हरियाणा से जो हवा चली थी आया राम गया राम की उस से देश की दलबदल की राजनीति को कितनी बार नया आयाम प्रदान किया जाता रहा है । बात 1967 की है जब पलवल से निर्वाचित विधायक जिनका नाम गया लाल था उन्होंने पहली बार कुछ ही घंटों में तीन बार दलबदलने का इतिहास रचा था और आखिर में जिस दल से निकले उसी में वापस आने पर उस राजनैतिक दल के नेता ने घोषणा करते हुए कहा था कि ” गया राम अब आया राम है ” । आया राम गया राम की कहानी का ये पहला अध्याय था । हरियाणा में इस को कितनी बार सफलपूर्वक दोहराया जाता रहा है , 1980 – 1990 – 1996 – 2009 – 2016 सबसे प्रमुख हैं । बिहार में जो भी नहीं हो वही बहुत , ऐसे में एक ही राजनेता तीन पारियों में तीन तीन बार एक ही पद मुख्यमंत्री की खातिर उसी से त्यागपत्र दे कर उसी पर साथ साथ शपथ लेने का कारनामा अंजाम लाये घठबंधन बदल बदल कर तो ये हरियाणवी कथा का संशोधित संस्करण कहला सकता है । आप इसको मर्यादा से जोड़ सकते हैं इसका ढंग उनको आता है बातों बातों में तुमने बात बदल दी है हम फिर बात बदल देंगे आज नहीं दिल कल देंगे । संविधान लोकतंत्र और जनता सभी किसी किनारे खड़े हैं तमाशा बन कर और कोई मदारी है जो भीड़ को तमाशा दिखला रहा है नाच जमूरे नाच । शर्म उनको मगर नहीं आती ये शीर्षक था जो इक उच्चतम न्यायलय के वकील ने तब सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर आसीन शासक को लिखे इक पत्र में लिख कर सार्वजनिक कर दिया था । जब जनता खुद ऐसी अनैतिक राजनीति की घटनाओं को भूल जाती है तब सत्ता के भूखे राजनेताओं को शर्मिंदा होने की ज़रूरत क्या है । जिनको अगले चुनाव में भगवान की आवश्यकता थी उन्होंने मंदिर में नई प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कर पहले की प्रतिमा को किसी अन्य जगह सुरक्षित रख छोड़ा उन्होंने इस बार उसी पुरानी तस्वीर को फिर से प्राण प्रतिष्ठा कर उसी जगह स्थापित कर दिया । चेहरा भी नहीं बदला चरित्र भी वही पहले जैसा कभी इधर कभी उधर का कायम है । पंजाबी में कहावत है जिथे देखी चौपड़ियां उथे मारी धरोकड़ियां । मतलब है जिस तरफ घी से चुपड़ी रोटी दिखाई दी उसी तरफ दौड़ कर पहुंच गए । ये भविष्य बताएगा कि चुपड़ी मिलने की आरज़ू में रूखी सूखी से भी कहीं रह गए तो क्या होगा , क्या दसवीं बार की संभावना अभी भी है । कुछ नहीं बदला सब बदलने पर भी समीकरण बदलने की उम्मीद है । देश की जनता को राजनेताओं ने कभी समझदार नहीं माना है उनको लगता है जिधर चाहे लाठी से भेड़ बकरी या भैंस गाय की तरह हांक सकते हैं । ये घड़ी मातम मनाने की नहीं है दूल्हा बारात सभी हैं दुल्हन की मर्ज़ी मत पूछना ऐसे में संगीत की धुन पर ठिठोली वाले गीत गाते हैं झूमते नाचते हैं । हास्य रस की कविताएं पढ़ते हैं ।
1 लाठी भैंस को ले गई ( हास्य कविता ) डॉ लोक सेतिया
भैंस मेरी भी उसी दिन खेत चरने को गई
साथ थी सारी बिरादरी संग संग वो गई ।
बंसी बजाता था कोई दिल जीतने को वहां
सुनकर मधुर बांसुरी सुध बुध तो गई ।
नाचने लग रहे थे गधे भी देश भर में ही
और शमशान में भी थी हलचल हो गई ।
शहर शहर भीड़ का कोहराम इतना हुआ
जैसे किसी तूफ़ान में उड़ सब बस्ती ही गई ।
तालाब में कीचड़ में खिले हुए थे कमल
कीचड़ में हर भैंस सनकर इक सी हो गई ।
शाम भी थी हुई सब रस्ते भी बंद थे मगर
वापस नहीं पहुंची भैंस किस तरफ को गई ।
सत्ता की लाठी की सरकार देखो बन गई
हाथ लाठी जिसके भैंस उसी की हो गई ।
2 वतन के घोटालों पर इक चौपाई लिखो ( हास्य-व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया
वतन के घोटालों पर इक चौपाई लिखो
आए पढ़ाने तुमको नई पढ़ाई लिखो ।
जो सुनी नहीं कभी हो , वही सुनाई लिखो
कहानी पुरानी मगर , नई बनाई लिखो ।
क़त्ल शराफ़त का हुआ , लिखो बधाई लिखो
निकले जब कभी अर्थी , उसे विदाई लिखो ।
सच लिखे जब भी कोई , कलम घिसाई लिखो
मोल विरोध करने का , बस दो पाई लिखो ।
बदलो शब्द रिश्वत का , बढ़ी कमाई लिखो
पाक करेगा दुश्मनी , उसको भाई लिखो ।
देखो गंदगी फैली , उसे सफाई लिखो
नहीं लगी दहलीज पर , कोई काई लिखो ।
पकड़ लो पांव उसी के , यही भलाई लिखो
जिसे बनाया था खुदा , नहीं कसाई लिखो ।
डॉ लोक सेतिया एस सी ऍफ़ – 30 मॉडल टाउन फतेहाबाद ( हरियाणा ) 125050 मोबाइल – 9416792330