कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -4 सस्मरण
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भारतवर्ष त्योहारों का देश रहा है और उसमें भी दीपावली समान वैभवशाली गौरवशाली आनंद दायक से साफ सफाई, खाने खिलाने, रोशनी से जगमगाते तन मन धन से खरिदारी करने का आनंद उत्साह लगन के साथ प्रेम सभ्यता संस्कृति को अपने आप में समेटे भारतवर्ष का पांच दीवसीय राष्ट्रीय त्योहार दुनिया में अपने आप में विशेष है हम कह सकते है। क्यों कि सभी धर्म जाति वर्ग समुदाय आमिर गरीब छोटा बड़ा दीपावली की आस लगाए रहते है ताकि उनका धंधा बिजनेस व्यापार नई उचाईयो को छुए नए रोजगार का सजृन पुरे देश के साथ विदेश में भी अपने बाजार के विकास विस्तार के लिए दीपावली त्योहार का बेसब्री से इन्तजार सभी को रहता है और त्यारियो मे जुट जाया करते है अपने बिजनेस व्यापार धन्धा को आगे बढ़ाने के लिए दिन दुगुनी रात चौगनी तरक्की करने के लिए इस पांच दीवस त्योहार मे रच बस से जाता है। सुई से कार तक कपड़े से मिठाई तक झाड़ु से बरत तक सिरिंज से टीवी फ्रिज तक सायकल मोटरसाइकल क्या क्या क्या बताऊ मिट्टी के बरत से सोने के आभूषण तक सब कुछ बरीदा बेचा जाता है इतना व्यापक विशाल वैभवशाली त्योहार है दीपावली।पर यदि कोई उदास परेशान फिक्र मन रहता है तो वह है गरीब मजदूर वेतनभोगी ऐसा ही एक कटु सत्य को आप सब के सामने रखता मेरा यह सस्मरण है। बात मैरे बचपन की है जब मैं लगभग 7- 8 वर्ष का था भारतवर्ष का राष्ट्रीय त्योहार दीपावली की चारों ओर धुम थी बाजार गुलजार थे पिताश्री ने हमें धनतैरस के पूर्व ही पटाखे और कपड़े दिला चुके थे, घर पर सभी अवश्य सामग्री ला दी थी दीपावली कि रात्रि को पुजा करने के उपरांत माता जी ने हम दोनों भाइयों को कुछ पटाखे हममें बाँट दिए और अपने आँगन में ही पटाखे फोडने और खेलने को कहाँ कुछ देर में हम दोनों भाइयों ने पटाखे फोड़ डाले पटाखे समाप्त होते ही अपनी आदत से मजबूर या बाल मन की ललक कहें हम दोनों भाइयों को पड़ोसी के आँगन में खिच लाई कुछ ही देर में हम भुल गए की हमें अपना आँगन छोड़ना मना है हम तो खेल रहे हैं फुटते पटाखे पड़ोसी मित्र के आँगन में आनंद मस्ती में मगन फुटते पटाखे देख आनंदविभोर होते हम थे हमारा आनंद चरण पर था कि तभी रात्रि को पिताश्री का कम्पनी से अपने घर आना हुआ समय भोजन अवकाश का था घर आते ही पिताश्री हमें दूसरे के आँगन में देखना उन्हें अच्छा नहीं लगा और घर में आते ही हमारी माता जी पर गुस्सा होने लगे और प्रश्न किया- मैरे बच्चे दूसरे के आँगन में कैसे? मैंने जो पटाखे लाए वह कहाँ है! माता जी डरते हुए कहा ! कुछ पटाखे बच्चों ने फोड़ डाले है और कुछ पटाखे कल के लिए रखे हैं। पिताश्री गुस्सा होने लगे और कहाँ! मैरे बच्चे दूसरे के आँगन में नही जाना चाहिए! इनहे अभी सभी पटाखे दे दो कल और ले आएंगे। और दुखी मन से भोजन कर पिताश्री पुनः अपने बच्चों की दीपावली रोशन करने के लिए परिवार को आनंदमय खुश एवं संतोष यम रखने के लिए पुनः दीपावली की रात्रि को कम्पनी में मजदूरी करने चले गए। आज पिताश्री को स्वर्ग सुधारे 44 +वर्ष हो चुके है। मै भी एक प्राइवेट कंपनी में मजदूर हूँ और दो बच्चों का पिता भी मजदूर और पिता या पालक की वेदना को अब मै अच्छे से समझ रहा हूँ। ऐसे सभी पिता , पालकों को मेरा ह्रदय से कोटि कोटि नमन है। जो संवय की दीपावली काली कर अपने बच्चों एवं परिवार को खुश आनंद अनुभूति के लिए निरंतर प्रयास रत है।
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