बच्चों का संसार जितना सहज है, उतना ही सरल भी। आज बच्चों की दुनिया पूरी तरह से बदली दिखती है। आज के युग के बच्चों का बचपन दादी-नानी की कहानी सुनकर नही, टीवी और मोबाइल के सामने गुज़रता है। बच्चों के लिए बनाए गए पार्क सूने पड़े हैं, आज कल के बच्चों की खासियत यह है कि उनका हर चीज़ के लिए असीमित ज्ञान और सकारात्मकता उनको विशिष्ट बनाती है। वे यह बात बहुत अच्छी तरह से समझते हैं कि उनका भी स्वतंत्र अस्तित्व है। जैसे ही बच्चे पांच या छह वर्ष की वय पूरी करते हैं , मां व पिता की महत्वाकांक्षा और नज़रिया अपने बच्चों के लिए बदलने लगता है। मां-पिता की महत्वाकांक्षा के तले पिसते बच्चे तेजी से संवेदनशीलता खो रहे हैं। और कोई शक नहीं कि संवेदनशीलता खोने से वे आक्रमक भी हो रहे हैं जिसका सीधा असर उनके व्यक्तित्व पर पड़ रहा है। अक्सर मां-पिता अपने जीवन मे जो नही बन पाते वो चीज़ वो अपने बच्चों के नाज़ुक कंधों पर लाद देते हैं। मुख्य वजह यही है जो बच्चों के मन और दिमाग के खांचे के लिए ज़रा भी ठीक नहीं। हर माता-पिता अपने जीवन को आदर्श और अनुकरणीय मानते हैं।
माता-पिता को अपने जीवन के आदर्श बयान तो करना चाहिए पर बिना किसी दबाव के – एक दम सहज वातावरण में। मां-पिता खुद ऐसे आदर्श के भय में जीते हैं जिसका कोई प्रतिरूप है ही नहीं, यही भय जाने-अंजाने वे अपने बच्चों में रोपित कर देते हैं। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए मां-पिता को अपनी महत्वाकांक्षा को एक दायरे में रखने की जरूरत है। अधिकतर मां-पिता अपने अहम की तुष्टि को महत्वकांक्षा का रूप दे देते हैं जिसका भुगतान उनके खुद के बच्चों के कंधों पर आ जाता है। हर मां-पिता सबसे पहले सच्चाई को स्वीकार करना सीखें – विस्तार और पोषण दोनो ही ब्रम्ह के कार्य हैं इसीलिए यह सारा संसार है। बच्चे भी इसी विस्तार का अंग हैं। संतान को पैदा करने में माता पिता तो बस निमित्त मात्र हैं। अपनी महत्वाकांक्षा के घोड़े पर अपने बच्चों को सवार करने से पहले सौ बार सोचें। हर बच्चा स्वयं में एक स्वतंत्र जीव है। उसकी भी अपनी एक अलग पहचान है। एक बच्चे को जीवन यात्रा के संघर्ष के लिए तैयार करना ही मां-पिता की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
मगर बच्चों के विचारों को बांधने का प्रयास किये बिना, जिस अज्ञान के कारण मन महात्वाकांक्षा का शिकार होता है उसके हट जाते ही मन में स्थाई स्थिरता का भाव आ जाता है। हर मां-पिता को बच्चों का बस बचपन ही नहीं, पूरा जीवन ही बचाना है तो आप अति-महत्वाकांक्षा के घोड़े से उतरें और प्रेम के बादल पर सवार हो जाएं, फिर देखिए बच्चों का बचपन और हर मां-पिता का जीवन कितना महक उठेगा।
सृष्टि उपाध्याय
इंदौर ( म.प्र.) 452001
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