ट्रेन में बैठकर ठण्डी-ठण्डी हवा का आनंद लेते हुए, हम सभी गहमर स्टेशन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे l एक के बाद एक स्टेशन निकलते जा रहे थे l एशिया के सबसे बड़े गाँव गहमर को देखने की जिज्ञासा मेरे साथ-साथ माता-पिता जी और तारिका के मन में भी थी l जैसे ही ट्रेन में किसी सज्जन ने बताया की गहमर आने वाला हैं l यह सुन ऐसा लगा जैसे गहमर से कोई बहुत पुराना नाता हैं l अब वह समय भी आ गया था जब हमारी ट्रेन फौजियों की ज़मी गहमर स्टेशन पर पहुँच गई थी l ट्रैन से उतरते ही ऑटोचालक जी से कार्यक्रम स्थल चलने के लिए कहा, तभी पीछे से एक बाबूजी ने आवाज़ लगाई पीछे मुड़ कर देखा तो वह सब्जी के कट्टे हाथ में लिए नज़र आ रहें थे l उन्होंने हमें अखंड ग़हमरी जी को फ़ोन करने के लिए कहा l हमने अखंड सर को फ़ोन किया तभी देखा की वह बाबूजी तो स्वयं अपना सामन लेकर चल दिए और हम वही एक दूसरे की शक्ल देखते रह गए l खैर,हम स्टेशन से बाहर निकले वैसे ही सर अपनी दो पहिया सवारी ‘बाइक’ के साथ हमारे सामने,हमारा स्वागत करने के लिए स्टेशन पहुँच गए l शक्ल से सख्त,मुँह में पान और ऑटो चालक जी से इशारों में बात करते देख हमें तो अपने समय के राजा पान वाले अंकल का स्मरण हो आया l गतिविधियाँ कार्बन कॉपी लग रही थी l खैर,हम ऑटो में बैठे और सोचने लगे की हमारी जमेगी की नहीं क्योंकि हम तो ठहरे बिंदास मिज़ाज के l ज़्यादा सख्त मिजाज़ वालों से तो छत्तीस का आँकड़ा और उनको हम खिड़की के झरोखों से ही राधे -राधे कर प्रसन्न हो जाते हैं l लेकिन यहाँ यह संभव कहाँ था? आज ऐसा लग रहा था मानों ऊँट पहाड़ के नीचे आ गया हो l यहीं सब सोच रहें थे की तभी ऑटो चालक जी ने अपना ऑटो कार्यक्रम स्थल पर रोक दिया l कार्यक्रम स्थल पर पहुँचे तो ओम मिश्र जी , सुनील दत्त जी ने हँसते हुए और खुले दिल से हमारा स्वागत किया l तब थोड़ा हमें भी लगा की भगवान ने हम पर रहम की है l कमरे में पहुँचते ही पुष्पा मैम से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ l जिन्होंने हमें नई -नई जानकारी दी l लेकिन दिल्ली वालों में एक बात है वह हर बात पर ध्यान बहुत देते हैंl एक रंग की साड़ी होने के कारण मैम ने मम्मी से पूछ लिया कि,”आपने जो साड़ी अभी पहनी हुई थी,वही दोबारा पहनी हैं क्या? अब एक नया अध्याय शुरू हुआ l मैम की नज़रो के साथ… तीन एक रंग की साड़ी में से 2 ही मैम के सामने निकाल कर पहनी वरना मैम परेशान हो जाती और फिर पूछ लेती कि यह वही साड़ी है क्या? मैं तो हँसते-हँसते लोट-पोट हो रही थी l तभी अखंड सर का बुलावा आया नाश्ता तैयार है l फिर क्या था,हम चल दिए जहाँ नाश्ते की मेज़ सजी हुई थी l तभी नाश्ते की मेज़ पर माँ कामख्या और कान्हा की कृपा से एशिया के सबसे बड़े गाँव में ब्रज क्षेत्र हाथरस और मथुरा का संगम हुआ l इस संगम का विस्तार मंच पर प्रस्तुति और स्वादिष्ट भोजन की मेज़ के साथ बढ़ता ही जा रहा था l हमारे तोते तो तब उड़े जब दादाजी के सामने हमने गुस्ताखी यह कह कर कर दी कि “मम्मी थोड़ा घूम आते हैं l”यह सुन दादाजी ने हमें आड़े हाथों लिया l दादाजी ने हमसे पूछा,”काल क्या हैं?” हम व्याकरण के काल बता कर खुश थे l वही दादाजी हिंदी साहित्य के इतिहास से कालखंड को लेकर प्रश्न कर रहें थे l इसी उधेड़-बुन में दादाजी का गुस्सा कौन से आसमां पर पहुँच गया पता ही नहीं चला l तभी साथ बैठे एक शांत स्वाभाव वाले सर ने रीतिकाल बोला l यह सुन दिमाग़ की बत्ती जल उठी फिर क्या था,अंधकार समाप्त और उजाला शुरु l अब हमने बताना शुरू किया l दादाजी हमारे चुप होने का इंतज़ार कर रहें थे l जब तक हम शांत हुए तब तक दादाजी का गुस्सा भी उड़न छू हो गया और हमारी इज़्ज़त का फालूदा बनने से बच गया l तभी अखंड सर ने कार्यक्रमों की रूपरेखा बतानी शुरु की l धीरे -धीरे कार्यक्रम आगे बढ़ रहा था और अब कहानी वाचन का एलान हो चुका था l हम सोच कर बैठे थे की किसी को पहले सुन लेगे फिर उन्ही की नकल कर लेगे l लेकिन अखंड सर पहले से ही खतरे की घंटी थे और बजी भी सबसे पहले हमारे नाम के साथ ही l अब क्या था नकल करने का अवसर तो हाथ से निकल गया l अक्ल के घोड़े दौड़ाने का नंबर आया तो घोंडे ऐसे दौडे की बेलगाम हो गए और अपनी कहानी की समीक्षा हम स्वयं ही कर बैठे l जब दिमाग़ के घोड़े शांत खड़े हुए तो पता चला की सीमा पार कर दी lअब अखंड सर की सूरत देख,मैं अपने किए पर हँस रही थी l लेकिन मेरी कहानी सब को पसंद आई तो मैं दौड़ाएँ घोड़ो को भूल ही गई l गोप दादा जी,शान जी,ओम मिश्र जी सभी ने छोटी -छोटी लेकिन मोटी बातें बता कर हमारे लेखन में सुधार करने का प्रयत्न किया l ज्ञान की बातें होती रही और वह बेला अब आ गई जब सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आगाज़ होना था l हम अपने कमरें में कान्हा और राधा को तैयार कर रहें थे l तभी ज्योति और इशिका ने कार्यक्रम के विषय में जानना चाह लेकिन बिना कुछ बताएं तुरंत उनको तैयार होने के लिए कहा l “न”किए बिना दोनों तैयार हो गई और हमारी तीन कलाकारों की टोली बड़ी हो गई l हम अपनी प्रस्तुति देने का इंतज़ार करते हुए फूलों को तोड़ रहें थे l अब वह समय भी आ गया जब हमको अपनी प्रस्तुति सबके समुख देनी थी l मेरे पिताजी श्री मोहन लाल जी पहली बार वासुदेव के रूप में किसी कार्यक्रम में प्रस्तुति देने के उत्साहित थे l यह मेरे लिए एक सुखद क्षण था l हमारा कार्यक्रम आरम्भ हुआ l सभी ध्यान से हमारे कार्यक्रम को देख रहें थे l लेकिन तालियाँ बजाने में कंज़ूसी कर रहें थे l अब हम भी ब्रज वाले थे l आप मत बजाओ हम बजाते हैं l फिर क्या था,हमने जो सभी को लाठियाँ बरसाई,सब मजे लेते रह गए l सभी ने आनंद लिया प्यार भरी लाठीयों का और फूलों की होली का lअगली सुबह माँ कामाख्या मंदिर जाते हुए देखा की जिस गाँव में हर घर में फौजी हैं,वहाँ के निवासी प्रकृति प्रेमी हैं l पूरे दिन सभी से गुफ़्तगू करते-करते कब रात हो गई पता ही नहीं चला l 80साल के विनय राय जी ने वर्तमान शिक्षा की खामियों पर चुटकी लेते हुए काव्य पाठ पढ़ा l जिसके कारण पूरे वातावरण में वाह!वाह!के शब्द सुनाई देने लगे l तो वहीं गणेश जी,दिल फरेब जी,राम भोले शर्मा जी हमारी हँसी और बातों से परेशान हो गए थे l और हम यह सोच कर परेशान हैं की अखंड ग़हमरी सर एक दिन में कितने पान खाते हैं?खैर, पहली बार गहमर के स्थानीय निवासियों से,साथ ही अखंड सर के परिवार से जो मान और सम्मान मिला उसने दिल को छू लिया और अपना बना लिया l
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