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महत्वाकांक्षाओं में खोता बचपन-अमिता मराठे

वह छात्रावास में रहती थी। बहुत समझाने पर भी उसकी उदासीनता का कारण पता नहीं चल रहा था।अंत में वार्डन ने उसके पालकों को विद्यालय में बुलाया ।वह रो रही थी। बीच-बीच में आक्रोश भरी निगाहों से माँ को देख रही थी।”मेडम, ये मेरी माँ नहीं ,दुश्मन है।” सामने बैठी माँ फूट-फूट कर रोते हुए प्राचार्या से गुहार लगा रही थी। “प्लीज़ मेरी बेटी को बचा लो। कुछ समझा दीजिए।”शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे अति संवेदनशील दृश्य अनेक प्रश्नों के साथ सोचने के लिए बाध्य कर देते हैं। गुणी जन और सुधीजन  बच्चों की बदलती वृत्ति पर गहन अध्ययन कर बढ़-चढ़कर व्याख्यान भी दे रहे हैं। लेकिन सही निर्णय पर पहुंचने पर  विदित होता है कि,
1, अभिभावकों का बच्चों के प्रति नकारात्मक रवैया।
2, कोख में पल रहे बच्चे के भविष्य का  सम्पूर्ण चित्र स्वयं ही बनाना।
3, जन्म के पश्चात उसकी रुचि को ना समझ क्रिकेट, फुटबॉल, तैराकी , तबला, गिटार डांस सब कुछ सिखाना, फिर पढ़ाई भी अंग्रेजी माध्यम से, उसे फ्रेंच,रशियन जैसी दूसरी भाषा भी आनी चाहिए।स्व मातृभाषा के प्रति किंचित मात्र भी प्रेम नहीं सिखाना।4, शिक्षा के व्यवसायीकरण के साथ पालकों के अति महत्वाकांक्षी होने से बच्चों के बचपन का आहत होना।
5, स्कूलों में क्लब कल्चर, आगे नाइट कल्चर में परिवर्तित होना।ये पालकों की पाश्चात्य संस्कृति के प्रेम को दर्शाता है।
6, विद्यालयों का कारखाना वृत्ति में तब्दील होना।
7, अभिभावकों का अनावश्यक भौतिक सुख अर्जित करना और बच्चों को प्रदान करना।
8, आदर भावना, सृजनात्मकता, सच्चाई, सादगी, सफाई जैसें गुणों में पालकों द्वारा मिलावट करना। स्वयं भी दूर रहना और बच्चों के लिए भी अनावश्यक समझना।
9, अनादर वृत्ति, शिक्षकों के विचारों का सम्मान  नहीं करना।
10, नैतिक शिक्षा, मौलिक विचार, सभ्यता संस्कृति सत्संग जैसे आदर्शों को समेटकर रखना। अध्यात्मिकता को समझने की कोशिश ही नहीं करना।
शिक्षक अपने ज्ञान में पूर्ण, निश्चय बुध्दि होना चाहिए।पेशा नहीं, ज्ञान दाता के पद को समझें तब ही संभव होगा कि वह पालकों को दृढ़ता से और बालकों के लिए सही मार्गदर्शन कर सकते हैं।बच्चों को फिल्मी सितारा,माॉडल नहीं देश का कर्णधार बनाना है।शिक्षक अपने अर्जित ज्ञान को आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करने से ही पुण्य आत्मा कहलाते हैं। अभिभावकों के उत्तुंग विचारधाराओं को नियंत्रित करने में ऐसे ही शिक्षक समर्थ होते हैं।अभिभावकों को चाहिए बच्चों का पालन-पोषण निमित्त समझकर योग्य रीति से करें। लेकिन अपनी इच्छाओं को बच्चों पर नहीं थोपे।उनकी इच्छाओं का कल्पनाओं का सम्मान करें।हर प्रलय के बाद नव सृजन अनहद है यही सीख बच्चों को देनी चाहिए।हार, जीत का संकेत होती है।राग द्वेष से मुक्त हो विलाप नहीं प्रयत्नशीलता का पाठ पक्का कराना चाहिए।सदा ध्यान रहे माता -पिता बच्चे के प्रथम शिक्षक है।

अमिता मराठे
इंदौर मध्यप्रदेश

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