आज साहित्य जगत में आये दिन सम्मान समारोहों का आयोजन होता ही रहता है। यह कोई नई बात नहीं पर यदि आप एक अथवा दो वर्ष के सम्मान समारोहों में सम्मानित होने वाले साहित्यकारों की एक सूची बनाएं फिर आयोजन कर्ताओं की एक सूची बनाएँ अब इन दोनों सूचियों का मिलान करें आप देखेंगे कि कुछ अपवाद छोड़कर शेष दोनों सूचियों में वही नाम हैं अर्थात तू मुझे सम्मानित कर मैं तुझे।यही नहीं एक और परम्परा आजकल प्रचलन में है सहयोग राशि लेकर सम्मान देने की जिसकी जितनी अधिक सहयोग राशि उसका उतना बड़ा सम्मान। साझा संकलन के नाम पर नवोदित रचनाकारों से धन की उगाही कर समूह संचालक(मठाधीश) स्वयं के सम्पादन में पुस्तकें छपवाते हैं और नवोदितों को पुस्तक की पूर्व निर्धारित प्रतियाँ व सम्मान पत्र थमा दिया जाता है ये कुछ उदाहरण हैं आजकल सम्मान समारोहों के पर इन सबसे अलग हैं गहमर वेलफेयर सोसायटी गहमर गाजीपुर एवं हिन्दी साहित्य को पूर्णतः समर्पित पत्रिका ‘साहित्य सरोज’ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित गोपालराम गहमरी साहित्य एवं कला महोत्सव में दिए जाने वाले हिन्दी साहित्य एवं कला की विभिन्न विधाओं में दिए जाने वाले सम्मान। कारण कि उपर्युक्त त्रिदिवसीय आयोजन के संयोजक भाई अखंड गहमरी कभी अपने किसी भी अतिथि साहित्यकार/कलाकार से रचनात्मक सहयोग के अतिरिक्त किसी भी प्रकार का आर्थिक सहयोग नहीं लेते आग्रह करने पर भी नहीं।”आप सब की उपस्थिति ही हमारा सहयोग है।” यही उत्तर होता है। जब कि इस त्रिदिवसीय सम्पूर्ण आयोजन को अपने स्वयं के संसाधनों से बड़ी ही कुशलतापूर्वक सम्पन्न कराते हैं स्वयं की सभी समस्याओं को भूलकर अतिथि देवो भव! को चरितार्थ करते दिखाई पड़ते हैं। अपने सभी अतिथियों के घर से निकलने से लेकर आयोजन स्थल तक पहुँचने तक उनकी पल-पल की जानकारी लेते रहना, कब कौन अतिथि गहमर स्टेशन आया उसे स्वयं लेने जाना उनके भोजन आवास की व्यवस्था सुनिश्चित करना अत्यंत दुष्कर व श्रमसाध्य कार्य को जिस प्रफुल्लित मन से वह करते दिखाई देते हैं वह भाव आज के समय में अत्यंत दुर्लभ है। अपनी प्रारम्भिक चरण में कार्यक्रम कुछ आकस्मिक अपरिहार्य कारणों से शिथिल रहा पर शीघ्र ही वह शिथिलता दूर हो गई और पूर्ण उमंग व उल्लास से सभी सत्र सम्पन्न हुए ।कुछ सत्रों में सहभागी साहित्यकारों/कलाकारों की अनुशासन हीनता ने अवश्य संयोजक के मन को दुखी किया होगा जब बार-बार पण्डाल में बुलाने पर भी अपने अपने कमरों से निकल कर आने में हीलाहवाली करते दिखाई दिए। संयोजक को एक सुझाव अवश्य देना चाहूँगा जब कभी आयोजन से पूर्व कोई पूजा अनुष्ठान रखें तो सर्वप्रथम वही करें शुभारम्भ कितने ही विलम्ब से क्यों न हो, भले ही पूर्व निर्धारित सत्रों की समयावधि घटानी पड़े अथवा एकाध सत्र निरस्त करने पड़ें साथ ही प्रत्येक सत्र के बीच एक अल्पकालिक अवकाश भी रखें ।
पतितपावनी गङ्गा के पावन तट पर स्थित एशिया के सबसे बड़े गाँव ‘गहमर’ जिसे सैनिकों का गाँव भी कहा जाता है जहाँ लगभग बारह हजार सैनिक वर्तमान में देश की विभिन्न सीमाओं पर तैनात हैं, वहीं लगभग पन्द्रह हजार सेवानिवृत्त सैनिक भी इस गाँव में हैं। सम्भवतः प्रत्येक घर से एक न एक व्यक्ति सेना में रहकर राष्ट्ररक्षा हेतु समर्पित है।यहाँ माँ कामाख्या का पावन धाम भी है कहते हैं कि सैनिक बाहुल्य गाँव होते हुए भी यहाँ का कोई वीर सैनिक किसी सैन्य कार्रवाई में कभी शहीद नहीं हुआ।स्थानीय लोग इसे माँ कामाख्या की असीम कृपा मानते हैं।यहाँ की जनसंख्या लगभग एक लाख पचास हजार है।ऐसी पवित्र वीरभूमि जन्मस्थली है हिन्दी के सुविख्यात साहित्यकार एवं जासूसी उपन्यास के जनक गहमर गाँव को गौरवान्वित करनेवाले वैश्य परिवार में जन्मे श्री गोपालराम गहमरी जी की।उसी सुप्रसिद्ध जासूसी उपन्यासकार की स्मृतियों एवं उपलब्धियों को सँजोए रखने के पुनीत उद्देश्य से ‘गहमर वेलफेयर सोसायटी’ एवं हिन्दी साहित्य को समर्पित ‘साहित्य सरोज’ त्रैमासिक पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित नवें श्री गोपालराम गहमरी साहित्य एवं कला महोत्सव 2023 (दिनांक
वन मैन आर्मी प्रिय अनुज अखण्ड गहमरी के दृढ़ संकल्प, आयोजन के प्रति पूर्ण निष्ठा से उनका समर्पण, अतिथियों
के प्रति उनके सेवाभाव,कार्यक्रम समापन के समय भरे कंठ से विदाई वक्तव्य देते हुए उनकी आँखों से निर्झर झरती प्रेमाश्रुओं की अविरल धार भला किस साहित्य व कला मनीषी के हृदय को स्पर्श नहीं करेगी।उनके इन पावन भावों को हृदय से नमन करते हुए मैं सहजता से स्वीकार करता हूँ की सम्पूर्ण आयोजन में कहीं-कहीं कुछ अव्यवस्थाएं हुईं लेकिन इसका दोषारोपण तत्कालिक परिस्थितियों और अपने स्वयं के योगदान और अनुशासन पर विचार किए बिना आयोजक पर नहीं किया जा सकता। निष्कर्षतः मैं भैया अखण्ड गहमरी के स्तुत्य एवं अभिनन्दनीय प्रयास की हार्दिक सराहना करते हुए मात्र इतना ही कहूँगा कि नौवां श्री गोपालराम गहमरी साहित्य एवं कला महोत्सव पूर्ण सफल एवं अविस्मरणीय रहा। प्रिय अनुज अखण्ड प्रताप सिंह ‘अखण्ड गहमरी’ जी को बहुत बहुत हार्दिक बधाई व अनन्तानन्त मङ्गलकामनाएँ एवं सप्रेम शुभाशीष एक बार फिर दसवें समारोह में सहभागी होने के संकल्प के साथ इस आयोजन में सहभागी रहे आप सभी को सादर नमन।
जय माँ शारदे!!