एक क़स्बे में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे,बात आज़ादी के तुरंत बाद की हैं,एक धनी था,एक इतना धनी नहीं था । रोज़ाना कमाना और गुजर बसर करना,पर दोस्ती की लोग मिसाल दिया करते थे। दोनों दोस्त अपने-अपने माँ बाप की इकलौती संतान थे। एक दिन दोनों दोस्त साथ-साथ अपने-अपने घरों को जा रहे थे, विदा लेते समय निर्धन दोस्त ने अपने दोस्त से 10 रुपये उधार माँगे,धनी दोस्त ने देर नहीं की देने में और बोला कुछ और चाहिए तो बता। नहीं-नहीं मुझे तो बस 10 रुपये ही चाहिए। अगले दिन धनी दोस्त अपने दोस्त का इंतज़ार करता रहा, सुबह से दोपहर हो गईं,आपस में नहीं मिले चिंता होने लगी। बहुत इंतज़ार करने के बाद धनी दोस्त अपने दोस्त को देखने उसके घर की ओर चल दिया। घर पर ताला लगा था। पड़ोसियों से पूछा सब ने मना कर दिया हमें कुछ नहीं बता कर गया हैं। हाँ सुबह क़रीब 4 बजे कुछ हलचल तो थी। धनी दोस्त सोच में पड़ गया आख़िर बिना बताये कहाँ चला गया।
हर रिश्तेदार के यहाँ पता लगाया पर कुछ पता न चला, समय बीतता रहा। धनी दोस्त कुछ समय के लिए तो परेशान रहा,कुछ समय बाद शादी हो गई बच्चे हो गये,अपने काम में व्यस्त रहने लगा। जब भी समय मिलता रिश्तेदारों से पूछताछ करता रहता था पर पता न चला। क़रीब 25 साल बाद धनी सेठ को अपने व्यापार के लिए लखनऊ जाना हुआ, काम के कारण सेठ को क़रीब एक सप्ताह रुकना था। सेठ सोचने लगे क्यों न शहर भी घूम लिया जाये। एक दिन दोपहरी का खाना खाने एक होटल में रुका ।ग़रीब दोस्त अपने धनी दोस्त को पहचान गया,जैसे ही सेठ खाना खाने के बाद पैसे देने के लिए काउंटर पर आया,दोस्त ने पैसे लेने से मना कर दिया। धनी दोस्त के पैर पकड़ कर ज़ोर- ज़ोर से रोने लगा और कहने लगा मैं तुझे वो 10 रुपये नहीं दूँगा। जैसे ही धनी दोस्त ने ये सुना तुरंत गले से लगा लिया, दोनों दोस्त गले लग कर आपस में बहुत रोये। धनी दोस्त रोते हुए बोला पगले मैं तेरे से 10 रुपये लेने नहीं आया हूँ.मैं तेरे से बहुत नाराज़ हूँ बिना बतायें यहाँ आ गया, मुझे पता हैं पर मैं क्या करता….। इसके लिए मुझे माफ़ कर दें पर ईश्वर ने हमें फिर से आज मिलवा दिया। आपस में बहुत बातें हुई अपने दोस्त को घर ले गया और अपने बच्चों से मिलवाया,अपने बेटे से बोला जा अपने ताऊ का सामान उस होटल से ले आ जिसमें ठहरें हुए हैं,रात का खाना खाने के बाद,सब बैठ कर बातें कर रहे थे, ग़रीब दोस्त ने अपने बचपन के दोस्त के बारे में बताया और मैंने 10 रुपये उधार लेकर बिना बतायें अपने माँ बाप को लेकर मैं यहाँ आ गया,उन 10 रुपयों से मैंने चाट की रेहड़ी लगाई मेहनत की, आज एक होटल हैं और ये एक मकान। मुझे पता हैं उन 10 रुपयों की क़ीमत आज मैं जो भी हूँ उन 10 रुपयों की वजह से हूँ,मुझे पता हैं “पैसे की क़ीमत”, और हाँ वो 10 रुपये मैं वापस नहीं करूँगा। परिवार में आपस में आना जाना शुरू हो गया,सबको पता चल गया दो बिछड़े दोस्त दुबारा से मिल गये हैं। लखनऊ वाला दोस्त बोला जो हमारा पुश्तैनी मकान हैं वो मैं तेरे नाम करता हूँ,एक दिन आकर सब से मिल भी लूँगा और मकान के कागज तेरे को दें दूँगा।
पीयूष गोयल
आदर्श नगर, दादरी ( उ.प्र).