आज से पचास साल पहले मेरा दोस्त मेरा मुहँ मीठा कराते हुये बताया कि उसके घर में आज नया मेहमान आया है। जब मैंने पूछा लड़की हुयी है या लड़का तो उसने कहा कि मैं खुशी के चलते भाई साहब से विस्तार में बात ही नहीं की।आगे चलकर मैंने अनुभव किया कि उस बच्चे को किसी दूसरे को देते नहीं थे और जैसा अमूमन होता है कि परिवार का सदस्य हो या कोई अन्य बच्चे को बाहर सुबह-शाम घूमा लाते हैं वैसा भी नहीं था।और बड़ा हुआ तो पाठशाला में दाखिला करवाया अवश्य लेकिन स्वयं ही लाते ले जाते रहे। उसे हमेशा बालक की पोशाक पहनाते रहे। इसी तरह किसी प्रकार वह विद्यालय स्तर पास कर गया। फिर जब कालेज दाखिला का समय आया तब पता चला कि वह ‘इन्दिरा गाँधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी’ से घर बैठे ही आगे की पढ़ाई करेगा।
इसी बीच एक दिन मुझे ऐसा आभास हुआ कि उसे भले ही अभी तक लड़कों वाला परिधान पहनाया जाता हो लेकिन वह तो लड़की है। तब निश्चय कर दोस्त से घूमा फिरा कर इस पर जबाब मांगा तो उसने कह दिया कि आज-कल लड़के और लड़की का पहनावा तो एक समान ही है। इसलिये इसमें क्या खास बात है।इसी बीच उसे नौकरी भी मिल गयी तब वह निजी दुपहिया से नौकरी पर आने-जाने लगी। एक दिन उसके साथ काम करने वाला, जो मेरे एक परिचित का लड़का था ने अपने घर पर इस विषय पर चर्चा की। क्योंकि वह नौकरी स्थल के अलावा कहीं भी आती-जाती नहीं थी। वह आफिस में काम करने वालों के यहाँ भी आयोजित होने वाले किसी भी कार्यक्रम में जाती ही नहीं थी, बल्कि किसी न किसी बहाने टालती ही रहती। फलस्वरूप परिचित के लड़के का उस पर सन्देह गहराता चला गया।
एक दिन अचानक वह परिचित मेरे से मिलने आया और मुझसे उसके बारे में कुछ भी न बता कर, निवेदन किया कि मैं उस बच्ची के परिवार वालों से उसके लड़के से रिश्ते की बात करूँ।मैंने मौका देख अपने दोस्त से उसके भाई-भाभी का हालचाल पूछ उसकी भतीजी के सम्बन्ध में बात करते हुये कहा अब सही समय है जब तुमलोग भतीजी की शादी कर दो। दोस्त ने कहा कि अभी तक तो कभी भी इस विषय पर सोचा ही नहीं और भाई साहब के मामले में वह बीच में पड़ना ही नहीं चाहता है। मैंने आश्चर्य व्यक्त करते हुये कहा क्या कह रहे हो ? उसने कहा – मैं बिल्कुल सोच-समझकर कहा है ।दो-तीन दिन बाद उस परिचित ने फोन पर ही पूछा कि क्या रिश्ते वाली बात उस बच्ची के परिवार वालों से की है ? तब मैंने हकीकत बयाँ कर दी। तब उसने कहा मैं समय निकाल एक-दो दिन में मिलने आऊँगा ।
जब वह मिलने आया तब उसने सारी बात स्पष्ट बता दी। मैं सोच में पड़ गया कि उस परिचित के लड़के का अनुमान कि वह किन्नर है, सही है। क्योंकि वह बच्ची बड़ी ही शान्त प्रकृति की थी, साथ ही बात-व्यवहार में बड़ी ही शालीन थी एवं पारिवारिक सदस्यों के साथ भी उसका व्यवहार बहुत ही आदर्शपूर्ण था। उसे उसके माता-पिता के साथ बाकी सभी सदस्यों का भी भरपूर प्यार मिलते हुये मैंने महसूस किया था। वह सारे त्यौहार सभी पारिवारिक सदस्यों के साथ साथ बड़े ही धूमधाम से मनाती थी।
कुल मिलाकर मुझे ही नहीं बल्कि मौहल्ले के किसी को भी उससे किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं थी।हां, हम सब मौहल्ले वाले यह तो अवश्य महसूस करते थे कि वह कभी भी हमारे यहां किसी भी कार्यक्रम में सहभागिता नहीं निभा रही है।इसके बाद मैंने मौहल्ले के अपने खास भरोसेमंद से इस किन्नर विषय पर संक्षेप में चर्चा की तब उसने कहा कि यह सही है ।और यह तथ्य उसको उस बच्ची की बुआ ने बहुत पहले ही हिदायत देकर बता दिया था।उस पूरे परिवार ने उसको पूरा संरक्षण देते हुवे, संस्कारिक भी बनाना है और उसको अपने पैरों पर खड़ा भी करना है, का निर्णय लिया हुआ है ।इसके बाद एक दिन मेरे दोस्त के बड़े भाई को हृदयाघात हो गया और उस समय वह परिवार एक बड़े शहर में रह रहा था। उस बच्ची ने बिना घबड़ाये अपनी माताजी को एकदम आश्वस्त कर घर पर ही रह भगवान नाम जप करते रहने का समझा, अपने पिताजी का उपचार एक अच्छी अस्पताल में करवाना शुरू कर दिया। इसी बीच उसने अपने परिवार वालों को सूचना भेज दी। खून की आवश्यकता हुयी तो उसने अपना खून भी दिया। धीरे-धीरे एक-एक कर परिवार वाले जब अस्पताल पहुँचे तो संयमितता से हाल बता सभी से आग्रह किया कि आप आये हैं, पापा से मिल लें, लेकिन कृपया कर न तो ज्यादा बात करें और न ही उनको बीमारी के बारे में बतायें। वो अवश्य ही जानने की कोशिश करेंगे तब यही कह दें कि सारी जाँच हो जाने पर ही सही बिमारी का पता चलेगा।
वह रात-दिन अस्पताल में ही रहती। रात को भी किसी को रहने नहीं दे रही थी। बीच-बीच में माताजी को बुला स्वयं भी मिल लेती और अपने पापा से भी आराम से मिलवा देती। कुलमिलाकर उसने पूरे सुझबुझ व संयम से वह कठिन समय निकाला। जब उनको छूट्टी मिल गयी तब भी वह उनका डाॅ के हिसाब से पूरा देखभाल भी करती और आफिस भी सम्भाल रही थी।इसके पश्चात उनका देहान्त हो गया तो उसने अपने चाचाजी को तुरन्त बुलाकर पूरा सहयोग दिया क्योंकि छोटा भाई होने के नाते उसे ही पन्द्रह दिन वाला कार्यक्रम सम्पन्न करने का उसकी भाभी ने आग्रह किया था। इन पन्द्रह दिनों में किसी का भी एक ढेला न लगे इसका पूरा पूरा ध्यान रखा।
इसके बाद अपनी माताजी को लेकर हरिद्वार वगैरह जा कर आयी। और आगे चलकर जब माताजी बीमार पड़ी तो जैसे पिताजी की सेवा की उसी तरह माताजी की भी की। एक बार उस शहर मुझे किसी कार्यवश जाना पड़ा तब अपने सम्बन्धों को ध्यान में रख मैं उनके घर भाभीजी से मिलने गया।उस समय वह बच्ची घर पर नहीं थी लेकिन भाभीजी मिलीं और उनसे ही इतना सब कुछ बातचीत के दौरान पता चला क्योंकि उनको मालूम हो गया था कि अब मौहल्ले वालों को सारी वस्तुस्थिति पता चल गयी है। उन्होंने आगे बताया कि वैसे तो वह निडर की तरह रहती है लेकिन मेरे सामने अपने पिताजी को याद कर अकेले में खूब रोई और उसे शान्त कराना मेरे लिए बहुत भारी हुआ।उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि यह सब प्रारब्ध का फल है। यही हम दोनों जीवों का मानना था। और हमने इसके जन्म पश्चात ही निर्णय कर लिया था कि इसे कभी भी एहसास नहीं होने देंगे और बढ़िया ढ़ंग से पढ़ा-लिखा संस्कारिक भी बनायेंगे और उसको अपने पैरों पर खड़ा भी कर देंगे ताकि उसे किसी अन्य पर आश्रित न होना पड़े। इसी बीच वह आफिस से लौट आयी और आते ही मुझे पहचाना ही नहीं वल्कि मेरे नाम के आगे चाचाजी लगा झुक कर प्रणाम किया और बरबस मेरे मुहँ से आशीष वचन ‘खूब नाम कमाओ’ निकल गया।
इसके पश्चात भाभीजी का भी देहान्त हुआ और मेरे दोस्त का भी। उसने बाखूबी सब नियम पालना करते हुवे अपना दायित्व समयानुसार बहुत ही बढ़िया ढ़ंग से निभाया। आज भी वह समय-समय पर अपनी चाची से बतिया लेती है। लेकिन उसकी चाची ने ही एक बार मुझे बताया कि वह इन तीनों को बहुत ही याद करती है।और अब एकाकीपन महसूस कर रही है क्योंकि वह मुझसे वहाँ शहर में आकर साथ रहने को कहती है।उपरोक्त से यह तो सिद्ध हो गया कि किन्नरों की भी हमारी तरह सब तरह की भावना होती है। यदि उचित संरक्षण मिले तो वे न तो लड़के से कम दायित्व वाली होंगी और न ही लड़की से।
गोवर्धन दास बिन्नानी ‘राजा बाबू ‘जय नारायण व्यास काॅलोनी,बीकानेर 7976870397 / 9829129011 [W ]