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जलक्रीड़ा के लिए मशहूर कुचामन का किला-सुनील जैन

’हर किला एक-सा नहीं होता। हर किले की कुछ विशेषता होती हैं। राजस्थान‌ के कुचामन के किले का निर्माण राजा जालिम सिंह ने करवाया था। यह एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। अतिदुर्गम और विलक्षण है। तलहटी के मुख्य द्वार तक पहुंचने के लिए पुरानी अनाज मंडी के बीच से जाना होता  है। सड़क के किनारे एक-दूसरे के सामने बने हवेली नुमा जैन मंदिर कुचामन के व्यापार में जैनियों के प्रभुत्व को दर्शाते हैं। पास में ही बच्चों का स्कूल और बच्चों के मुंह से निकलती राजस्थानी भाषा अनायास मन मोह लेती है। 

मुख्य दरवाजे के बायीं तरफ किला घूमने जाने के लिए टिकट विंडो बनी है। इस किले को देखने के लिए प्रति व्यस्क व्यक्ति 500 रुपये का टिकट लेना जरूरी हैं। उसके बाद दो तरह से किले के बुर्ज तक पहुंचा जा सकता है। एक तो आप पैदल जाएं या फिर ट्रस्ट की ओर से मुहैया जीप में सवार होकर जाएं। जीप का किराना लाने और ले जाने का किराया 1000/-रुपए है। पैदल किले पर जाना कठिन कार्य है, लेकिन युवा हिम्मत करके पहुंचते हैं। जिनको वृद्धावस्था की दस्तक मिल चुकी है, वे जीप में सवार होकर किले के मुख्य दरवाजे के बाहर सैनिकों की गारद के रूप में बने तिखाल नुमा कमरों के सामने छोटे मैदाननुमा स्थान तक पहुंचते हैं। जीप की सवारी किसी जान जोखिम ( थ्रिंिलंग) से कम नहीं है। इतनी सफााई और कुशलता से जीप ऊपर चढ़ती है कि ड्राइवर साहब के कदम चूमने का मन कर उठता है। सुई बराबर चूक से जान से हाथ धो सकते हैं। 

बहरहाल पानी की पुरानी व्यवस्था के अनुसार मटकों के पानी से स्वागत खुद का करना होता है। उसके बाद गाइड श्री ईश्वर जी किले की विस्तार से जानकारी देने लगते हैं। उनकी उम्र और किले की दुर्गमता दोनों के आप कायल हुए बिना नहीं रह पाते। किलों में अकसर तोप और उनके गोलों की चर्चा होती है, लेकिन तोप में पत्थर के गोलों की चर्चा नहीं सुनी होगी। ईश्वर जी हमें तोप के सुन्दर पत्थर से गढ़े गोले दिखाते हैं और साथ में बारूद के गोले तथा कुछ विस्फोटक सामग्री भी। विस्फोटक सामग्री लड़ियों के रूप में थी। गढ़ इतना मजबूत और दुर्गम है कि आज भी आसानी से चढ़ना सहज नहीं है। 

हम आगे चलते हैं। कैदियों को रखने का स्थान मुख्य जमीन से करीब 11 फीट गहरा कमरा होता है, जिससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता। समय की पुकार के साथ-साथ उसमें सीलन की बदबू आ रही थी। राजा का शयन कक्ष में राजा महाराजाओं की तरह मुसंद पड़े थे। कुछ मित्र उन पर बैठकर स्वयं को राजा की अनुभूति से अनुभूत कर रहे थे। इस किले को होटल स्वरूप में परिवर्तित किया जा रहा है, इसलिए राजा का पलंग आधुनिक था। इस कक्ष से राजा चारों ओर नज़र रख सकता था, कौन आ रहा है कौन जा रहा है। रानी का शयन कक्ष सुन्दर नक्कासी से सराबोर और छोटे-बड़े हजारों शीशों से सुसज्जित था। रानी के शयन कक्ष से भी शहर का विहंगमावलोकन किया जा सकता था। किले में बुर्ज तो कई हैं, लेकिन आने और जाने का मुख्य द्वार एक ही है। गुप्त रास्ते हैं जो आपात स्थिति में राजपरिवार को किले से करीब तीन किलोमीटर दूर तक ले जाते हैं। कुल देवी का मंदिर। इस वंश की कुल देवी जिसके मुकुट के ऊपर नाग बने हुए हैं। 

अरे हां इस दौरान दीवार के कोने में एक काले नाग के दर्शन होते हैं। ईश्वर जी बताते हैं, जाकर हाथ फेरो बस कए सुन्दर सी बाइट (काटना) लेगा बस। हम सभी ठहाका मारकर हंस पड़ते हैं। इस उम्र में यह हंसोड़पन। वह भी समय की नजाकत को देखते हुए चुपचाप बैठा था। कभी-कभार फन उठाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता रहता। बच्चियों की दबी-दबी चीख निकल जाती। एक व्यंग्यकार महोदय तो लोगों को उकसा रहे थे, जाओ उसका आलिंगन करो, उसको चूमों। खुद की दाल पतली हो रही थी। हम किले में भीतर घूम-घूम कर दूर तक फैले शहर को अपलक देखते रह जाते हैं और सोचते हैं कि इतनी ऊचाई पर पानी की व्यवस्था कैसे होती है तो ईश्वर जी ने बताया- जहां आप खड़े हैं उसके ठीक नीचे दो बड़े-बड़े पानी के टैंक बने हुए हैं। उनमें बरसात के पानी को इकट्ठा किया जाता है और पूरे वर्ष इसी पानी का उपयोग किले में किया जाता रहा है। किले की मजबूती और उसकी बनावट बता रही थी किसी जमाने में इसका वैभव उच्च शिखर पर रहा होगा। हमें ईश्वर जी किले की छत पर छोड़ कर नीचे मुख्य द्वार पर आकर कुर्सी पर बैठ जाते हैं। 

हम लोग विभिन्न मुद्राओं में उल्टे-सीधे होकर फोटों खींचकर जब नीचे आते तो ईश्वर जी ने खड़े होकर कहा-मेरे पीछे आईए हम अनुसरण करते हुए छत से 100 फीट नीचे एक स्नानागार में अपने आपको पाते हैं। यह रानियों और राजाओं का जलक्रीड़ा प्रमोद का स्थान था। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि सन 750 में इस प्रकार की सुविधा भी हो सकती है। छत पर स्त्रियांे के अश्लील चित्र शोभायमान हो रहे थे। उनकी विभिन्न मुद्राएं देख युवा और बुजुर्ग दोंना ही सन्न रह रह थे। वहां पहुंच कर कोई भी अपने अस्तित्व को खोजने में लग जाता और राजाओं की रासलीला पर ईष्र्याभाव लिए बिना रह पाता। 

वापसी में दोबारा जीप में बैठने के पहले रूह कांप जाती हैं। जिन्हें अपनी ड्राइविंग पर बड़ा घमंड है वे एक बार उस जीप में अवश्य सवार होकर देखें, निकल जाएगी सारी हेकड़ी और आ जाएगी विनम्रता की पोटली। इतने साधन होने के बाद भी दुर्गम ही बना हुआ है। इस किले को अब होटल में तब्दील किया जा रहा है। हो सकता है भविष्य में यह किला आम आदमी की पहुंच से किले की तरह दुर्गम हो जाए।राजा हरिसिंह (अंतिम राजा) मार्ग के शुरू होने के साथ ही एक टी स्टाल पर चाय पीते हैं और कुचामन किले का भय मिश्रित आश्चर्य लेकर वापस घर की ओर निकल पड़ते हैं। 

सुनील जैन राही
एम-9810 960 285

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