Breaking News

मेरा नया नाम

गंगा किनारे बसे एशिया के सबसे बड़े गांव जहां लगभग दस हज़ार घर हैं और हर घर से एक ना एक जवान देश की रक्षा में सीमा पर तैनात है उस मशहूर गांव गहमर (गाज़ीपुर) में गहमर वेलफेयर सोसाइटी एवं साहित्य सरोज पत्रिका द्वारा तीन दिवसीय “9वें गोपाल राम गहमरी साहित्य एवं कला महोत्सव” में जाने का अवसर प्राप्त हुआ । बीकानेर हावड़ा सुपरफास्ट ट्रेन से जब उतरा तो अखंड जिनको प्लेटफार्म पर ही । पाया जबकि मैं सोच रहा था कि कार्यक्रम स्थल पर कैसे जा पाऊंगा । अखंड जी ने स्वयं स्टेशन आकर मेरी समस्या ही समाप्त कर दी ।
पहले दिन काफी लोग पहुंच गए थे । ओम मिश्र जी और सुनिल दत्त जी लखनऊ और छत्तीसगढ़ से आए थे । थोड़ी देर बाद, जब तक हमने अखंड जिनके घर खाना खाया डॉक्टर ब्रजेश गुप्ता भी पहुंच गए थे । रात हम अखंड जिनके निवास पर ही सोए । ब्रांडावन की संतोष शर्मा पहले ही मौजूद थीं ।
कार्यक्रम ना केवल साहित्यिक वरन कला को भी समर्पित रहा । पहले दिन पुस्तक अवलोकन और परिचय । दूसरे दिन साहित्यिक और कला को समर्पित जिसमें मैंने बांसुरी बजाई, तीसरे और अंतिम दिवस गंगा जी में स्नान और नौका विहार के आनंद के साथ ही मां कामाख्या मंदिर में दर्शन किये । मंदिर में भी भक्तिरस में डूबी काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें अपनी रचना सुनाने का अवसर मिला और तालियां भी।

कार्यक्रम की खास बात यह रही कि देश के विभिन्न राज्यों से आए साहित्यकार और कलाकारों से पारिवारिक माहौल के बीच तीन दिन मुलाकात, सीखने और सिखाने का अवसर मिला ।

कार्यक्रम के आयोजक और संस्थापक सम्माननीय अखंड गहमरी जी के व्यक्तित्व को जानने का अवसर मिला । मैं आश्चर्यचकित तब रह गया जब मैंने अखंड जी को दिसंबर की कड़ाके की ठंड में हमें लेने के लिए स्टेशन पर ढूंढता पाया । वे ना केवल मुझे बल्कि कार्यक्रम में हर मेहमान को स्टेशन लेने यूं पहुंचे जैसे लड़की की शादी में लोग अपने खास मेहमानों को लेने स्टेशन पहुंचते हैं। यह उनका बड़प्पन और अपने ग्रुप के साथियों के प्रति घोर प्रेम दर्शाता है। एक नहीं उनकी अनेक बातों से अभिभूत हुआ हूं । श्री अखंड जी अपनी धुन के पक्के, वादे के पक्के, झूठे आडंबरों से दूर और प्रशंसा से भी दूर रहने वाले जमीन से जुड़े वास्तविक साहित्यकार हैं । उनका साहित्यिक दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट और आज की चमक से कोसों दूर है ।

भावुक पल कार्यक्रम के अंतिम दिवस पर आभार प्रकट करते हुए जब अखंड जी रो पड़े तो ….माहौल गमगीन हो उठा । अखंड जी के अंदर का बच्चा जैसे अपनों के बिछड़ने की कल्पना मात्र से रो रहा था…जैसे बेटी का बाप बेटी के विदा होने पर रो पड़ता हो…। वो क्षण सबके लिए अप्रत्याशित था । कभी किसी कार्यक्रम के संयोजक को यूं रोते हुए नहीं देखा था ।

कार्यक्रम में साहित्यक योगदान के लिए संस्था की ओर से मुझे सम्मानित भी किया गया । कुछ यादगार झलकियां…
**
“खास बात”

सबसे खास बात यहां अखंड गहमरी जी के गांव से मुझे कवि होने के नाते कहा गया कि आप कवि हैं मगर आपका नाम कवियों वाला नहीं, आपका उपनाम तो होना चाहिए । तब मैंने कहा यह उपनाम आप रख दीजिए । बस कार्यक्रम में सबके सामने मुझे कवि राजेश ‘दिलफेंक’
के नाम से पुकारा गया और मुझे दिलफेंक उपनाम दे दिया गया ।
अब से मैं इसी नाम से गीत, ग़ज़ल लिखूंगा और कवि के रूप में इसी नाम से जाना जाऊंगा ।

गहमर के डाल भात और लिट्टी चोखा का स्वाद अभिब्भी मेरी जुबान पर है।

 कवि राजेश दिलफेंक
     जयपुर - अजमेर

About sahityasaroj1@gmail.com

Check Also

गोपालराम गहमरी साहित्‍य एवं कला सम्‍मान समारोह 22 को

गोपालराम गहमरी साहित्‍य एवं कला सम्‍मान समारोह 22 को

प्रसिद्व जासूसी उपन्‍यासकार गोपालराम गहमरी की स्‍मृति में साहित्‍य सरोज पत्रिका द्वारा विगत 9 वर्षो …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *