(सत्यकथा)
अभी 18 साल उम्र भी पूरी नहीं किया था कि खेल कोटे से सीमा सड़क संगठन में सिपाही के पद पर तेजपुर असम में नौकरी लग गई। पूरा परिवार खुशियों से झूम गया। अभी नौकरी करते दो साल भी नहीं बीता कि रिश्तेदारों ने विवाह के लिए परेशान कर दिया। अन्त में पिता जी ने आनन-फानन में विवाह कर दिया। पत्नी के रूप में न सिर्फ सुन्दर बल्कि सुशील पत्नी पाकर मैं खुशियों से झूम गया। पहाड़ी इलाके में नौकरी के कारण मैं परिवार अपने साथ नहीं रख सकता था। नई शादी पत्नी दूर गुस्सा तो आता था लेकिन किया भी क्या जा सकता था। जिन्दगी की गाड़ी चलने लगी। मन तो बहुत करता कि पत्नी को साथ लेकर घूमा-फिरा जाये लेकिन परिवार में अभी के इतना खुलापन नहीं था इस लिए यह संभव नहीं हो पा रहा था। सोचा चलों बाद में यह सपना भी पूरा किया जायेगा। समय के साथ साथ मैनें अपना परिवार मुजफ्फरपुर से दिल्ली परिवार को सिफ्ट कर दिया। समय के साथ-साथ मेरे आंगन में दो फूल खिले। बच्चों की पढ़ाई एवं परिवारिक जिम्मेदारीयों के कारण हम दोनो कहीं घूम नहीं सके। सोचा चलो बच्चे कुछ बड़े हो जाये तो साथ-साथ घूमेंगें, बच्चे बड़े हो गये, उनका विवाह हो गया, बेटा और बेटी दोनो दुबई में सिफ्ट हो गये। अब भी घूमने और जिन्दगी का मज़ा लेने का अवसर नहीं मिला। अब कारण घर किसके बल पर छोड़े। मैं तो नौकरी में कभी पाकिस्तान बार्डर, तो कभी चाइना बार्डर, कभी पहाड़ो में तो कभी जंगलों में घूमता रहा। धीरे-धीरे नौकरी के 38 साल और उम्र का 58 साल पूरा हो गया। मगर पत्नी को घुमाने का सपना अधूरा रह गया। फरवरी में घर में शादी पड़ी। पूरा परिवार जमा हुआ। बच्चे भी विदेश से आये मैं भी अपने युनिट से अवकाश लेकर दिल्ली पहुँचा। शादी संम्पन हुई और सभी मेहमान रूकसत हो गये, बच्चे भी विदेश चले गये। हिम्मत कर हमने सोचा कि चलों कम से कम पत्नी को तेजपुर ही घुमा दें, कुछ दिन साथ-साथ रहेगें।18 फरवरी को दिल्ली से पहली बार हम दोनो कार से तेजपुर असम के लिए निकले। दिल्ली से अयोध्या आकर रामलला के दर्शन किये। और अगले दिन फिर चल पड़े। शाम तक हम मुजफ्फरपुर पहुँच गये। घर, ससुराल एवं साली का आवास सब आसपास थे। साली साहिबा मुझ पर कुछ विशेष मेहरबान थी।
जम कर खिलाया पिलाया। रात में मुझे कुछ बेचैनी और सीना भारी महसूस हुआ। मैनें गैस समझकर टाल दिया। सुबह बुखार भी महसूस किया। परन्तु एक टेबलेट बुखार को चलता किया। मैनें सोचा नानवेज भोजन एवं लम्बा ड्राइव इसका कारण होगा।
तीन दिन रूकने के बाद हम दोनो चल पड़े तेजपुर की तरफ। मगर गाड़ी चलाते समय सीने में भारीपन महसूस करता रहा। युनिट पहुँच कर श्रीमती जी की सलाह पर हास्पीटल पहुँचा। डाक्टर ने कुछ टेस्ट किया और अपने दोस्तों को बुलाने को कहा। जब सब आ गये तो उसने एक बम फोड़ा। बताया कि आपको एडमिट होना पड़ेगा। आपको दिल का दौरा पड़ा है। इतना सुनते ही हमारे तो होश उड़ गये। कहां तो हम अपनी दिल रूबा के साथ जीवन की खुशियां बाटने निकले थे लेकिन बेदर्द दिल ने यहां धोखा दे दिया। हम पहाड़ो की सैर छोड़ कर अपनी दिलरूवा के साथ दिल के इलाज के लिए फिर उसी शहर में चल दिये जहां से वर्षो बाद अपने दिल को बहलाने निकले थे। शायद हमारे ही दिल को हमारी खुशियां देखी नहीं गई। हम बस इतना ही कह पाये वाह रे बेदर्द दिल।
अखंड गहमरी
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