कमल नयन हरि के अवतारे। त्रेतायुग में अवध पधारे।।
हिन्दू संस्कृति के मूल पुरूष कमल नयन विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम का जन्म त्रेतायुग में चैत्र शुक्ल नवमी तिथि को कौशल नरेश दशरथ की पत्नी कौशल्या के गर्भ से हुआ। राम एक ऐसा नाम है जिसके सुमिरन मात्र से मन के सारे मैल धूल जाते हैं। राम अर्थात जो प्रत्येक के हृदय में रमते हो,समूचे ब्रह्मांड में रमण करते हो वो राम हैं। राम जीवन का मंत्र है, गति का पर्याय है और सृष्टि की निरंतरता का नाम है। राम उस अपार्थिव सुंदरता का परिचायक है जिनके सुंदरता का वर्णन करने में देवता भी सक्षम नहीं हैं। राम उस अलौकिक प्रकाशपुंज के पर्याय हैं जो हमारे भीतर व्याप्त हो हमें सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।श्रीराम ईश्वरीय अवतार से ज्यादा मर्यादापुरुषोत्तम के रूप में पूजे जाते हैं। वे भारतीय जीवन दर्शन और भारतीय संस्कृति के सच्चे प्रतीक थे। उनके त्यागमय,सत्यनिष्ठ जीवन चरित्र से मानवता मात्र गौरवान्वित हुई है। आज भी हम सभी उनके उच्चादर्शों से अनुप्राणित होकर संकट और असमंजस्य की स्थितियों में धैर्य एवं विश्वास के साथ आगे बढ़ते हुए कर्त्तव्य पालन का प्रत्यन करते हैं। एक व्यक्ति के रूप में राम एक आदर्श व्यक्ति की विशेषताओं को व्यक्त करते हैं। उनके भीतर वे सभी वांछनीय गुण थे जो उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम या धर्म का सबसे अच्छा रक्षक बनाता है।
राम अपने सभी भाइयों में सबसे बड़े थे। भरत,लक्ष्मण और सत्रुघ्न इनके अनुज थे। सीता इनकी पत्नी थी और रुद्रावतार वीर हनुमान इनके सबसे बड़े भक्त थे। राम रघुकुल में जन्मे थे,जिसकी परम्परा “रघुकुल रीति सदा चली आई,प्राण जाए पर वचन न जाई ” की थी। श्रीराम अपनी मर्यादा पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता, यहाँ तक कि अपनी पत्नी का भी साथ छोड़ दिया। पिता के वचन की रक्षा के लिए 14 वर्ष का वनवास खुशी से स्वीकार किया।14वर्ष के वनवास के दौरान श्रीराम ने जिस तपस्वी जीवन को जिया वह आज भी हमें कर्त्तव्य पथ पर बने रहने की प्रेरणा देता है। वनवास के दौरान लंकापति रावण द्वारा सीता का हरण राम को थोड़ा विचलित जरूर करता है परंतु ऐसी विषम परिस्थिति में भी राम धीर बने रहे और वीर हनुमान, सुग्रीव आदि वानर जाति के महापुरुषों की सहायता से सीता को ढूंढ लेते हैं। समुद्र में पुल बनाकर लंका पहुंचे और अंहकारी रावण का वध कर सीता समेत अयोध्या वापस आए। धर्म के मार्ग पर चलने वाले राम ने शासन की ऐसी मिसाल पेश की कि आज भी जहाँ सुशासन की बात होती है तो रामराज का उदहारण दिया जाता है। वर्तमान युग में हम भगवान श्रीराम के आदर्शों को जीवन में अपनाकर अपने मानव जीवन को सार्थक कर सकते हैं और अपने परिवेश को सुंदर व समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”
मुंगेर, बिहार