कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -4
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मेरे पिताजी पंडित श्रीधर शास्त्री जी ज्योतिष विध्या के उद्भट विद्वान थे ।उन्होंने बाकायदा शिक्षा ली थी ।वे लोगों की कुंडलियाँ देखते थे और सटीक बात बताते थे । कुंडली देखकर जो भविष्यवाणी करते सच जाती ।उनके पास विद्वानों और आम लोगों की लाइन लगी रहती थी । सब चाहते थे कि एक बार शास्त्री जी उनकी कुंडली देख लें । वे मूडी थे । देखते देखते ,नहीं मन होता नहीं देखते । फिर भी लोग उनका इंतजार करते ।हम भाई बहनों की अव्वल तो कुंडली बनी ही नहीं थी और बनी तो भी उनके विवाह के अवसर पर । और पिताजी हमारी कुंडलियाँ कम ही देखते थे । मेरी शादी के बाद की बात है । मैं पीहर गई हुई थी । मैंने एक दिन उन्हें फुर्सत में देखकर अपनी जन्म कुंडली उनके सामने रख दी और कहा –”पिताजी ,आप सबका भविष्य बाँचते हैं ।कभी अपने बच्चों का भविष्य भी देखा करिए । हमें तो आप टाल देते हैं।आज आपको मेरी जन्म पत्री देखकर मेरा भविष्य बताना होगा । ” पिताजी मेरी खुली जन्म कुंडली बंद करते हुए बोले –”मैं जन्म कुंडली तभी देखता हूँ जब कोई बहुत बड़ा निर्णय लेना हो । तुम्हारी शादी हो गई ।बच्चे हो गए ।सब ठीक चल रहा है ।अब बड़ा निर्णय क्या लेना है जो जन्म कुंडली देखूँ ?बच्चा बी. ए. करेगा या बी. कॉम. यह कुंडली नहीं बच्चा तय करता है । और बिटिया बात -बात में जन्म कुंडली खोलकर बैठना उचित नहीं । आपका भविष्य आपकी जन्म कुंडली में नहीं आपके हाथ में होता है । मेहनत करोगे तो चाहे कोई भी काम हो सफलता जरूर मिलेगी, भले देर से ही मिले । अपनी मेहनत पर ,श्रम पर भरोसा करो।”तब मेरी माँ ने कहा –”बता दो छोरी को ,बड़ी आस लेकर पूछ रही है ।” पिताजी बोले –”मैं इसे मेहनत की महिमा बताना चाह रहा हूँ और तू इसे भाग्यवादी और निष्क्रिय बनाना चाहती है ।बिना कर्म किए कुंडली के भरोसे हाथ पर हाथ रखकर कभी मत बैठना बच्चे’। कहकर वे स्नानघर की तरफ चल पड़े।
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