कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -4
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तू मेरी जिंदगी
अँधेरी राहें हुई उजली
जब प्रेम संग – संग चला।
जब मिले थे मैं और तुम
सागर पर पहली बार
लाए थे प्रेम का नजराना
बेला का गजरा – हार
महका था तब प्यार
कम्पित हाथों से गजरा
जब तुमने मेरे
केश – कुंज पे सजाया
तब उड़ी दिल की फुलकारी
सुरभित हुई प्यार की फुलवारी
और पास आने लगी
धडकन की धड़कनें
तुम मेरे अपने लगने लगे
तारावलियाँ बतियाती थीं
चंदा – मंगल की सैर कराती थीं
तेरी साँसों की आभा
धरती से नभ को चमकाती थी
कामदेव ‘ औ ‘ रति बन
साँसों के बिम्बों की बेला ने
वसंत प्रेम का महका दिया
सागर की लहरें जब आयी
पग छूकर चुम्बन दें जाती थी
जादू मदहोशी का सरमाया था
लिए हाथ में हाथ थे
तब प्रेम की कोपलें फूटी थीं
जब चली थी नजर की पुरवाई
होठों पर सिहरन ले आयी
तब प्रेम कमल था महक गया
भंवरे का मन था डोला
अनुरागित गालों पर
लाज की लाली छायी
सृष्टि अलौकिक प्रेम ने
मिलन बेला में रचायी
प्रेम गीत प्रिय तुम्हें सुना रही
तू मेरी जिंदगी का ताज
अँधेरी राहें हुई उजली
जब प्रेम संग – संग चला ।
डॉमंजु गुप्ता वाशी , नवीमुम्बई