
आज बड़े जोर-शोर से मीडिया ने प्रसारित किया कि मनोज सिन्हा की कृपा से स्वर्गीय विश्वनाथ गहमरी का सपना पूरा हुआ। गाजीपुर गंगा नदी पर रेल व रोड ब्रिज बन कर तैयार हुआ। और मोदी जी ने अपनी अधूरी चीजों का लोकापर्ण करने की परम्परा काे जारी रहते हुए आज 10 मार्च को आनन-फानन में लोकापर्ण कर दिया। अच्छी बात है चूकि एक गहमरी का सपना मनोज सिन्हा ने पूरा किया है तो गहमर गॉंव का होने के कारण मैं भी मनोज सिन्हा का आभार व्यक्त करता हूँ। परन्तु एक बात मुझे पता नहीं चली कि जब गाजीपुर में बना यह पुल गहमरी जी का सपना था तो अभी तक उस पुल का नाम गहमरी जी पर रखा गया है कि ? यह प्रश्न मेरे दिमाग में घूम रहा है। कई लोगो से पता किया लेकिन कुछ पता नहीं चल रहा है। चूकि गॉंव में लगन का अंतिम समय चल रहा है भोज बहुत अधिक हैं तो मैं भोज खाने के लालच में कही जाना नहीं चाहता ताकि पता लगा सकूँ कि सिलापट पर क्या लिखा है। आप ही बताईये भोज तो अब दो महीने के बाद ही मिलेगा न तो एक दो दिन गॉंव में रहने में क्या बुराई है? वैसे गहमरी जी का नाम लेकर मीडिया के माध्यम से गहमरी जी के रेलवे स्टेशन पर ट्रेनां के ठहराव हटाने वाले मनोज सिन्हा राजपूतों पर निशाना लगा रहे हैं। और पुल का नाम किसी और पर रख कर उधर भी निशाना लगा रहे हैं यानि एक तीर से दो निशाना। वैसे यदि गाजीपुर में बने उस पुल का नाम गहमरी जी पर नहीं हुआ तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। कहा जाता है कि आदमी अपना वंश इस लिए बढ़ाता है ताकि उसका नाम अमर हो सके, मरने के बाद भी उसे लोग जाने, उनका पुत्र उनकी विरासत को बढ़ायेगा। परन्तु यदि पुत्र नहीं है तो उसके गांव-समाज, उसके काम से जुड़े लोग उसके काम को बता कर सुना कर उसके नाम को जिन्दा रखते हैं, वह अमर रहता है। जैसे कि वीर मैगर सिंह के परिजनों ने आज तक उनके नाम और काम पर चार चांद लगाया है। मगर इस मामले में स्वर्गीय विश्वनाथ सिंह गहमरी जी की किस्मत अच्छी नहीं निकली। उनके पुत्र न उनके नाम को अपने कर्मो से आगे बढ़ा पाये और न अपने मेहनत या अपने प्रयास से उनके बनाये नाम को ही उनके कार्य के अनुरूप जिन्दा रख पाये। न वह अपने घर के पास अपने पिता के नाम पर बने पार्क जो शौच का केन्द्र बना है न उसकी व्यवस्था सुधरवा पाये और न वहॉं उनकी मूर्ति ही बनवा पाया । यह बात अलग है कि आज कल वह गहमर इंटर कालेज के भ्रष्टाचार, मां कामाख्या महाविद्यालय के भ्रष्टाचार को , मां कामाख्या मंदिर के भ्रष्टाचार को दूर करने के मैराथन प्रयास में लगने के साथ-साथ अपने पिता को छोड़ अपने पूर्वज की मूर्ति का ठीकेदार बने हुए हैं। पिता न सही पूर्वज सही। पिता के नाम पर तो वह राजनीतिक रोटी कच्ची-पक्की सेक ही रहे हैं । धामदेव राव जी की प्रतिमा लगाने की मंदिर समिति की बात पर 2 माह इंतजार न करके खुद मूर्ति लगवाने का बिगुल बजाने वाले विश्वनाथ सिंह गहमरी के पुत्र अपने पिता की मूर्ति-पार्क,और अन्य नाम के कामों पर, उनके सपनो पर सालो से इंतजार कर रहे हैं।
अपने पिता के नाम पर फर्जी इमानदारी की मूर्ति बने ही हुए है। मेरे बाद कुपुत्रों की श्रेणी में द्वितीय स्थान पर काबिज हैं ही। बातों से दुनिया हिला दूगां, ताकत का हाल खुदा जाने के कहावत को चरितार्थ करते अजय सिंह गहमरी नामक उनके सुपुत्र के धरती पर होने के कारण पार्क व गहमर जी की मूर्ति या उनके कार्यो पर गॉंव-समाज-जाति के लोग बहुत अधिक प्रयास नहीं किये। जैसे कि लोग गोपालराम गहमरी पर किये।ऐसे में भाजपा द्वारा गहमरी जी के सपनों का सकारा केवल बताये जाना ठीक वैसे ही लग रहा है जैसे ब्यूटीपार्लर मेंं सजी औरत बारिस में भींगने के बाद दिखती है। सच कुछ और दिखाया कुछ और। मगर एक बात तय है कितना भी ब्युटीपार्लर से सज कर निकले असली रंग दिख ही जाता है।
गाजीपुर में बने इस पुल पर विश्वनाथ सिंह गहमरी का सपना बताये जाना ऐसा ही कुछ मज़ाक है, यदि नहीं तो एक सुत्रीय कार्यक्रम में उस पुल का नाम विश्वनाथ सिंह गहमरी सेतु रखते हुए गहमरी जी के रेलवे स्टेशन को भी विशेष की श्रेणी में डालते हुए गहमर रेलवे स्टेशन को मनोज सिन्हा के कोप से बचाया जाये। गहमर रेलवे स्टेशन पर कोरोना के पूर्व रूकने वाली सारी ट्रेनों का तत्काल ठहराव दिया जाये, जो ट्रेनें रेलवे ने बंद कर दिया उसकी क्षतिपूर्ति में नई ट्रेने दिया जाये। इससे कम पर अब यह गहमर मानने वालो में से नहीं है। भाजपा अब एक बात समझ लें कि गया जमाना जब राजपूतों को मेढ़क बता कर वह इससे टकरा जाती थी। अब न राजपूत मेढ़क हैं न गहमर गॉंव।
अंखड गहमरी
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