कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -4
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चले आओ पनाहों में,निगाहें राह तकती है।
बताए क्या तुम्हें दिलवर,तुम्हीं में जान बसती है।।
सुनो सजना तुम्हें मैंने, तहे दिल से पुकारा है।
चले आओ सजन मेरे, बड़ा दिलकश नजारा है।।
बहारों ने फिजाओं में,गुलों को यूँ खिलाया है।
लगे जैसे कि अम्बर ने,नवल मोती सजाया है।।
चले आओ सनम मेरे,बड़ा मधुरिम सवेरा है।
हमारी रूह के भीतर,पिया तेरा बसेरा है।।
बताओ बात क्या है जो, नजर को यूँ चुराए हो।
बता दो ना सनम मेरे,कसक को क्यों छुपाए हो।।
बिना देखे तुम्हें जानम, नयन हरपल बरसता है।
करूँ क्या मैं बता दो तुम,हिया मेरा तड़पता है।।
कुमकुम कुमारी “काव्याकृति” मुंगेर, बिहार