कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता-4 संस्मरण
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त्रेतायुग में दुष्ट रावण संहार के बाद श्रीराम के अयोध्या आगमन पर अयोध्यावासियों ने उल्लासपूर्वक दीपोत्सव मनाया। युग परिवर्तन होते रहे लेकिन हमारी श्रद्धा और श्रीराम के प्रति प्रेम दीपावली मानते हुए प्रकट होता ही है। मैं भी नवरात्रि पूजन पूर्ण होने के उपरांत घर को सजाने सँवारने में व्यस्त हो गई कि श्रीराम घर पधारें तो मेरा घर सबसे खास बन जाए। यहाँ मुझे लिखते हुए इतनी खुशी हो रही है कि जग को तो एक ही श्रीरामजी मिले, पर मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे तो तीन राम मिले। प्रभु श्रीराम, मेरा बड़ा बेटा जिसे घर में हम राम बुलाते हैं और मेरा छोटा बेटा जिसका तो स्कूल में भी नाम राघव ही है। यूं तो दीपावली आनंद और उल्लास का पर्व है, मगर दीपावली का वह दिन याद आते ही आँखें जरूर नम हो रही हैं। दीपावली पर्व पर सबसे ज्यादा व्यस्त गृहिणी ही होती है। इधर घर की सफाई व साज सज्जा की थकान और उधर चौके में गैस पर रखी कढ़ाई उसकी सामान्य दिनचर्या को ध्वस्त कर देती है।
दस साल पहले आई उस दीवाली पर हिम्मत बटोर खुद को ले जाती हूँ तो देखती हूँ कि वह अमावस्या की दीपों से प्रकाशमान रात मेरे बेटे के लिए भी प्रकाश ही तो ले लाई थी। घर के बड़े तो दीपावली पूजन की तैयारियों में व्यस्त थे, किचन भी पहाड़ी बड़े पुओं व पूड़ी सब्जी की खुशबू से महक रहा था। मैं इस सब के बीच अगले दिन राम राम कर मंगलकामनायें प्रेषित करने आने वाले अतिथियों के स्वागत हेतु ट्रे में मिष्ठान रख सजा रही थी। यहाँ यह संस्मरण लिखते हुए यह भी याद आ रहा है कि अभी तो ब्याह के बाद राजस्थान आ गई हूँ और यहाँ हर दीपावली मनाते हुए गुजरात में मनाई दीवाली भी दिल में जिंदा ही रहती है। गुजरात तो व्यापार की पृष्ठभूमि लिए हुए है तो वहाँ धनतेरस भी दीवाली की तरह उत्साह से मनाते हैं, साथ ही दीपावली का अगला दिन नववर्ष बनकर आता है। राजस्थान में जब “राम राम” बोल दीवाली की अगली सुबह होती है वहीं वहाँ “साल मुबारक” से शहर गुंजायमान हो उठता है। हमारे त्यौहार नवचेतना लेकर आते हैं और उत्साह से परिपूर्ण कर अगले वर्ष आने का वादा कर जाते हैं। वह दीपावली की रात भी सभी के उत्साह भरे मन को रोशन कर रही थी कि मेरा राम मुझसे पूछने आया कि मम्मी मैँ पड़ोस में पटाखे देखने चला जाऊँ क्या।
मैंने उसे काम की व्यस्तता में आगाह कर भेजा कि घर में पूजा चल रही है जल्दी ही आ जाना। साथ ही अपने भाई को भी ले जा और उसका विशेष ध्यान रखना। नए कपड़े पहने हुए मेरे राजकुमार दीपावली के पटाखे छूटते हुए देखने पड़ोस में चले गए। बारह वर्षीय राम और नौ वर्षीय राघव पड़ोस के बच्चों के साथ उसके मित्र के दादाजी द्वारा चलाए जा रहे पटाखे देखने में उत्साह के साथ तल्लीन हो गए।थोड़ी ही देर में राम को लेकर कुछ पड़ोसी आ गए कि पटाखे छुड़ाते हुए एक चिंगारी उसकी आँख में चली गई है। हम सब स्तब्ध रह गए और समय हमारे लिए रुक सा गया। पता नहीं शोर सन्नाटे में परिवर्तित हो गया और मेरे पतिदेव उसे लेकर अस्पताल भागे। दीवाली के अवसर पर रात आठ बजे जब त्यौहार का उत्साह शीर्ष पर होता है तब डॉक्टर कहाँ मिलते हैं। पर यह दिन तो राम का है,इसलिए राम की रक्षा तो राम करेंगे ही। बस फिर हुआ अजूबा। आँखों के डॉक्टर ने अपने त्यौहार की खुशी और व्यस्तता को दरकिनार कर मेरे बेटे की आँखों को समय दिया। उनके लिए लिखते हुए एक माँ के दिल से आशीष निकलता है कि राम उनकी सेहत बनाए रखें, ताकि उनके दर पे आनेवाले अपने लिए सदैव प्रकाश ही लिए जाएं।
राम को लेकर जब घर आए तो उसकी आँख पर बंधी पट्टी देख मेरा दिल धक से रह गया कि अब ? पर जब त्यौहार ही खुशियों का है तो बस निराशा में आशा आई और मेरे बेटे की आँख चंद दिनों में सामान्य हो गई। हाँ, यह याद नहीं है कि दीपवली की उस रात हमने खाना खाया था कि नहीं, लेकिन आज अपने बेटे को पूर्णतः स्वस्थ देख प्रभु श्रीराम के आगे श्रद्धा से सिर झुक जाता है। उन्होंने बेटे की इतनी बड़ी पीड़ा को दूर कर उसके जीवन को प्रकाशमान कर दिया। अपने संस्मरण को ‘जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए’ लिखते हुए रोकती हूँ। आगे बहुत अच्छे संस्मरण कतार में खड़े हैं लेकिन शब्दों की सीमाएं लगाने की जिम्मेदारी भी तो है।
प्रतिभा जोशी, अजमेर