सभी ट्रेन हमें अपने गंतव्य तक पहुँचाती है। सभी ट्रेनें जैसे सुपरफास्ट ट्रेन, एक्सप्रेस आदि में राजधानी एक्सप्रेस अपना एक अलग स्थान रखती है। वैसे तो राजधानी एक्सप्रेस में मुझे कई बार सफर करने का मौका मिला है। लेकिन एक बार का सफर यादगार सफर रहा। एकबार हमलोग बैंगलोर से दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस से सफर किए थे। सफर लंबा था फिर भी एंज्वॉय करते हुए चलने के विचार से ट्रेन से ही हमलोगों ने रिजर्वेशन करवाई। हम दोनों पति-पत्नि ही थे। शाम को बैंगलोर से ट्रेन रवाना हुई। हमारे कम्पार्टमेंट में हम दोनों के अलावा एक और पति-पत्नि ( जो लगभग 45 के होंगे ) भी थे। जब गाड़ी वहाँ से खुली उसके बाद हमलोग और वे दोनों भी चादर वगैरह बिछाकर आराम से बैठ गए। फिर चाय काॅफी आया । इसी दौरान हम दोनों परिवार में बातचीत शुरु हुई। उन्हें भी दिल्ली ही जाना था। एक दूसरे से परिचय में मालूम हुआ कि वह एयर फोर्स में कार्यरत हैं।
मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई साथ ही दुश्मनों के साथ गोला बारूद से खेलने के अनुभव जानने का अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी।इधर सूप सर्व करना, खाना वगैरह तो चल ही रहा था।मैं उनके अनुभव को अधिक से अधिक जानने को उत्सुक थी। वह अपने साथ बीती घटनाएँ ऐसे बताते जैसे ये कोई बड़ी बात नहीं और मुझे कभी रोमांचक लगता, तो कभी भयभीत करता । सितंबर का महीना था, रास्ते में कहीं झमाझम बारिश देखने को मिलता, तो कहीं धूपछाँव। हमलोग आपस में बातचीत करते हुए बाहर के नजारे देखते साथ में चाय-नाश्ता, सूप, आइसक्रीम और खाने का लुफ्त उठा रहे थे। आपस में हमलोग इतने घुलमिल गए थे , जैसे वर्षों की पहचान हो।इसी प्रकार दो दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। इतना लंबा सफर जैसे चुटकियों में कट गया हो। हमलोग तीसरे दिन सुबह दिल्ली पहुँचे। हमलोगों ने एकदूसरे का फोन नम्बर आदान-प्रदान किया और फिर कभी शायद मिलेंगे इस आशा से विदाई ली। ये राजधानी का सफर सच में यादों के पटल पर आज भी छाया हुआ है।
पूनम झा ‘प्रथमा’
जयपुर, राजस्थान
03-03-2024
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