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‘रेखा आंटी-डॉ इन्दु गुप्ता

कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -4 कहानी

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लगभग साल भर पहले रमेशचन्द्र-अंकल और रेखा-आंटी जिसे वहां सब पहले-पहल अकड़ू-आंटी कहते थे,ने इस दूधिया संगमरमरी मकान को खरीदा था। इसके असली मालिक सुभाषचन्द्रजी बड़े बिजनेसमैन थे, सो,अपने पुश्तैनी मकान को गिरवाकर ऐसी बढ़िया दोमंजिली कोठी बनवा ली कि जिस पर दूर से नज़र ठहर जाती। जब उनकी पत्नी का देहांत हुआ, तो बेटा रोहित बहू पोता पोती यहां आकर सुभाषजी के साथ रहने लगे। अचानक एक दिन सुभाषजी वहाँ दिखाई देना बंद हो गये और महीना बीतते-न-बीतते उनका मकान बिक गया। छ: महीने के अंदर ही नमालूम क्यों दोबारा फिर बिक गया। तब से रेखा आंटी …उम्रदार लेकिन देखने में सुंदर संभ्रांत  हंसमुख और … हां, सारी कौलोनी के बच्चे उनके बगीचे में घुसे रहते… मौसमानुसार अमरूद, जामुन या आम तोड़ने और उधम करने को। 
रेखा-आंटी उन्हें खदेड़ना-मारना तो दूर… उल्टा कभी पकौड़े,कभी पूड़े-गुलगुले पकाकर खिलातीं। किसी आशंकित-चिंतित मां ने कहा, “लगता है, इसके बाल-बच्चे नहीं हैं, यह मंगल-शनिचरवार को सरसों के तेल में पकवान पकाकर खिलाती है… जरूर बच्चों पर कोई टोना-टोटका करती होगी। परंतु बच्चों ने उसकी शंका-निर्मूलन करते हुए बताया,”उनका बेटा विदेश में पढ़ाई कर रहा है।” तब से वे सबकी चहेती रेखा-आंटी हो गई। पिछले दिनों उदास बच्चों ने बताया कि वे लोग शिरडी गये हुए हैं। बारह दिन बाद लौटे तो उनके साथ एक छ: सात बरस की बच्ची भी थी, पता चला कि कोई परिवार उसे लावारिस छोड़ गया। उसके दुख से द्रवित रेखा-आंटी ने उसके परिवार को खोजने की खूब कोशिश की। फिर पुलिस-कार्यवाही व औपचारिकताएं पूरी करके उसे अपने बेटे की बहन रिशिता बनाकर संग ले आईं। वह उसकी शानदार परवरिश करती हैं, अच्छे स्कूल में पढ़ने भेजती हैं।
कुछ महीने से उनके यहाँ वृद्धाश्रम से चिट्ठियां आ रही हैं… हर पत्र मानो दर्द का सैलाब… ‘अपने घर’ लौटा-लाने की करुण पुकार…वे बार-बार डाकिये से कहते कि यह चिट्ठी हमारी नहीं है। हमारे पिताजी वृद्धाश्रम में नहीं हैं, पर डाकिया कहता कि पता यहीं का  हैऔर मना करने के बावजूद वह वृद्धाश्रम-वासी  वृद्ध सुभाषचंद्र की चिट्ठियां उनके यहां डाल जाता। आज दीपावली पर रेखा-आंटी, अंकल और रिशिता उन वृद्ध से मिलकर हकीकत बताने पहुंचे तो खबर मिलते ही वृद्ध दौड़ते हुए आकर रमेश-अंकल से लिपटकर रोने लगे, “रोहित,  डेढ़ महीने का बोला था तूने, आने में सालों लगा दिए। चल, अब जल्दी अपने घर चल। आम अमरूद जामुन आमले के पेड़ कैसे हैं और तेरी अम्मा की तुलसांजी…”वृद्ध थे कि रमेश-अंकल की बात सुन-मान ही नहीं रहे थे। उन्होंने असहाय होकर देखा तो रेखा-आंटी मुस्कुराकर बोलीं,”रिशिता को दीपावली पर उसके लिए दादाजी का अमूल्य उपहार दे दीजिए और बाबूजी को उनके घर का अनमोल तोहफा… हमें तो दो-दो ईश्वरीय-उपहार मिल गये साहब! और वे साथ लाए फल-मिठाइयां और उपहार अन्य वृद्धजन में बाँटकर अपने उपहारों के साथ’घर’ चल दिए।

डॉ इन्दु गुप्ता 348/14, फरीदाबाद-121007, हरियाणा मोबाइल   9871084402 ईमेल: guptaindoo@yahoo.com

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