‘हिन्दी दिवस प्रतियोगिता 2023
बालकृष्ण के चित्रों में उनके हाथ में सदैव बांसुरी नजर आती हैl सुदामा की कांख में पोथी नजर आती हैl पौराणिक कहानियों में हम किसी बालक का चित्र देखेंगे तो उसके हाथ में धनुष, तलवार, लखोटी, स्लेट,पाटि, बस्ता जैसी वस्तुएं नजर आएंगीl समय बदला फिर बच्चों के हाथों में खेल के साधन बल्ला, रैकिट, गेंद, सायकिल,टोपी आदि नजर आने लगे lवर्तमान समय में यात्रा के दौरान प्लेन, ट्रेन, गाड़ी किसी सार्वजानिक स्थान पर भी बच्चों के हाथ में मोबाइल नजर आ ही जाएगाl बच्चा माता पिता के साथ होते हुए भी अकेला मोबाइल मेँ सर घुसाए अलग थलग होगाl आज के आधुनिक युग मैं मानव शरीर पर मोबाइल के अधिक उपयोग से उनके दिल, दिमाग और शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों से हम सभी विज्ञ हैं|
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए हुए बच्चों के हाथ में किताबों के स्थान पर मोबाइल अधिक चिंता का विषय है। वास्तविकता तो यह है कि बच्चों के हाथों में खिलौनों के स्थान पर भी मोबाइल ही है आज हालात यह है कि एक सात आठ वर्ष के बच्चे को मोबाइल पकड़ा कर माता-पिता यदि कुछ घंटों के लिए उसे छोड़कर घर के बाहर चले जाएं तो बालक मोबाइल में इतना खोया रहेगा कि उसे अपने चारों तरफ के वातावरण का एहसास भी नहीं होगा, उसे ना भूख लगेगी ना प्यास ही सताएगीl भले उसने आंखों पर मोटा चश्मा ही क्यों ना पहना होl अपने हम उम्र दोस्तों के साथ दौड़ भाग वाले खेल खेलने, रोचक कहानियां पढ़ने के स्थान पर वह फोन पर व्यस्त रहना ज्यादा पसंद करता है l मोबाइल के अत्यधिक उपयोग की इस बीमारी से प्रभावित उच्च वर्ग के बच्चे ही हैं ऐसा नहीं है, आजकल तो इंटरनेट की सुविधा सर्वत्र होने से छोटे-छोटे गांव में भी स्मार्टफोन उपलब्ध हैं l वहां के बच्चे भी मोबाइल में व्यस्त नजर आ जाएंगेl यह हो सकता है कि पूरी जानकारी के अभाव में उसी वीडियो, रील, चलचित्र को
बार-बार देख रहे हों l विचारणीय है कि हमारे बचपन के दिन कितने सुहाने थेl जब मोबाइल, टैब लैपटॉप, स्मार्टफोन जैसे गैजेट्स का हमारी दिनचर्या पर कोई नियंत्रण नहीं थाl
हम बच्चों में भी जानकारी का कोई अभाव तो नहीं था जो जानकारी हमारे लिए योग्य हित कारक थी उसे हम माता-पिता, परिजनों, रेडियो, समाचार पत्र पुस्तकों से प्राप्त कर सकते थे मनोरंजन के लिए बहुतेरे दोस्त थेl खेलने के लिए घर बाहर जगह ही जगह थीl कोई बंदिश नहीं थीl माता-पिता ,अभिभावकों के इर्द-गिर्द रहने से उस समय बच्चों की भाषा हमेशा शिष्ट और सभ्य रहती थीl थकान भरपूर होती तो भूख भी खूब लगती और खाने के लिए असीमित साधन तो थे पर फिर भी स्वस्थ व पौष्टिक भोजन को प्राथमिकता थीl क्योंकि उस समय तक विज्ञापन बाल मन पर हावी नहीं थे l उस समय बच्चों को स्वास्थ्य की समस्याएं ना के बराबर होती थीl खाली समय के लिए बच्चों के पास पुस्तके थी, दादी, नानी की कहानियां थी l आज मोबाइल ने दादी नानी की कहानियों को परे रख दिया, बच्चों को किताबें के स्पर्श से वंचित कर दिया ,शब्द कोष की बढ़ोतरी की संभावनाओं को प्रतिबंधित कर दिया और तो और उम्र और ज्ञान के अनुपात के संतुलन को डगमगा दिया है l वर्तमान समय में समाज में अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव के कारण ‘दीए तले अंधेरा’ जैसा माहौल हैl घर परिवार में क्या हो रहा है अपने शहर की गतिविधियों से अनजान बच्चे मोबाइल में विदेश में क्या चल रहा है वह जानने के लिए उत्सुक हैंl यह सब माता पिता के आग्रह से हो रहा हैl आधुनिक दिखने की दोड़ में अपना धर्म, रीति रिवाज से वंचित रह कर विदेशी त्योहार को महत्व दे रहे हैंl रिश्तो की परिभाषाएं बदलती जा रही हैंl एकल परिवार व्यवस्था के कारण सामाजिक परिवेश बहुत जल्दी से बदल रहा हैl और हम बेबस देख रहे हैं l
कहीं ना कहीं कुछ गलत तो है ही इसलिए छोटे छोटे बच्चों को भी एकांत की तलाश हैl माता-पिता पढ़ाई के लिए जो स्मार्टफोन दिलवाते हैं वह पढ़ाई के लिए कम और अन्यथा अवांछनीय जानकारी के लिए उपयोग हो रहा हैl कहीं कहीं माता-पिता इससे अनजान नहीं है पर वह लाचार हैं। इस मोबाइल की आदत को आरंभ में माता-पिता स्वयं ही लगा देते हैं l वे अपनी सुविधा के लिए बच्चों को मोबाइल में व्यस्त करके स्वयं अपने में व्यस्त हो जाते हैंl आजकल घर मे हर बच्चे के पास अपना मोबाइल हैl ये बच्चे स्वयं तो खरीदते नहीं हैं, छोटे बच्चों को मोबाइल, टैब दिखाकर भोजन कराना आजकल फैशन बनता जा रहा हैl परिणाम मोबाइल की आदत हो जाना, जिसे हम लत लगना कह सकते हैं l बच्चे को भूख कितनी है कितना खाना है इस सब से अनजान बच्चे इस उम्र में अत्यधिक वजन के शिकार हैंl परिणाम शारीरिक शिथिलता, आलसी होना और अनेक तरह
के रोगों का प्रकोप, लगातार मोबाइल के उपयोग से आंखों पर मोटा चश्मा और साथ ही चश्मे के कारण बढ़ता सिर दर्द,नींद की कमी, सीखने की क्षमता में गिरावट, और परिणाम स्वरूप शारीरिक विकास का बाधित होना, ये सब दीर्घ कालीन दुष्प्रभाव हैं जो आगे चलकर नजर आते हैं। फिर गिरता आत्मविश्वास स्वभाव में चिड़चिड़ापन एकांत में रहने की आदत अभिव्यक्ति की क्षमता का अभाव और इन सब के कारण यदि परिवार में परिजनों का उचित सहयोग ना मिले तो समस्या बढ़ती ही जाती है जो मनोवैज्ञानिक समस्याओं को जन्म देती है जिन्हें हम आज के शब्दों में डिप्रेशन अर्थात तनाव, एंजाइटी उद्वेग ऑटिज्म, मेंटल डिसऑर्डर जैसे नाम देते हैंl
नई पुस्तकों की खुशबू से अनजान पन्ने पलटने की उत्सुकता से वंचित बच्चे मोबाइल के टचपैड को छूकर अपने स्पर्श ग्रंथियों को बोध ग्रंथियों को कमजोर करते जा रहे हैं l एक ही स्थान पर एकांत में बैठे रहने से असामाजिक होते बच्चों का व्यवहार सबको नजर आ रहा हैl बच्चे स्वार्थी क्रोधी , चिड चिंडे ,आक्रमक होते जा रहे हैं जो माता-पिता के लिए एक समस्या बनते जा रहे हैं। इनसे हम इंकार नहीं कर सकते कि वर्तमान समय में( स्मार्टफोन ने दुनिया को छोटा करके हमारे सामने रख दिया हैl समय बचाने वाला हमारा सहायक उपकरण बालकों के लिए कम उम्र में अत्यधिक उपयोगी होने के कारण हानिकारक की श्रेणी में भी खड़ा हुआ हैl शिक्षकों के श्रम को बचाने वाला, माता-पिता की सुविधा और सहयोग को बढ़ाने वाला यह उपकरण हर क्षेत्र में हमारे लिए उपयोगी हैl बशर्ते हम इसका प्रयोग सही तरह से करेंl वैसे ही बच्चे भी यदि इसका उपयोग अपने अपने कक्षा कार्य व जानकारी तक सीमित रखें तो इस उपकरण का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण योगदान है l वैसे देखा जाए तो ऐसा नहीं है कि इसका कोई विकल्प ही नहीं है ,लैपटॉप, कंप्यूटर आदि सभी इसी के विकल्प हैंl बस यह अधिक छोटे और आकर्षक आकार के कारण बच्चों में इतना लोकप्रिय हैl माता-पिता की देखरेख में बच्चे अगर इसका उपयोग करते हैं तो वह जानकारी बढ़ाने के लिए अत्यधिक उपयोगी है l प्रश्न यह है भी है कि बहुत छोटे बच्चों को ऐसी कौन सी जानकारी है जो मोबाइल के अलावा उपलब्ध नहीं हो सकती? मोबाइल के इस अत्यधिक उपयोग ने समाज में एक बड़ी समस्या का रूप ले लिया है जिसके परिणाम दीर्घ कालिक हैं l इसके दुष्परिणामों पर नजर डालें तो आजकल के बच्चों में स्वास्थ्य को लेकर अनेक तरह की समस्याओं ने अपने पांव जमा लिए हैं बच्चों की चंचलता मुखरता समाप्त नजर आने लगी हैl बच्चों में भोलापन लुप्त प्राय हैl जो इस मोबाइल के चेहरे के पीछे कहीं जा छुपा है l
चोरी छुपे अंधेरे में मोबाइल के अत्यधिक प्रयोग से अनेक बच्चों की आंखों की ज्योति खोने के समाचार भी हमें मिले हैं l बच्चों के द्वारा माता-पिता के फोन का गलत उपयोग करने पर माता-पिता को बड़ा आर्थिक हानि के समाचार भी हम समय-समय पर सुनते रहे हैंl मोबाइल पर बच्चों के खेल इतने आकर्षक होते हैं कि इस खेल को बच्चे पागलपन की हद तक खेलते हैं और उससे उनकी पढ़ाई का अत्यधिक नुकसान होता देखा गया हैl स्कूली शिक्षा में आजकल यह एक आवश्यक उपकरण हो गया है। इसे स्वीकार करते हुए शिक्षकों को भी और माता-पिता को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे इसका उपयोग आवश्यकता अनुसार ही करेंl दिन भर इसमें ही रचे बसे रहना आपके बच्चे का भविष्य बर्बाद कर सकता है l इसके दुष्परिणामों से अनभिज्ञ बच्चे कौतूहल बस बस ऐसा कुछ कर देते हैं जिससे माता-पिता और छात्रों को स्वयं को शर्म का अपमान का सामना करना पड़ता हैl अति आवश्यक हो जाता है कि बच्चों के हाथ में मोबाइल देने से पहले उन्हें इसका उपयोग किस तरह से करना है,कितना करना है यह समझाया जाए उन पर नजर रखी जाए और प्रयास किया जाए कि बच्चा आपकी देखरेख में ही मोबाइल का प्रयोग करेंl आजकल के बच्चों को हाथ से लिखने में बहुत आलस्य महसूस होता है क्योंकि उन्हें मोबाइल पर टाइप करना ज्यादा सरल लगता हैl कहीं अटक जाने पर गणित के सवाल भाषा के शब्द को वह मोबाइल में तुरंत सर्च करके लिख देते हैंl जिससे उनकी तार्किक शक्ति पर भी प्रभाव पड़ रहा हैl
अतः माता-पिता को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए बच्चे के मानसिक विकास की प्रगति की देखरेख करते रहें और जानकारी रखें और शिक्षकों को भी मोबाइल के कम से कम उपयोग के निर्देश बच्चों को समय समय से देते रहना चाहिए अति गंभीर समाचार है पर सत्य है कि एक किशोर को मोबाइल न देने पर उसने पिता की हत्या तक का प्रयास कर डाला l.डब्ल्यू एच ओ ने भी बच्चों को स्कूल में मोबाइल ले जाने पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पास कर दिया है lआने वाले भविष्य में यदि हमने इस समस्या को आपस में मिलकर समझकर हल नहीं किया तो निकट भविष्य में हमारे आने वाली पीढ़ी को इसके भयंकर परिणाम भुगतने पड़ेंगेl इसलिए बच्चों के हाथ में मोबाइल के बदले अगर किताबें हो तो वह बच्चों के लिए ज्यादा हितकारी अधिक स्वास्थ्यकर और अधिक उपयोगी होगा।
प्रभा पारीक
5 पंचवटी सोसाइटी
दहेज बाय पास लिंक रोड
भरूच 392001
गुजरात