सोहना गाँव के राजेन्द्र बाबू का छोटा लड़का महेश पढने में बहुत होशियार था । स्नातक होने के बाद उसका चयन भारतीय वन सेवा में हो गया ।अब तो खैर इस बात को कई वर्ष गुजर गए हैं । राजेन्द्र बाबू तो बेचारे अब इस दुनियाँ मे रहे नहीं । महेश की पोस्टिंग पिछले तीन साल से अपने पैतृक गाँव सोहना से लगभग 100 कि.मी.दूर अमरोल में है । महेश के बडे भाई मनोहर और उनका परिवार माँ के साथ गाँव में रहता है। मनोहर को महेश से विशेष स्नेह है । महेश भी भय्या उनके परिवार व अपनी अम्मा का खयाल रखता है । दौरे वगैरह से समय निकाल कर अकसर सप्ताह दो सप्ताह में सोहना का चक्कर लगा लेता है और अगर ठहरना होता है तो सोहना ही ठहरता है ।मनोहर भय्या तो महेश के बचपन और उसके स्कूल के किस्से अपने बच्चों को सुनाकर उनको प्रेरित करते रहते हैं । मनोहर भी संबंधियों के सुख, दुख , शादी ब्याह के काम के लिए महेश पर ही निर्भर रहते हैं ।एक तो उसके पास आने जाने की सुविधा है दूसरे उन्हें लगता है कि महेश द्वारा ऐसे सामाजिक दायित्वों में भाग लेने से परिवार मे सबकी इज्जत बढ़ती है । महेश भी बडे भय्या को इंकार नहीं करता है और सहर्ष तैयार हो जाता है । उसे भी बिरादरी वालों ,पुराने दोस्तों, रिश्तेदारों मे घुलना मिलना बहुत अच्छा लगता है । दोस्तों के साथ गप शप होती है ,पुराने किस्से याद किए जाते हैं और साथ ही लोगों का स्नेह और सत्कार भी भरपूर मिलता है । सोहना में होने वाले किसी भी सामाजिक कार्य का तो विशेष उत्साह रहता ही है माँ और मनोहर भय्या और उनके परिवार के साथ बिताने को खूब वक्त मिल जाता है ।
आज शेरपुर गाँव मे महेश की बुआ के लड़के की शादी का रिसैप्शन है । अमरोल से सोहना और शेरपुर दोनों लगभग 100 कि. मी. की दूरी पर हैं । यूं समझ लीजिए तीनों स्थान एक त्रिभुज के कोणीय बिंदु हैं । सोहना और शेरपुर के मध्य की दूरी लगभग 15 कि. मी. होगी । महेश इस रिसैप्शन में जाने के लिए बहुत उत्साहित था । फिर मनोहर भय्या का आदेश भी था कि वह तो शायद ही वहाँ जा पाएं पर मुकेश वहाँ अवश्य चला जाए , बुआ का उन सब पर हमेशा से विशेष स्नेह रहा है । अमरोल से भैरवपुर तक का 75 कि.मी. का रास्ता तो सीधा है । भैरवपुर से सोहना और शेरपुर के रास्ते अलग अलग होते हैं । वहाँ से यह दोनों जगहें 25 से 30 कि. मी. की दूरी होंगी । महेश ने भय्या को बताया तो नहीं था पर मन में तय किया था कि रिसैप्शन के दिन सुबह भैरव पुर रेंज कार्यालय के लिए निकल जाएंगे ।वहाँ जंगलात का दौरा करके तथा आवश्यक मीटिंग के बाद दोपहर के भोजन के पश्चात सोहना के लिए निकल जाएंगे। फिर शाम को मनोहर भय्या, माताजी , भाभी और बच्चों को लेकर शेरपुर चले जाएंगे । अम्मा भी बहुत खुश होंगी और बुआ भी । किंतु वह मनोहर भय्या को सरप्राइज देना चाहते थे । जिसका एक बडा कारण यह भी था कि उन्हें अपने कार्यक्रमों की निश्चितता के बारे में सदैव ही संदेह रहता था । पता नहीं अंतिम क्षणों में क्या नया काम आ जाए और कार्यक्रम बदलना पडे । हाँ उन्होने इतना अवश्य मनोहर भय्या के कानों में डाल दिया था कि वह प्रयास करेंगे कि सोहना होकर शेरपुर जाया जाए।
आज रिसैप्शन में जाना है । कार्यक्रम तो सुबह नाश्ते के बाद निकलने का था जिससे भैरवपुर रेंज कार्यालय के सभी काम निपटा कर दोपहर तीन चार बजे तक सोहना के लिए प्रस्थान किया जा सके। लेकिन रात से ही अच्छी खासी बारिश हो रही है । सड़क बहुत अच्छी नहीं है । यहाँ जगह जगह पानी भरा है । सड़क पर भी कई स्थानों पर पानी भरने और सड़क टूटने का अंदेशा है । आकाश में घटाएं घिरी हुई हैं सुबह के इस वक्त भी घने बादलों के कारण अंधेरा छाया हुआ है । मौसम के इस रूप ने महेश के उत्साह को कुछ फीका कर दिया है पर उसे विश्वास है कि एक दो घंटे मे मौसम खुल जाएगा , जमा पानी भी कम हो जाएगा , वह निकलने के लिए कटिबद्ध था । नाश्ते वगैरह के बाद बस प्रतीक्षा हो रही थी बारिश तो थम चुकी थी पर कुछ समय देकर निकलना अच्छा है, पानी की निकासी हो जाएगी । । बादलों ने अब भी सूर्य भगवान पर लिहाफ डाला हुआ था। लगभग आधे घन्टे की प्रतीक्षा के बाद महेश, पत्नी सुषमा और 4 वर्ष का पुत्र मन्टो, डैपुटी रेंजर और एक गार्ड के साथ जीप मे भैरव पुर के लिए निकल गए ।जैसी की उम्मीद की जा रही थी रास्ते मे जगह जगह पानी भरा था,रास्ता टूटा हुआ भी था । मोहन ने ड्राइवर को बहुत सावधानी के साथ धीरे धीरे चलने के निर्देश दिए हुए थे । गाड़ी मे कुछ भी समस्या आने से इस सडक और ऐसे मौसम में जल्दी सहायता मिलना मुश्किल है ।
दिन के लगभग 1 बजे का समय था । भैरवपुर अब भी लगभग 10 कि. मी. दूर था अभी चार पाँच किलो मीटर और चले होंगे कि देखा आगे सडक पर एक विशालकाय वृक्ष के गिरने से सड़क बंद हो गई है । तसल्ली की बात यही थी कि रास्ता साफ करने के काम में लोग लगे हुए थे। पूछने पर पता चला कि अभी कम से कम 1 घन्टा तो और लगेगा ही । यह सुनकर तो मन्टो की भूख और जोर मारने लगी और वह खाने के लिए मचलने लगा । लंच पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के हिसाब से तो भैरव पुर में था पर अब तो वहाँ के लिए लंच की प्रतीक्षा नहीं की जा सकती थी । चूंकि लंच का कार्यक्रम भैरव पुर में था इसलिए साथ में भी कुछ नहीं रक्खा था। डिपुटी रेन्जर मयंक ने बताया कि यहाँ से दायीं ओर जो सड़क मुड़ रही है उस पर लगभग 3 कि. मी. जाने पर एक भोजनालय है जहाँ पास में ही एक कालेज तथा फैक्ट्री होने के कारण भोजन की अच्छी व्यवस्था रहती है, वहाँ चलकर देख लेते हैं अगर अच्छा लगा तो वहीं से भैरवपुर फोन पर सूचित कर देंगे कि देर हो जाने की वजह से लंच हम लोग करके आएंगे ।
इतने वक्त में सड़क खुलने के भी पूरे आसार है । बात सभी को जंची , मन्टो ने तो खैर इस बात का जोरदार अनुमोदन किया और फौरन बोल उठा “अंकल रैस्तराँ की ओर मोड़ लीजिए “। महेश ने भी चुप रह कर ड्राइवर को दायीं ओर मुड़ने का इशारा किया ।ढाबे की ओर जाने वाली सड़क और भी खराब थी । खैर कुछ समय पश्चात उनकी जीप ढाबे के सामने रुक गई । ढाबे
वाले ने सरकारी गाडी देखकर गर्म जोशी से उनका स्वागत किया और ससम्मान उन्हें बैठाया ।ढाबे वाले ने उनके बारे में शायद अनुमान भी लगा लिया था ।
किसी भी गाँव के प्रतिभावान लड़कों की महक और शोहरत आसपास के गाँवों में तुरंत फैल जाती है । वन विभाग की जीप
देखकर उसका अनुमान पक्का हो गया था कि सोहना वाले महेश बाबू ही हैं । बड़े अदब और प्रेम से भोजन करवाने के उपरांत उसने पूछ लिया “साहब, सोहना जाइएगा?” “फिलहाल तो भैरव पुर जा रहे हैं ।” ” माफ कीजिएगा , पूछने की गुस्ताखी इसलिए की कि रात की बारिश में भैरव पुर से सोहना जाने वाली सड़क दो तीन जगह से भारी क्षतिग्रस्त हो गई थी । मेरी दुकान पर भी सोहना के दो लड़के काम करते हैं पर आज नहीं आए । पता करवा लीजिएगा नहीं तॊ आप लोग व्यर्थ में परेशान होंगे ।” महेश और परिवार ने उससे विदा ली । ढाबे में लगभग एक घन्टा व्यतीत हो गया था ।अब तक शायद रास्ता खुल चुका होगा । काफ़िला फिर भैरवपुर की ओर रवाना हुआ। आशानुसार रास्ता अब साफ हो गया था। धीमी गति से चलते हुए वह लोग चार बजे के करीब भैरव पुर रेंज औफिस पहुंच गए । औपचारिक सत्कार के बाद उनका दल भैरवपुर के रेंज औफिसर व दो अन्य
कर्मियों के साथ जीप से जंगल के दौरे पर निकल गए। महेश की पत्नी ,बेटा और एक गार्ड वहीं रहे। भैरवपुर में उनको वन विभाग के कर्मचारियों ने भी शाम के वक्त सोहना न जाने की सलाह दी और बताया की सीधे शेरपुर जाना उचित है क्यों कि सोहना से शेरपुर का रास्ता अत्यंत दयनीय स्थिति में है भैरवपुर से शेरपुर का रास्ता भी बहुत अच्छा तो नहीं है पर धीरे धीरे
ड्राइव करते हुए आराम से घन्टे भर में शेरपुर पहुंचा जा सकता है ।
महेश ने भी सोचा ऐसी स्थिति में सोहना जाने के बजाए भैरवपुर में कुछ और समय देकर सीधे शेरपुर निकलना ही ज्यादा उचित है । जंगल के दौरे के बाद औफिस में जंगल और विभाग की समस्याओं पर एक छोटी मीटिंग कर लेते हैं । छः बजे के आसपास सीधे शेरपुर के लिए निकल जाते हैं ।पाँच बजे जंगल का दौरा समाप्त कर उन सबने औफिस में विभाग की विभिन्न समस्याओं पर मीटिंग की । इस दौरान चाय भी हुई। साढे छः बजे वह लोग शेरपुर के लिए रवाना हो गए । रिसैप्शन के बाद उनका इरादा यहीं भैरवपुर गैस्ट हाउस में रात गुजार कर अगले दिन सुबह अमरोल रवाना होने का है । शेरपुर रवाना होने से पूव महेश ने सोहना में मनोहर भय्या को फोन मिलाया । मोबाइल नैटवर्क तो वहाँ अभी नहीं है । ऐसे मौसम मे लैंड़ लाइन भी अकसर खराब हो जाता है ।पर उनका चेहरा अचानक खिल उठा जब दूसरे छोर से मनोहर भय्या की हेलो सुनाई दी । “भय्या नमस्ते। महेश बोल रहा हूं ।” “नमस्ते, नमस्ते ।कैसे हो? कहाँ हो? “
“सब ठीक है शादी के रिसैप्शन में जाने के लिए सोहना आ रहे थे ,अभी भैरव पुर हैं । रात की
बारिश से सड़क जगह जगह क्षति ग्रस्त हो गई है । कही कहीं सडक पर पेड़ भी गिर गए हैं
।यहाँ पहुंचने में ही बहुत वक्त लग गया ।”
” इधर भी बुरा हाल है । अब क्या कार्यक्रम है ?”
“अभी भैरव पुर से निकलने वाले हैं । हम पहले सोच रहे थे कि आप सबको लेकर शेर पुर
जाएंगें । पर पता चला है कि यहाँ से सोहना और फिर सोहना से शेरपुर की सड़क बहुत खराब
हो गई है और उधर से जाना जोखिम भरा है ।ऐसे हालात में तो यहाँ से सीधे शेरपुर निकल
जाना ही श्रेस्यकर है । वहाँ की हाजिरी जरूरी है । आप क्या कहते हैं ?”
” ठीक कह रहे हो । देर मत करो निकल जाओ । आराम से जाना । बुआ को हमारा प्रणाम
कहना और जब भी संभव हो फोन द्वारा अपना कार्यक्रम बताते रहना ।
” अच्छा भय्या हम लोग निकलते हैं । अगले सप्ताह मौसम ठीक रहा तो आप लोगों से मिलने
का कार्य क्रम बनाएंगे । आप सब अपना खयाल रखना ।
महेश को भय्या से बात करके बड़ी तसल्ली मिली । तुरंत ही वह लोग शेरपुर के लिए निकल
पड़े । ड्राइवर को बहुत धीरे धीरे चलने की सख्त हिदायत के साथ यात्रा हो रही थी । पता नहीं
कहाँ कोई पानी भरा बड़ा गड्ढा हो । भैरवपुर और शेरपुर के लगभग बीच में पड़ने वाले चकली
गाँव में एक बरसाती नाला पड़ता है उसमें से पूरी सावधानी के साथ धीरे धीरे जीप निकाली
गई ।साढ़े सात बजे के लगभग वह लोग रिसैप्शन स्थल पर पहुंच गए । दुल्हा दुल्हन ने अभी
आसन ग्रहण नहीं किए थे । महेश बुआ से मिलने सीधे घर के अंदर चला गया । बुआ उसे
देखकर बहुत खुश हुई आवाज देकर पहले महेश के फूफा को बुलाया फिर उत्सव को जिसकी
शादी का रिसेप्शन था । बुआ को शगुन देकर महेश बोला , ” बुआ मैं जरा और लोगों से मिल
लूं , तुम इतने अपनी बहू से मिलो वह आ रही है “
“हाँ वह तो मैं मिलूंगी ही पर तुम्हे आज यहीं रुकना है ।”
“बुआ कल सुबह ही भैरव पुर आफिस पहुंचना है इ्सलिए हम भोजन के बाद भैरवपुर के लिए
निकलने को बाध्य हैं ।फिर कभी अच्छे मौसम मे सबको लेकर अवश्य रहने आऊंगा, यह मेरा
वादा है ।”
“तू हमेशा दौड़ता भागता ही आता है । देखते हैं फिर कब आता है। मैं बहू बेटे को उत्सव की
दुल्हन से मिलाती हूं ।
” मिलूंगा तो मैं भी बुआ पर चलो वहीं पण्ड़ाल मे मिल लूंगा दोनों को आशीष भी देना है और
साथ फोटो भी खिंचवानी है न । बुआ, हम लोग खाने के बाद जल्दी ही निकल जाएंगे ।”
कहकर महेश पण्ड़ाल की तरफ निकल गया । बहुत प्रसन्न और उत्साहित था । कितने ही लोग
मिले । लोग अपना अपना परिचय देकर उससे मिलने में गौरावन्तित महसूस कर रहे थे।
रात 11 बजे के लगभग ही वहाँ से निकलना संभव हो पाया। हल्की हल्की वर्षा फिर शुरु हो गई
थी । महेश की पत्नी बोली ,” अब तक तो बडी कृपा की वर्षा ने , शादी निपटा दी। अब तो यह
आशीर्वाद की झड़ी है ।”
चकली गाँव के नाले के पास ड़्राइवर ने जीप रोक दी और बोला,” सर यहाँ नाले में पानी अब
ज्यादा है । पार करना जोखिम भरा है । कुछ देर यहीं इंतजार करना होगा ।लगता है उपर कहीं
अच्छी बारिश हुई है ।पानी उतरने में न जाने कितना वक्त लगे , अभी तो वर्षा यहाँ भी कुछ
तेज हो गई है ।”
तभी नाले के पार से एक आवाज आई ,” महेश बाबू , आप सब इधर आकर आराम से बैठिएगा
। पानी उतरने में अभी देर लगेगी । उपर तेज वर्षा हुई है । आपके दाईं ओर दस कदम पर
कच्चा पैदल पुल है । आप लोग उससे आ जाइए ।”
आवाज सुनकर महेश व अन्य सभी चौंक गए । रात के 12 बजे कौन परिचित मिल गया है ।
महेश ने उस ओर देखा तो सर पर साफा बाँधे, धोती कुर्ता पहने हुए वह कच्चे पुल की दिशा मे
इशारा करते हुए उन्हे अपने पास आने का संकेत दे रहा था । अरे, यह तो फत्तू ताँगेवाला लगता
है । यहाँ क्या कर रहा है ? उन्होंने दाईं ओर देखा तो एक कच्चा संकरा पुल नाले के उपर
दिखाई दिया । जिससे पैदल चलकर गाँव वाले बरसाती नाला पार कर सकते थे।सब लोग पुल
की ओर बढे और पुल पार कर फत्तू के पास पहुंच गए ।सड़क किनारे कच्चे मकान के दालान में
एक चारपाई पड़ी थी फत्तू ने उन्हें वहीं बैठा लिया और पूछने लगा , “कुछ चाय वगैरह का
इंतजाम करूं बाबू जी ।”
” अरे नहीं , अभी कुछ भी लेने कि गुंजाइश नहीं है , पर तुम यह बताओ कि तुम सोहना से
इस वक्त यहाँ कैसे पहुंच गए?”
“बाबू जी, मैं तो पिछले तीन साल से यहीं रह रहा हूं ।”
तभी कबूल ड्राइवर ने उससे पूछा , ” तागाँ वगैरह है न ? चलाते हो अब भी ?”
” हाँ भाई , यही एक काम तो मुझे आता है ।”
“तो तुम साहब को भैरव पुर छोड़ दो , मैं पानी उतरने पर गाड़ी लेकर बाद में आ जाउंगा ।”
फिर कबूल साहब की ओर मुखातिब होकर बोला, “साहब आप लोग भैरवपुर जाकर आराम
कीजिए । यहाँ से चार कि. मी. ही होगा । मैं और बालू पानी रुकने पर जीप लेकर आ जाएंगे ।”
” महेश को भला इस सुझाव पर क्या एतराज हो सकता था ? बेटे को भी नींद आ रही थी ।
वह भी थके हुए थे फिर सुबह जल्दी उठना भी था ।
” क्यों फत्तू चलोगे न अभी भैरवपुर ?”
” हाँ बाबू जी क्यों नहीं ? मैं अभी घोड़ी लगाता हूं ।”
थोड़ी देर में ताँगा तैय्यार हो गया । कबूल और बालू वहाँ रुक गए तथा महेश और परिवार फत्तू
के ताँगे में भैरवपुर के लिए रवाना हो गए । आज सबने बहुत दिनों बाद ताँगे की सवारी की ।
इस सवारी का भी एक अलग मजा है ।अब फिर वर्षा रुक गई थी और फटते बादलों से चाँदनी
छिटकने लगी थी । तभी ताँगा काँसो वाले जोहड़ के पास पहुंचा । फत्तो महेश बाबू से मिलकर
और उनकी विशेष सेवा का अवसर पाकर कुछ अधिक ही उत्साहित था । सुनाने लगा, ” बाबू जी
पिछले साल इन्हीं दिनों की बात होगी । मैं भैरवपुर रेलवेस्टेशन पर सवारियाँ छोड़कर वापस
आ रहा था ।रात का एक बज गया था । यहाँ जोहड़ के पास उस मैदान में नम्बरदार की लड़की
की शादी थी । उस वक्त तक खाना चल रहा था , खासी भीड़भाड़ थी ।मुझे भी भूख लगी थी ,
शादी के खाने की खुशबू ने भूख और बढा दी ।ताँगा उस पेड़ के नीचे खड़ा कर मैं भी भोजन
करनेवालों की कतार में लग गया ।छक कर भोजन किया और फिर ताँगा लेकर चकली रवाना
हो गया ।
इत्तफ़ाक से अगले दिन मुझे ताँगा लेकर यहीं काँसो आना पड़ा । जोहड़ से कुछ दूर वह जो
बगीचा दिख रहा है उसके पास वाले घर में सवारी छोड़नी थी । मुझे कुछ ताज्जुब सा भी हो
रहा था क्योंकि रात वाली शादी के कोई चिन्ह वहाँ दिखाई नहीं दे रहे थे । सवारी छोड़ने के बाद
एक जगह रुक कर मैंने एक गाँव वाले से पूछ ही लिया ,” कल रात जो यहाँ शादी हो रही थी ,
मुझे बताया गया था कि वह नम्बरदार की लड़की की थी , आप लोगों ने बड़ी जल्दी साफ
सफाई कर दी सारी। कब विदा हो गई थी बारात?”
“अरे क्या बोल रहे हो? नशा किया है क्या? यहाँ कल कोई शादी वादी नहीं हुई । नम्बरदार की
तीनों लड़कियों की तो पहले ही शादी हो चुकी है । एक बेचारी तो पिछले साल एक दुर्घटना मे
ईश्वर को प्यारी भी हो गई ।”
“बाबू जी मै तो धक से रह गया । जी मचलने लगा । तीन दिनों तक तेज बुखार में पड़ा रहा ।
उसकी कहानी सुनकर हम सब कुछ सिहर से गए पर रास्ते का पता ही नहीं चला और हम रात
के लगभग एक बजे भैरवपुर गैस्ट हाउस पहुंच गए । फत्तु ने लाख आग्रह के बाद भी पैसे नहीं
लिए , कहने लगा ,”बाबू जी आप तो मेरे सोहना के हैं , मेरे बड़े भाग्य हैं कि आपकी सेवा का
मौका मिला मुझे । आप मुझे शर्मिंदा न करें मैं चलता हूं ।खुश रहिए। ” कहकर फत्तु तुरत
रवाना हो गया ।
थकान के कारण सुबह सभी कुछ देर से सो कर उठे । सभी कुछ गंभीर से थे शायद फत्तु की
कहानी का असर अब भी सब के दिमाग पर छाया हुआ था । महेश ने उठकर सब से पहले
भय्या को फोन किया और शादी के , बुआ की आवभगत और अपनी दोनो ओर की यात्रा के
विस्तृत समाचार भय्या को दिए ।चकली से भैरव पुर ताँगे से लौटने की यात्रा का पूरा विवरण
भी फत्तु के गुण्गान के साथ सुनाया ।”
“क्या कहा तुमने, किसके ताँगे में आए ?”
” अरे भय्या , वही सोहना का ताँगे वाला फत्तु जो आटे की चक्की के पास रहता था , कह रहा
था अब पिछले तीन साल से चकली में रह रहा है ।”
“तुम कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो । कोई और होगा । फत्तु का तो तीन साल पहले
बरसात की मौसम में चकली गाँव में किसी आपसी रंजिश के कारण खून हो गया था । उसकी
लाश वहीं बरसाती नाले में मिली थी ।”
महेश के हाथ से फोन छूट गया और वह वहीं सोफे में धंसता चला गया ।
-ओम प्रकाश नौटियाल
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