हिन्दी साहित्य समाज जासूसी कहानियों के लेखक को भले ही साहित्यकार का दर्जा न दें। उसके उपन्यासों को, कहानियों को साहित्य का दर्जा न दे मगर जासूसी कहानियाँ एवं उपन्यास पाठकों को ज्ञान एवं मनोरंजन दोनो देने के साथ पाठकों को पूरी तरह बांधे रखने में पूरी तरह सफल रहती हैं। इसकी कहानी हो या उपन्यास पाठक को हर शब्द के बाद सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आगे क्या होगा? जो लेखक पाठक को आगे क्या होगा जितना सोचने पर मजबूर कर दें, किताब को खुले रखने एवं उस पर से नज़र न हटाने को मजबूर कर दे, वह लेखक उतना ही सफल माना जाता है।
जासूसी कहानियों की सबसे बड़ी बात होती है कि इसमें लेखक को अपनी कल्पना स्थापित करने के लिए खुला आसमान मिलता है। उसकी कल्पना हकीकत से परे जाकर भी हकीकत के पास लगती हैं क्योंकि पाठक तो कहानी के पात्रों में खोया रहता है। एक ही जासूसी कहानी में लेखक डर, भक्ति, प्यार, रोमांश, परिवार, खेल, होनी-अनहोनी सब कुछ दिखा सकता है। यह उसके विवेक और कहानी की बनाबट पर निर्भर करता है कि इनका प्रयोग कैसे किया जाये और इनका प्रयोग कर पाठक को कैसे बांधा जाये ? क्योकि यदि कहानी पाठक को बांधने में असमर्थ हुई तो कहानीकार का जासूसी लेखन खत्म माना जायेगा।
आज 20-20 का वक़्त है। पाठक से लेखक तक चार लाइनों के लेखन को पंसद करता है। और यह जासूसी कहानीयों में संभव नही है। जासूसी कहानी की अपनी एक खास लम्बाई होती है। एक खास गति होती है। एक खास कल्पना होती है। जो मिल कर पाठक को न सिर्फ बांधने का काम करती हैं बल्कि कहानी को कहानी के रूप में डालती हैं। यही कारण है कि आज जासूसी कहानियाँ अपना वजूद हो रही हैं। इसका एक कारण और भी है। किताबों की जगह मोबाइल एवं कप्यूटर-लैपटाप में पढ़ना पंसद करता है। आज पाठक किताबों की जगह मोबाइल एवं कप्यूटर-लैपटाप में पढ़ना पंसद करता है। और जासूसी कहानी इस पद्धति को स्वीकार नहीं करती। जासूसी कहानियां जब तक पाठक पुस्तक के रूप में नहीं पढ़ेगा तब तक उसे पढ़ने का आनन्ंद आयेगा ही नहीं।
आज जरूरत है कि लेखक समाज अपने लेखन में जासूसी कहानियों को समावेश करें। अपनी कल्पना को ऊंचाई दे। लेकिन इसके लिए जरूरी होगा कि उसे जासूसी कहानियों को न सिर्फ पढ़ना होगा बल्कि जासूसी कहानी लेखन को समझना होगा। जासूसी लेखन अन्य विधा की कहानी की तरह ‘मन में विचार आते गये और लेखनी चलती रही की तर्ज पर नहीं लिखा जा सकता। उसके लिए आपको घटनाक्रम तैयार करना होगा। एक अपराधी एवं एक जासूस की तरह सोचना होगा। अपराध लिखते समय अपराधी की तरह योजना बनानी होगी, उसे क्रियान्वित करना होगा और फिर अपनी लेखनी से न्याय करते हुए आपको उस घटनाक्रम तक एक सफल जासूस की तरह पहुँचना होगा।
अब आप यहां कहेगें कि हमारी ही अपराध और हमारी ही खोज तो दोनो में गोपनीयता कैसे रहेगी। तो यही जासूसी लेखक की सबसे बड़ी खाशियत होती है उसके शरीर का उसके दिमाग का, उसके दिल का, उसकी धड़कन का दो भाग हो जाता है। और एक भाग दूसरे भाग से मिल नही पाता, दोनो एक दूसरे के जानी-दुश्मन बने रहते हैं।इसके बावजूद जासूसी लेखन कहानीयों का लेखन बहुत कठिन नहीं है, बस जरूरत है तो आपके बुलंद इरादों की, आपकी सोच की ।हौसला करिए और उठाईये लेखनी हम आपके साथ है, हम आपको सिखायेगें, हम आपको बतायेगें, हम आप को पाठक तक पहुँचायेगें।
अखंड प्रताप सिंह, प्रकाशक साहित्य सरोज, प्रवन्धक गहमर वेलफेयर सोसाइटी गहमर।। 9451647845
यदि आप महिला हैं और आपकी उम्र 25 से अधिक है और आपकी शार्ट फिल्म अभिनय, माॅडलिंग, टेशाटन, फोटोग्राफी में रूचि है तो तत्काल सम्पर्कं करें। अखंड गहमरी 9451647845