कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -4 कहानी
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“राम राम आंटी”, घर में चल रहे कंस्ट्रक्शन काम के लिए मजदूरी करने आई महिला रेखा को खड़ा देख बोली और काम में जुट गई। रेखा उसे देख बिना प्रतिक्रिया दिए हुँह बोलते हुए घर में चली गई।“माँ, यह आंटी का मतलब क्या होता है?”, आँगन में शोक के पेड़ पर बने हुए घोंसले में बैठा चूजा यह वाकिया देख चिड़िया से प्रश्न करने लगा। “बेटा, यह मानव की बोली में आत्मीय महिलाओं के लिए छोटे उन्हें बुलाते हैं।”, चिड़िया लंबी सांस लेते हुए बोली। “रेखा, कल किटी में क्यों नहीँ आई थी? पता है तुझे हमने कितने मज़े किये।”, रेखा के घर में आते ही उसकी की खास सहेली मानसी का फोन आया और वह अपनी नाराजगी दिखाते हुए बोली। ‘ओह, मेरा कितना नुकसान हो गया। अरे, घर पर थोड़ा प्लास्टर उखड़ गया था तो कंस्ट्रक्शन के लिए ठेकेदार से कह रखा था। वह निक्कमा भी इतने दिन तो आया नहीं और कल ही प्रकट हो गया। चल, आब कोई बात
नहीं आगे की किटी में एन्जॉय कर लूंगी।”, कल किटी में न जा पाने के दुःख से खुदी के मन को बहलाते हुए रेखा बोली।
“कितने दिन का काम औऱ है ?”, मानसी ने घर में बढ़े उसके काम के दर्द को जान पूछा।
“अभी दो दिन का काम और है लेकिन मानसी तुझे क्या बताऊँ उन तीन मजदूरों में एक महिला भी आई है। उनके साथ ..” रेखा काम कर रहें संग काम कर रही उस मजदूरनी को देख धीमी आवाज में बताने लगी। उसकी बात सुन मानसी तपाक से बोली “रुक, रुक मुझे तसल्ली से सब बता।”, औऱ अपनी जिज्ञासा व उत्सुकता लिए वह सोफ़े पर बैठ गई। “क्या बताऊँ तुझे वह कल दिनभर उन आदमियों संग काम करते हुए हँसती मुस्कुराती रही। चाय पीना औऱ खाना खाने जैसे अपने काम तो वह अकेले बैठ भी तो कर सकती है? आज भी सुबह से .. वाह त्रिया चरित्र! ”,औऱ रेखा मुस्कुरा दी। दोनों ने फ़ोन पर देर तक बात कर की और मोबाइल डिसकनेक्ट करते ही रेखा का मोबाइल बज उठा।
रेखा दीवार पर टँगी घड़ी में समय देख मोबइल पर बात करना टालते हुए रखते समय मोबाइल पर आने वाले नाम में बेटी का नाम देख उसने झट से फ़ोन उठा लिया।
“काजल, कितनी देर में आएगी बेटा ?” , रेखा ने अपना गुस्सा प्रकट किया।
“मम्मी, देर रात की शिफ़्ट के बाद आज तो स्टाफ के लोगों ने रोक लिया। बस अभी सभी संग बैठ कॉफ़ी पीने कर बाद निकलती हूँ कैंटीन से।” औऱ काजल ने अपना फ़ोन रख दिया।“यह प्राइवेट नौकरियां भी न मोटी मोटी तनख्वाह देकर अच्छा खासा खून भी चूस लेती है बेचारे बच्चों का। अच्छा है कैंटीन दिन रात खुली रहती है वरना तो बच्चे बेचारे..”, खुदी से बुदबुदाते रेखा खाना बनाने किचन में चली गई।
यहाँ यह सब देख चूजे के मुँह से निकल गया, “आत्मीय महिला और आंटी, हुँह…..”
प्रतिभा जोशी – अजमेर – 305002