समय के समीप यहाँ राजस्थानी भाषा के साहित्यकार डॉ. नृसिंह जी राजपुरोहित हुए जो शिक्षक रहते राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित होकर दिल्ली तक गांव का नाम करते साहित्य के क्षेत्र में पूरे भारत में राजस्थानी कहानीकार के रूप में पहचान बनाकर पूरे गांव को अजर अमर कर गये।आपको केंद्रीय अकादमी के साथ कई संस्थाओं से सम्मान प्राप्त हुए।राजस्थानी कहानीकार के रूप में उन्हें राजस्थान का प्रेमचंद कहा जाता है।  इस प्रकार शिक्षा, साहित्य एवं आध्यात्मिकता के त्रिगुण वाले इस ग्राम धनवानों, विद्वानों, दानदाताओं व श्रद्धालुओं के साथ गांव के लिए अपना सर्वस्व लूटाने वालों की कोई कमी नहीं।यहाँ एस बी बी जे बैंक की शाखा की सुविधा पिछले चालीस सालों से अनवरत उपलब्ध है वहीं आवागमन के साधनों की सीमितता भी यहाँ की पहचान कही जाती है।वर्तमान में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पशु चिकित्सालय आदि के साथ सभी राजकीय कार्यालय दानदाताओं द्वारा बने हुए हैं।

   यह ग्राम जिला मुख्यालय बाड़मेर से 170 किलोमीटर दूर अवस्थित होने एवं जालोर (40किमी) ,जोधपुर (90किमी) पाली (75किमी) ही होने से यहाँ के रीतिरिवाज, संस्कार,पहनावा व बोली पर इन जिला मुख्यालयों को स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।छोटी मोटी खरीददारी पर ग्रामीण इन शहरों की ओर कूच करते हैं।हाँ।जिला स्तर के कार्यों हेतु जाना एक तरह की मजबूरी कही जा सकती हैं।अब बालोतरा जिला मुख्यालय बनने से काफी राहत मिलेगी।   गाँव के रीति रिवाज पुराने ही विद्यमान हैं जैसे सभा करना उसमें अफ़ीम आदि की मनुहार, श्रीमाली ब्राह्मणों में वधू को गोदी में उठाकर फेरे लेने को देखने हेतु लालायित रहना,जाति की दृष्टि से नाई, कुम्हार, दर्जी व ब्राह्मण का होना व उन्हीं को विवाह आदि आयोजन पर प्राथमिकता देना।जाति का पहनावा,जाति की बोली आदि से जाति प्रथा कायम है ,हां धीरे धीरे आधुनिकता हावी हो रही हैं इसी कारण डी जे,ड्रोन, विविध मिठाई आदि आ रही हैं वहीं बैलगाड़ी आदि के दर्शन दुर्लभ होने से खेती में ट्रैक्टर ने स्थान बना दिया वहीं आवागमन में फोरव्हीलर, टू व्हीलर की बहुतायत हो रही हैं वहीं शिक्षा में निजी स्कूलों का वर्चस्व स्थापित हो रहा हैं।हाँ।विवाह बाद मन्दिर ,देवस्थान पर जात्रा देना यहाँ के लोग शुगुन मानते हैं।

      वर्तमान में यहाँ सभी जातियों के भव्य मंदिर, धर्मशालाएं व ऊंची ऊंची अट्टालिकाएं दूर से ही आकर्षक लगती कहती हैं-‘आओ।पधारो ।म्हारे,खांडप।’शांति के प्रतीकता में यहाँ के कुछ उदाहरण -जल प्रदाय योजना में जब बामसीन(समदड़ी)के नलकूप ने जवाब दे दिया तब इस ग्राम को रामा(जालोर)से जोड़ा गया ।कुछ समय बाद इसने भी जवाब दे दिया तब करीब पांच साल तक ग्रामीणों ने मंहगे दामों पर पानी मंगा कर पीया लेकिन कभी प्रशासन के सामने धरना,प्रदर्शन करने में रूचि नहीं ली यही स्थिति बिजली के बारे में।चार पांच दिन बिजली आपूर्ति नहीं होने पर भी ‘चूं’ नहीं करना यहाँ के लोगों की गम्भीरता कही जा सकती हैं और शान्ति प्रियता की परिचायिकता भी! अब जी एस एस बन जाने व उम्मेदसागर -धवा-खण्डप योजना से प्रसन्नता।  ऐसे शांति प्रिय,शिक्षित ,धनी मानी व्यक्तियों का यह ग्राम नृसिंह राजपुरोहित की जन्मभूमि व नागाजी महाराज की कर्मभूमि से पूरे जिले में गौरवान्वित हैं ।पूरे देश में भी नाम।इसका मुझे नाज।मेरा गाँव। सड़क मार्ग से आना चाहें तब जोधपुर, पाली,जालोर से सीधी बस सुविधा वहीं पाली बाड़मेर रोड़ पर स्थित इस ग्राम तक पहुँचने का यह पक्का मार्ग भी।यहाँ आने पर बस स्टैंड पर नागाजी के मठ पर शीश झुकाते हुए मनोकामना करोगे वह पूरी होंगी वहीं समीप ही बना -‘बूट हाउस’ देखकर आपकी अंगुली स्वतः दांतो तले पहुंचेगी,यह सोच कि -यह मुंबई है या खांडप!जिसे अंग्रेजी ने खंडप कर दिया।

खांडप जिला बालोतरा 

सम्पर्क सूत्र 9462083220

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