बच्चे देश की धरोहर होते हैं ।परिवार में आने वाले भविष्य की नींव माता-पिता की उम्मीद की पूंँजी होते हैं ।बच्चों का मानसिक स्तर कैसा है? उसकी रुचि क्या और किस तरफ है? रूचि सब की एक समान नहीं होती कहते हैं –
(1)”पूत के पांँव पालने में ही दिख जाते हैं।”
(2) हौन हार बिर वान के होत चीकने पात” बच्चा क्या है? कैसा है ?यह हम बचपन से ही जान जाते हैं। बच्चा उस कच्ची मिट्टी के समान होता है जिससे कुम्हार मनचाही मूर्तियांँ (आकृतियांँ )और बर्तन बनाता है और माता-पिता वह कुम्हार होते हैं जो उस मिट्टी से एक घड़े को आकार देते हैं ।वह उस मिट्टी को चाक पर घुमाता है सहारा देता है अंदर से और बाहर से ठोकता है जब जैसी जरूरत के अनुसार। कुम्हार की भांँति हर माता-पिता को होना चाहिए, उसका आत्मविश्वास कायम रखने के लिए, उसको प्रेरित करना उसकी रुचियों के अनुसार और उसके मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर ही उसको प्रेरित करना चाहिए। जब से बच्चा पैदा होता है वह सीखता ही सीखता है ।माता-पिता से, परिवार से ,भाई बहनों से ,बाहर मित्रों से ,स्कूल में सहपाठियों से ,और अपने अध्यापक और अध्यापिकाओं से ,बड़े होकर खाई हुई जमाने की ठोकरों से, मित्र और शत्रुओं से, जीवन में आने वाली जरूरतों से ,यह सब एक प्रकार से हमारे गुरु ही होते हैं इनमें एक नाम निंदकों का भी होता है जो सदैव बच्चों की टांँग पकड़ के खींचते हैं और उनका मनोबल गिराते रहते हैं।यहाँ बच्चे का आत्मविश्वास काम करता है।उनसे उलझने के बजाय उनको कुछ कर दिखाता है।
हमारा स्कूलों में पढ़ाया जाने वाला गलत पाठ्यक्रम बच्चों के बजन से ज्यादा बस्ते के बजन का होना। माता-पिता एवं अभिभावकों की महत्वाकांँक्षा की पराकाष्ठा का होना। यदि हर कोई यही चाहने लगेगा कि-
मेरा बच्चा में जो चाहता हूंँ वही बने यह तो असंभव ही होगा। बिजनिसमैन चाहे वह व्यापार करें, डॉक्टर चाहे डॉक्टर बने ,इंजीनियर चाहे इंजीनियर बने ,और सभी चाहते हैं – आई.ए.एस ,आई.पी.एस ,ही बने चाहे उसकी मानसिक क्षमता हो या न हो पर उम्मीदें यही सब लगाते हैं। कितने माता-पिता जानते हैं। बच्चे की रुचि अभिरुचि क्या है ? वह खिलाड़ी बनना चाहता है ,आर्मी अफसर बनना चाहता है उसके अंदर देशभक्ति का जज्बा है ,शिक्षक ,होटल में शैफ बनना चाहता है, गायक या एक्टर बनना चाहता है ,माता-पिता को चाहिए कि उनको बच्चों की अभिरुचि के अनुसार प्रेरित करें उसको उसी प्रकार का वातावरण उपलब्ध करायें। परंतु ऐसा 10 % ही करते होंगे ।ज्यादातर यही कहते हैं , देखा तुम्हारा मित्र कितना पढ़ता है ।शर्मा जी का बच्चा आईएएस बन गया वर्मा जी की बिटिया आईपीएस बन गई तुम तो बुद्धू हो जीवन में कुछ नहीं कर सकते । धीरे-धीरे बच्चा पढ़ने की बजाय इसी ऊहापोह में रहता है कि मैं कुछ नहीं बन सकता और वह अवसाद ग्रस्त रहने लग जाता है एक न एक दिन वह इस स्थिति में पहुंँचे जाता है कि- आत्महत्या तक कर लेता है ऐसे अनेक उदाहरण हैं आए दिन अखबार के पन्नों पर छपा होता है या रेडियो टीवी में खबरों में देखा जा सकता है।
आजकल वैसे ही चाचा- ताऊ, बूआ- मौसी ,आधे रिश्ते कम हो रहे हैं और कुछ माता-पिता तो एक ही बच्चा पैदा कर रहे हैं ।पहले आधी पढ़ाई तो छोटे बहन भाई अपने बड़े भाई बहनों से सीख जाते थे ।धूल -मिट्टी में खेलना पानी से खेलना , अनेक ऐसे खेल होते थे । कबड्डी, खोखो, रस्सी कूदना हुलक डंडा ,आइस पाइस ,पोशम्पा, छुपा-छुपी ,लंगडी टाँग ,गुड्डे- गुड़िया जिनमें भरपूर मनोरंजन और कसरत शामिल होती थी । थोड़ी टूट फूट पर तो कोई रोता भी नहीं था न घर में पता चलती थी।यह सब अब एकल परिवारों के कारण गला काट प्रतियोगिताओं के कारण और मुख्य कारण बच्चों पर बड़ता पढ़ाई का बोझ माता -पिता की महत्वाकाँक्षाओं का बोझ, टीबी, मोबाइल भी एक कारण है। हर चीज के दो पहलू होते हैं सही गलत जब करोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई की वजह से मोबाइल दिलाए बच्चों को अमीर हो या गरीब पढ़ाई और दुनिया भर की आधुनिक जानकारी तक तो ठीक था आज बच्चे उसका गलत उपयोग करने लगे हैं ।
वहांँ उनको रोकना आवश्यक है समय परिवर्तनशील है बदलता रहता है सब कुछ एक जैसा नहीं रहता जो समय के साथ चलना सीख गया वही जीवन में सफल होता है । अंत में माता-पिता घर में, शिक्षक स्कूल में ,मित्रों का साथ सही होना बुरी संगत में न पड़ना सदा सतर्क और जागरूक रहना। बचपन से ही बच्चों का सही मार्ग प्रशस्त होता हैवही सफलताहाँसिल करते हैं। सही मायने में बच्चों का बचपन खोता जा रहा है न दादी -नानी की प्रेरक कहानी है ना उनका प्यार दुलार बचा है ।इस मशीनी युग में मनुष्य भी मशीन बन चुका है तथा बचपन उसकी भेंट चढ़ चुका है। ” इस बचपन को बचपन रहने देने के लिए माता-पिता शिक्षक, सरकारें तथा सामाजिक संगठनों, बाल साहित्यकारों को अपनी लेखनी चलानी होगी ।बच्चों को बचपन की मासूमियत से परिचय करना ही होगा।” तभी हमारे देश का भावी कर्णधार देश को सुरक्षित और विश्व गुरु बना पायेगा।
राज फौजदार
साहित्य सरोज लेखन प्रि