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“राजधानी का वो रिश्तों का सफर था-पूजा गुप्ता

बात उन दोनों की है जो मुझे दिल्ली से जम्मू के लिए अकेले सफर करना था मैंने राजधानी एक्सप्रेस की टिकट ली जिसका किराया पांच हजार रुपये था। जाना भी बेहद जरूरी था। घर की बेटी की शादी जो थी। फिर भी इतना महंगा रिजर्वेशन कराकर मैं राजधानी एक्सप्रेस में चढ़ गई। बेटा बाहर पढ़ता है वर्ना उसे लेकर मैं सफर तय करती। सामान लेकर ट्रेन में चढ़ना किसी योद्धा से कम नहीं होता।
मैंने देखा इस ट्रेन में काफी सुविधा थी।
ये रेल उच्च वरीयता वाली श्रेणी जैसी थी। पूरी तरह से वातानुकूलित। इस पर सफर करने वाले यात्रियों को सोने के लिए बिस्तरों के साथ साथ भोजन भी दिया जा रहा था। मैंने भी भोजन लिया जिसका लागत मेरे दिए किराये में शामिल था।
उसी समय एक लड़का ट्रेन की बोगी में आया और उसकी बर्थ ऊपर की थी और मेरी नीचे की। उस लड़के को प्लास्टर चढ़ा था और वह ऊपर वाली बर्थ में चढ़ने में असमर्थ था। उसके साथ एक बुजुर्ग माँ भी थी। वो दोनों की इस स्थिति को देखते हुए अपनी बर्थ मैंने उन्हें दे दी और खुद ऊपर की बर्थ में चढ़ गई। बहुत अच्छा लगा उस समय मुझे उनकी मदद करना।
सफर के दौरान एक अजनबी ट्रेन में चढ़ती हुई दिखाई दी। लड़की पर मेरी टिक गई मैंने गौर से देखी तो कुछ असहज सी वो मुझे लगी। वो ट्रेन के रिजर्वेशन के डब्बे में अचानक से चढ़ गई थी। एकदम डरी-डरी और हाथ में एक बैग लेकर बैठ गई जमीन पर। उसी समय वहां टीटी आ गया और उस लड़की से टिकिट दिखाने को बोला। उसके चेहरे से पता चल रहा था कि थोड़ी सी घबरा सी गई थी। देखकर यही लग रहा था कि किसी और ट्रेन के जनरल डब्बे में चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें आकर बैठ गयी है।
“टिकिट निकालो”! दोबारा टी टी ने लड़की से टिकिट मांगा।
टिकिट…! टिकिट तो मेरे पास जनरल का है। लेकिन वहां चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें बैठ गई हूँ।” वो लड़की बहुत डरकर उत्तर दी।
“अच्छा दो हजार रुपये का पेनाल्टी बनेगा”
“ओह …अंकल मेरे पास तो ले एक हजार रुपये ही हैं।
“ये तो गलत बात है बेटा… पेनाल्टी तो भरनी पड़ेगी… “
“सॉरी अंकल… मैं अगले स्टेशन पर जनरल में चली जाऊँगी…। मेरे पास सच में पैसे नहीं हैं.. कुछ परेशानी आ गयी, इसलिए जल्दबाजी में घर से निकल आई… और ज्यादा पैसे रखना भूल गयी…।”


बोलते-बोलते वो लड़की रोने लगी।
मैं ये सब नजारा अपनी ऊपर वाली बर्थ से देख रही थी। मुझे उस लड़की पर बहुत दया आई। मेरे मन में उथल-पुथल हो रही थी, न जाने क्यूँ उसकी मासूमियत देखकर उसकी तरफ खिंचाव सा महसूस हो रहा था। दिल कर रहा था कि उसे पैसे दे दूं और कहूँ कि तुम परेशान मत हो और रो मत।
उसकी शक्ल से लग रहा था कि उसने कुछ खाया पिया नहीं है शायद सुबह से… और अब तो उसके पास पैसे उतने ज्यादा नहीं थे। बहुत देर तक उसे इस परेशानी में देखने के बाद मैं अपनी बर्थ से नीचे उतरकर आई और लड़की को देखकर बोली, ” यदि तुम्हें अहसान ना लगे तो मैं भर दूँ तुम्हारा फाइन।”
वो लड़की मुझे कातरता की दृष्टि से देखे जा रही थी कि मैं उसका फाइन क्यूँ भर रही हूँ। उस लड़की ने “नहीं” कहकर मुझसे बात खत्म करनी चाही। शायद उसे अहसान नहीं चाहिए था मेरा। मैं उससे बोली, “अभी फाइन चुकाने दो और अपने घर का पता दे रही हूँ जब तुम्हारें पास पैसे रहेंगे तुम मुझे वापिस दे देना…। वैसे मैं नहीं चाहती कि मैं पैसे वापिस लूँ, बाकी तुम्हारीं मर्जी।”
फिर मैंने उसके फाइन को भर दिया।
वो निःशब्द थी। फिर मैं मुस्कुराते हुए अपनी बर्थ में जाकर चादर ओढ़ कर सो गई। जब उठी तो देखी कि वो लड़की ट्रेन में नहीं थी। शायद अपनी मंजिल तक वो जा चुकी थी। मेरी तकिया के कोने के पास एक कागज मुड़ा हुआ दिखा। मैंने उसे खोलकर देखी तो उसमे लिखा था,” प्रिय दीदी धन्यवाद… आपने मेरी सहायता की इसलिए। आपका ये अहसान मैं जिन्दगी भर नहीं भूलूँगी… मेरी माँ आज मुझे छोड़कर चली गयी हैं। घर में मेरे अलावा और कोई नहीं है इसलिए आनन-फानन में घर जा रही हूँ। आज आपके इन पैसों से मैं अपनी माँ को शमशान जाने से पहले एक बार देख पाऊँगी…. उनकी बीमारी की वजह से उनकी मौत के बाद उन्हें ज्यादा देर घर में नहीं रखा जा सकता। आज से मैं आपकी कर्जदार हूँ….जल्द ही आपके पैसे लौटा दूँगी।
उस दिन से उसकी वो आँखें और वो मुस्कराहट जैसे मेरे जीने की वजह थे। हर रोज़ पोस्टमैन से पूछती…. शायद किसी दिन उसका कोई ख़त आ जाये। लगभग एक साल बाद मुझे एक खत मिला।
“आपका कर्ज अदा करना चाहती हूँ दीदी….लेकिन खत के जरिये नहीं, बल्कि आपसे मिलकर…।”
नीचे मिलने की जगह का पता लिखा था। और आखिरी में लिखा था, “तुम्हारी अजनबी छोटी बहन…!”
आज हम राजधानी एक्सप्रेस के उस सफर से अच्छी बहनें बन चुकी है।

पूजा गुप्ता
मिर्जापुर( उत्तर प्रदेश)

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