पुश्तैनी जमीन पर ललन और कारू दोनों भाई अपने परिवार के साथ अपने-अपने हिस्से में रह रहे थे।भाईयों की आपस में कभी-कभार दो-चार बातें हो जाया करती परंतु दोनों की पत्नियां एक-दूसरे को फुटी आँख न सुहाती।अब तो एक नया बखेड़ा पैदा हो गया था जिससे आए दिन हुल-हुज्जत तय थी।पहले जमीन के आगे कच्चा रास्ता हुआ करता था।पर जबसे एन एच से जोड़े जाने की खबर उड़ी तबसे छोटे भाई कारू के घर अक्सर चिक-चिक होती रहती।सड़क बनने के क्रम में कुछ लोगों की जमीन उस हिस्से में पड़ रही थी।कारू की चार हाथ और ललन की कुछ ज्यादा ही।ज़ाहिर था सरकार के तरफ से पैसे भी उसी हिसाब से मिलना था।कारू की पत्नी को लग रहा था कि उसके साथ गलत हुआ है।ललन को पहले से ही मालूम था यह सब कि भविष्य में इधर से मुख्य मार्ग गुजरेगी,तभी उसने आसानी से हर बात मान ली।कारू तो हमेशा से शहर में रहता रहा था।उसे गाँव का कुछ खास अता-पता भी तो न था।बार-बार उसके दिमाग में एक ही विचार कौंध रही थी आखिर कोई सामने की जगह छोड़कर तिरछा क्यूं लेना चाहेगा,जैसा कि ललन ने किया था।
गाँव वालों के सामने सर्वसम्मति से दो हिस्से हुए थे।ललन ने तो छोटे भाई की मर्जी पर ही छोड़ दिया।जिधर तुम्हें चाहिए वह ले लो।सबने ललन की दरियादिली पर भूरी-भूरी प्रशंसा भी की थी।”देखो!.आखिर ललन ने राम की मिसाल पेश कर दी।वरना कौन इस तरह किसी की मर्जी पर छोड़ता है आज के कलयुगी ज़माने में।”कारू की पत्नी झट बोल पड़ी थी- “मुझे तो सामने का ही चाहिए।चौकोर जमीन उसकी आंखों में तैर रही थी।ललन ने बस इतना ही कहा था- “भाई जमीन दो हिस्सों में बँटा है हमारे दिल नहीं बँटने चाहिए।”कारू की पत्नी बहुत खुश थी पर आज वह अपने ही फैसले पर सर फोड़ रही थी।हर वक्त बुरा-भला कहती रहती।”आज जो तुमने बात नहीं कि तो मेरा मरा मुंह देखना।अंतिम बार कह देती हूँ तुम्हें!..कारू को कहती,जाओ अपने बड़े भाई से कहो कि यह चार हाथ भी ले ले।हमें तो जानबूझकर ठगा गया है।आज हमारे पास भी ज्यादा जमीन होती तो ज्यादा पैसे मिलते।”
वह भी चिढ़कर कह देता-“भैया ने कोई जोर-जबरदस्ती नहीं दी थी।तुमने ही आगे बढ़कर कहा था जो चाहा वो मिला।ये उनका नसीब है कि उनकी जमीन रास्ते में जाएगी।मैं नहीं जाता कहने,तुम्हें जो करना है करो।” कारू किस मुंह से बड़े भाई को कहता-ललन ने उसे ही तो फैसले का अधिकार दिया था। कारू को अपनी पत्नी पर बहुत गुस्सा आ रहा था।खुद ही तो आगे बढ़कर बोली थी और आज घर में कोहराम मचा रखा है। दो दिन से खाना-पिना सब पर आफत छाई थी।बच्चे बाहर से कुछ-कुछ लाकर खा रहे थे।कारू भी कल सुबह जो गया देर शाम होने को आया ,वह घर नहीं लौटा था। न जाने क्यूँ ललन का मन बेचैन हो रहा था।खून के रिश्ते जबतक गाढ़े रहते हैं तो सुख-दुख का भी भान होता है।आज उसे कारू की चिंता सता रही थी।कुछ तो बात है।इतना सन्नाटा कि कोई आवाज भी नहीं।
धड़कते दिल से बच्चों को आवाज लगाई।मालूम चला दो दिन से चुल्हा नहीं जल रहा ,खाना नहीं बन रहा है और कारू भी घर नहीं आया। अब तो यकीन पक्का हो गया था ।कुछ तो गड़बड़ है।पर क्या..?उसने टार्च उठाई और हर ठिकाने पर जा-जाकर ढूँढता रहा लोगों से पुछता रहा। किसी ने कारू को देखा है क्या..? कहीं कोई खबर नहीं ,मन में तरह-तरह के ख्याल हिलोरें मार रहे थे।आखिर गया तो कहाँ गया।तभी किसी ने बताया कि कारू को गाँव के बाहर बने देवस्थान के चबूतरे पर लेटे हुए देखा था।जहाँ कभी किसी खास मौके पर लोग जाते थे।
ललन दौड़कर उस ओर आवाज लगाया हुआ गया। “कारू !..ये क्या भाई,तू यहाँ क्यूँ लेटा है।बच्चों से मालूम चला कल सुबह ही घर से निकले हो तुम। ऐसा कोई करता है भला, दो-चार बातें पति-पत्नी में हो भी गई तो क्या हुआ।सब ठीक हो जाएगा।चलो मेरे साथ घर,गाँव वाले क्या कहेंगे..?””घर!..कौन सा घर भैया,जहाँ मेरे सर पर तांडव करती है।सब तो उसका ही किया-धरा है फिर भी आए दिन झगड़ों से परेशान हो गया हूँ।घर में मैं सो नहीं पा रहा,यहां काफी अच्छी नींद आई।” “इस तरह की बहकी बातें मत करो ,चलो मेरे साथ।क्या बात है मुझे बताओ अगर मैं जान सकता हूँ तो।बच्चों से पुछना अच्छा नहीं लगा।तुम ही बता दो अब।मुझे बड़ा भाई मानते हो तो।” । “भैया!..मानूंगा क्यूँ नहीं,हमेशा मेरे लिए आप खड़े रहे।आपने कितने त्याग किए हैं मुझसे ज्यादा कौन जान सकता है। और वह बच्चों की तरह फुट-फुटकर रोने लगा। ललन कारू के सर पर हाथ फिराते हुए बोला-“बोल न,बात क्या है जो तुझे इतना परेशान कर रहा है।”
“भैया वो कहती हैं कि वह चार हाथ जमीन भी आप ही ले लें जो सड़क बनने में जा रही है।आपकी ज्यादा गई है तो पैसे भी आपको ज्यादा मिलेगें।आपने जानबूझकर पीछे की तरफ की जमीन ली थी। यही झगड़े की वजह है।””ठीक है! एक काम करो, अपनी-अपनी जगह बदल लेते हैं तब तो कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।तुम मेरे हिस्से और मैं तुम्हारे हिस्से।चलो चलकर घर में बात कर लो।””पर भैया,भाभी कुछ नहीं बोलेगी..?””वो बाद में देख लेगें पहले अपनी पत्नी से बात तो करो।सब हल निकल जाएगा।”कारू अपनी पत्नी के सामने यह प्रस्ताव रखता है।इसबार ललन की पत्नी ने भी कुछ बोलना चाहा पर सारी बात समझाने पर वह चुप ही रही।
इधर कारू अपनी पत्नी से सारी बात कहता है…पहले तो वह सुनकर बहुत खुश हुई लेकिन जब दिमाग लगाया तो उसकी गणना उसे ठेंगा दिखाती मिली।ललन की जमीन हमेशा दबंगों की नजर में खटकती रहती पर ललन की भलमनसाहत और विनम्र स्वभाव उन्हें हर बार रोक लेती थी।सरकार ले रही थी तो एवज में पैसे भी दे रही थी।जिससे वह कहीं अन्य जमीन खरीद सकता था।यह बात कारू की पत्नी को पता था कि उसके स्वभाव के कारण उसकी गाँव में अच्छी छवि नहीं थी।कोई साथ भी नहीं देगा।आखिर उसने चुप रहना ही बेहतर समझा।कारू के पुछने पर उसने कहा -जो जिसे मिला वही ठीक है।मेरी चार हाथ तो चार हाथ ही सही।मुझे अदला-बदली नहीं करनी।अब दोनों भाईयों के चेहरे पर सुकून आ गई थी।
सपना चन्द्रा
कहलगांव भागलपुर बिहार
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