ममता सिंह को उनकी सफलता पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
सबसे पहले मैं ममता सिंह को हर्बा लाइफ वर्ल्ड टीम का सदस्य बनने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूँ और माँ कामाख्या से प्रार्थना करता हूँ कि आप निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे। ममता सिंह के सफलता का श्रेह सबसे अधिक किसी को जाता है तो वह है इनके सहकर्मी और मार्गदर्शक श्री धमेन्द्र सिंह जी को, उनको भी अपने डाउनलाइन के प्रमोशन पर हार्दिक बधाई। उसने साथ मैं संजय सिंह, मनोज सिंह, धर्मराज सिहं को भी बधाई देना चाहूँगा जिनके मार्गदर्शन में ममता सिंह ने अपने मंजिल के पथ पर एक मील का पत्थर पार किया।
ममता सिंह के इस सफर की शुरूआत वर्ष 2021 में हुई थी। एक दिन मैं अपने आफिस में काम कर रहा था तो ममता सिंह मेरे पास आई और बोली कि स्कूल में धर्मेन्द्र सर हर्बा लाइफ में जुड़ने के लिए कह रहे हैं आपका क्या विचार है। यहां कहना चाहूँगा कि हम लाख महिला उत्थान की बात कर लें लेकिन किसी काम के लिए महिला को पति और परिवार की स्वीकृति लेनी ही पड़ती है।मैंने कहा कि यह वही काम है न कि तुम दो बनाओं वो दो बनाये, फालतू काम हैं । उस वक्त तो वह वहां से चली गई लेकिन फिर रात को वही बात । देखीये कोई पति पूरी दुनिया से तो भाग सकता है लेकिन अपनी पत्नी से नहीं, यदि वह घर पर है तो रात में भाग कर कहा जायेगा, और परदेश में तो पत्नी पहले प्रेम से हाल-चाल, खाना-पीना पूछेगी और फिर बाद में अपनी बात रख देगी।
मेरे साथ भी यही हुआ। तीन चार दिन लगातार पूछने का क्रम चलता रहा और मैं टालता रहा। लेकिन मैं जानता था कि कुछ तो कहना पड़ेगा, इस लिए मैं यू-टियूब पर हर्बा लाइफ को देखने-समझने लगा। आदत के अनुसार मैनें निगेटिव खोजना शुरू किया ताकि इनका दिमाग इस काम से हटाया जा सके। खोज चलती रही और धीरे-धीरे मेरा रूझान भी बढ़ने लगा। मैं 1 सप्ताह में लगभग 300 निगेटिव वीडियों देखें और सारे हर्बा लाइफ प्रोडेक्ट और उसके निगेटिव में 4 चीज कामन लगी। मैनें यह देखा कि इनके यह करने से मेरे ऊपर या मेरे समाजिक स्तर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा मैंने स्वीकृति दे दिया।
यह अपने टीम के साथ उसमें लग गई। स्कलू जाना, आना, मिटिंग, घर, बच्चों की जिम्मेदारी के साथ-साथ घर न निकल पाने की मजबूरी जैसे चुनौतियों के बीच इन्होनें अपना रास्ता बनाया। धीरे-धीरे मंजिल दर मंजिल पार करने लगी। जिन्दगी में पहली बार 5 स्टार होटल में रूकने और जयपुर शहर को दूसरे के खर्च पर रूकने का सुख मुझे अपनी पत्नी के इस काम से ही मिला।
चूकि मैं बाहर अधिक रहता था, इनके सेमिनारों में इनके साथ जा नहीं पाता था इस लिए मैं और मेरे परिवार ने इनको कही भी अकेले या किसी के साथ जाने को स्वंतत्र किया। इस वर्ष सितंम्बर माह में इनके एक सिनियर द्वारा एक टार्गेट दिया गया। चार महीनेें लगातार एक लक्ष्य को पाना था। उस टार्गेट को पाने पर इनको दाजर्लिग का फ्री टूर मिलना था। दूसरी तरह एक बात और थी, लक्ष्य पूरा करने से टूट का पैकेज तो मिलता ही साथ ही इनका प्रमोशन भी वर्ल्ड टीम में हो जायेगा। चूकि मैं बार-बार दारजलिंग जाना चाहता था, तो यह टूर मुझे भी अच्छा लगा, मैं भी टूट के लालच में आ गया सोचा दूसरों के खर्च पर फिर मज़ा, यह सेमिनार करेगी और मैं फिल्म शूटिंग। सितम्बर माह में ममता सिंह ने दिये लक्ष्य को पूरा कर लिया। जब मैने पहले महीने के सफलता की बधाई दिया तो ममता सिंह ने कहा कि प्रोमशन और टूट का लक्ष्य तो पिछले साल भी सितम्बर में पूरा कर लिया था मगर अक्टूबर, नवम्बर और दिसम्बर तो नहीं हो पाया।
मैनें कहा कि इस बार प्रयास करों हम साथ देगें। मैं अक्टूबर नवम्बर और दिसम्बर पूरा व्यस्त हो गया। यह चलती रहीं। मेरे मोबाइल से साहित्यकारों का, दोस्तों का नम्बर निकाल निकाल कर उनको मैसेज करना, उनसे बात करना। अपने और मेरे रिश्तेदारों से घर या स्कूल से बात कर उनसे नम्बर लेकर लोगों से बात करना शुरू किया और घर से ही धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी। आखिर विकल्प ही क्या था लोगो से संंम्पर्क काा । सिनियर तो रास्ता ही दिखा सकता है, क्योंकि कि उसके लिए आप अकेले तो हैं नही, चलना तो आपको ही है। मेरे द्वारा भी सहयोग जरा भी नहीं हो पा रहा था। ले देकर केवल धमेन्द्र सिंह ही सहारा थे। दूसरी तरफ धर्मराज सिंह जो इनके सिनियर के सिनियर थे वह भी समय समय पर इनसे बात कर इनका मार्गदर्शन और सहयोग कर रहे थे। गिरते चलते वह अक्टूबर माह में भी इस लक्ष्य को पा गयीं। नवम्बर त्यौहारों का महीना था, दिपावली और महापर्व छठ होने से घर में काम की व्यस्तता इनके ही साथ नहीं बल्कि इनके सहयोगीयों और आम आदमी के साथ भी थी। हिम्मत इनकी टूट चुकी थी लेकिन हौसला नहीं हारी चलती रही और उसका परिणाम यह हुआ कि 30 नवम्बर को अंतिम समय में यह तीसरे महीने भी अपने लक्ष्य को पूरा करने में सफल रही। बीच नवम्बर का अंत एक बड़ी समस्या लेकर आया, वाइफ के खाते से लाखों रूपये की रकम बैंक फ्राड से निकल गई। उधर दिसम्बर चढ़ते ही बेटे की तबीयत बहुत खराब हो गई। इस वक्त मेरी मदद अरूण अर्णव सर ने बहुत किया। उसके बाद मैं दिसम्बर के कार्यक्रम में व्यस्त हो गया। दिसम्बर पूरा बीतने को था और यह लक्ष्य से कोसो दूर। मेरा कार्यक्रम बीत चुका था,कोई रास्ता दिख नहीं रहा था। मेरे हाथ में एक रूपया नहीं कि अपने स्तर से लक्ष्य पूरा किया जा सके। लेकिन कहते हैं न कि कोई आ ही जाता है। अभी सब चल रहा था कि 30 दिसम्बर को बेटे का एक्सींडेंट हो गया। लेकिन ममता सिंह सबसे लड़ते, गिरते, मिलते अपने मंजिल के एक मील के पत्थर को पार गयीं जिससे वह पिछले साल चूक गई थी। ममता सिंह अपनी मंजिल का एक मील का पत्थर अपने मेहनत, लगन और हिम्मत के बल पा कर फिर निकली हैं एक नये को लेकर अपनी मंजिल का एक और मील का पत्थर पार करने। आशा है कि वह अपने मेहनत और अपने लगन के बल पर इस मील के पत्थर को भी पार करेगीं।
अखंड प्रताप सिंह